बिहार विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ एनडीए की प्रचंड बहुमत से वापसी हो रही है। भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी से ज्यादा है। लोक जनशक्ति पार्टी का भी प्रदर्शन शानदार रहा है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मंच चुनाव की सफलता दर, महागठबंधन की तुलना में की गुना ज्यादा है। बिहार में एनडीए गठबंधन की ऐसी प्रचंड लहर आई है कि राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम और विकासशील इंसान पार्टी के सारे जतीय समीकरण ध्वस्त हो गए हैं।
महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव ने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो बिहार के हर परिवार को एक-एक सरकारी नौकरी दी जाएगी, जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये दिए जाएंगे, उन्हें नियमित किया जाएगा, बिहार में विकास क्रांति करेंगे। महागठबंधन के किसी भी वादे पर लोगों ने भरोसा नहीं जताया, जातिगत और धार्मिक समीकरण भी गंवा बैठे।
कांटे की टक्कर का दावा, फुस्स कैसे हो गया?
बिहार में महागठबंध और एनडीए के बीच कांटे का टक्कर होने का दावा किया जा रहा था लेकिन ऐसा जमीन पर नहीं हुआ। एनडीए की प्रचंड लहर में बीजेपी सबसे बड़ी चुनावी पार्टी बनी, वहीं दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जेडीयू बनी। पिछले चुनाव में बीजेपी को भी पीछे छोड़कर सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली जेडीयू का आंकड़ा 40 भी नहीं छू सका है। सत्तारूढ़ गठबंधन 180 से ज्यादा सीटों पर जीतती नजर आ रही है।
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NDA ने कैसे पलट दी है बाजी?
- बीजेपी: पांच दलों के गठबंधन में वोटों के आपसी तालमेल से बीजेपी को तगड़ा फायदा हुआ है। चिराग पासवास की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा का समाजिक प्रयोग बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हुआ। बीजेपी धुर हिंदुत्व पर खुलकर खेलती रही है। बीजेपी के सामने जातीय समीकरण के वादे कमजोर साबित हुए।
- JDU: पहले दावा किया जा रहा था कि जेडीयू सिर्फ 60 से 65 सीटें जीतती नजर आ रही थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जेडीयू का प्रदर्शन गजब का रहा। बीते चुनाव में 43 सीटें जीतने वाली पार्टी इस बार 80+ सीटों पर चुनाव जीत रही है। जेडीयू का 'कोइरी, कुर्मी और कुशवाहा' वोटबैंक काम आया और बिहार में एनडीए के खाते में अहम बढ़त मिली। एनडीए का चुनावी ताना-बाना नीतीश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर ही घूमता रहा। मुख्यमंत्री की 10 हजार योजना काम आई, लाखों नौकरियों के वादे पर लोगों ने यकीन किया और बेहतर नतीजे जेडीयू के पक्ष में आए। नीतीश कुमार के सुशासन का वादे पर भी लोगों ने भरोसा जताया।
- लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास): चिराग पासवान इस चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की है। उनकी नेतृत्व वाली पार्टी के खाते में 20 से ज्यादा सीटें आईं हैं। उन्हें सिर्फ 29 सीटें मिलीं थीं लेकिन चिराग पासवान की सफलता दर 80 से ज्यादा है। पहले लोगों ने आशंका जाहिर की थी कि चिराग पासवान, इस गठबंधन की कमजोर कड़ी हैं लेकिन उन्होंने पूरा पासा ही पलट दिया।
- हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा: जीतन राम मांझी की अगुवाई वाली HAM (S) ने शानदार प्रदर्शन किया है। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने सिर्फ 6 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 3 से ज्यादा सीटें जीत रहीं हैं। यही हाल उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा का भी है। दोनों दलों ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है।
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महागठबंधन के हाथों से चुनाव कैसे फिसल गया?
- आरजेडी: राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई तेजस्वी यादव ने की। उन्हें महागठबंधन ने चेहरा माना। उन्होंने वादा किया कि बिहार के 2.5 करोड़ परिवारों में हर परिवार को एक सरकारी नौकरी दी जाएगी। 200 यूनिट मुफ्त बिजली और माई बहन मान योजना के तहत हर महिला को प्रति माह 2,500 रुपये देने का वादा भी रास नहीं आया। नीतीश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर लोगों ने भरोसा जताया। आरजेडी पर अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगते हैं। शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा को आरजेडी ने उतारा, कुख्यात अपराधी सूरजभान की पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया। कुख्यात गैंगस्टर अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी को भी आरजेडी ने टिकट दिया। इनका भी गलत संदेश जनता में गया।
- कांग्रेस: कांग्रेस ने 2020 में 70 में से 19 सीटें जीतीं थीं। अब कांग्रेस का प्रदर्शन और शर्मनाक है। महागठबंधन की कमजोर कड़ी कांग्रेस बनी। 5 सीटें भी नहीं आ रहीं हैं। कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 5 सीटें भी यह पार्टी हासिल नहीं कर पाई। AIMIM जैसी पार्टियों ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया। राहुल गांधी के वोट चोरी वाले मुद्दे को लोगों ने एक सिरे से खारिज कर दिया।
- CPI (ML): कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मर्क्सवादी-लेनिनवादी) (लिबरेशन) का भी प्रदर्शन खराब ही रहा। चिराग पासवान के एनडीए के साथ आने की वजह से पासवान वोट बैंक भी एनडीए के खेमे में जुटा। बीते चुनाव में चिराग अलग होकर चुनाव लड़े थे। उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए में लौट आए। बिहार में लेफ्ट का अपना मुद्दा ही नहीं था, महागठबंधन के सहारे चुनावी मैदान में रही, नतीजा एनडीए के पक्ष में ही गया। 2020 में इस पार्टी ने 12 सीटें जीती थीं।
- VIP और IIP: महागठंबधन ने VIP चीफ मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम उम्मीदवार बताया था। उनका मल्लाह वोट बैंक भी काम नहीं आया, एनडीए कोर सीटों पर भी जीतती नजर आई। मुकेश सहनी न खुद चुनावी मैदान में उतरे, उनके भाई उतरे थे तो नाम वापस करा लिया। यह बात उनके कोर वोट बैंक को रास नहीं आई। इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के आईपी गुप्ता भी वैश्य वोट बैंक को एकजुट करने में सफल नहीं हो पाए। बीजेपी का कोर वोट बैंक सवर्ण और गैर यादव ओबीसी जातियां कही जाती हैं। इस बार अल्पसंख्यक और यादव वाला फॉर्मूला भी काम नहीं आया।
कहां चूक गया तेजस्वी यादव का महगठबंधन?
तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन के चुनावी घोषणापत्र को लोगों ने अव्यवहारिक कहा था। लोगों ने कहा कि बिहार कर्ज में डूबा है, तेजस्वी यादव एक से बढ़कर एक चुनावी वादे कर रहे हैं, जिन्हें पूरा करना मुश्किल है। तेजस्वी यादव भी राहुल गांधी की तरह वोट चोरी का मुद्दा उठा रहे थे, जिन्हें जनता ने एक सिरे से खारिज कर दिया। तेजस्वी यादव ने कहा कि वह सरकार में आएंगे तो अपने चुनावी वादों को पूरा करेंगे, उनसे पहले एनडीए ने अपने कुछ वादों को लागू कर दिया था। तेजस्वी यादव जातिगत समीकरण में उलझे रहे, बिहार में एनडीए ने सुशासन, कानून व्यवस्था, विकास और रोजगार के मुद्दे पर चुनाव अपने पक्ष में कर लिया।
