डॉक्टर और मरीज के बीच रिश्ता, विश्वास, भरोसे और उम्मीद का होता है। भारतीय परंपरा में डॉक्टर को भगवान के तौर पर देखा जाता है। मौत के मुंह से लोगों को खींचकर जीवनदान देने वाला डॉक्टर ही जब आतंक पेशा चुन ले तो दुनिया का हैरान होना लाजिमी है। 10 नवंबर की शाम जब लाल किले के पास बम धमाका हुआ तो पूरा देश सन्न रहा गया। मगर जब खुलासा हुआ कि इसको अंजाम एक डॉक्टर ने दिया तो लोगों की हैरानी और बढ़ गई। आरोपी की पहचान डॉ. उमर के तौर पर हुई। वह फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ा है। 

 

इसी यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. मुजम्मिल अहमद गनई और सहारनपुर से डॉ. अदिल राथर को सुरक्षा एजेंसियां 360 किलो विस्फोटक मामले में पकड़ चुकी हैं। कुछ दिन पहले ही गुजरात एटीएस ने डॉक्टर अहमद मोहिउद्दीन सैयद को दबोचा था। उस पर राइसिन जैसा घातक जहर बनाने का आरोप है। डॉक्टरों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने से पूरा भारत हैरान जरूर है। मगर यह कोई पहला मौका नहीं जब किसी डॉक्टर ने आतंक का रास्ता अख्तियार किया है। इससे पहले भी कई डॉक्टर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों को दहला चुके हैं। आज बात उन्हीं आतंक के डॉक्टरों की...

 

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अयमान अल-जवाहिरी: अमेरिकी ड्रोन हमले में 71 वर्ष की उम्र में अयमान अल-जवाहिरी की साल 2022 में काबुल में मौत हुई। ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल-जवाहिरी को ही अल-कायदा की कमान सौंपी गई थी। अल-जवाहिरी का जन्म मिस्र की राजधानी काहिरा से सटे मादी कस्बे में हुआ था। जवाहिरी का परिवार बेहद शिक्षित था। उसके पिता मोहम्मद रबी अल-जवाहिरी काहिरा विश्वविद्यालय में औषध विज्ञान के प्रोफेसर थे। उसके दादा अल-अजहर विश्वविद्यालय के ग्रैंड इमाम थे। छोटे चाचा मिस्र की लेबर पार्टी के अध्यक्ष थे। वहीं बड़े चाचा अब्देल-रहमान अज्जम अरब लीग के पहले महासचिव थे। 

 

जवाहिरी के मां उमायमा अज्जम का भी संबंध सियासी खानदान से था। अल-जवाहिरी ने काहिरा विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। साल 1974 में उसने डॉक्टर की उपाधि ली। उसके बाद सर्जरी में मास्टर की डिग्री थी। मिस्र की सेना में भी प्रैक्टिस कर चुका था। उसे अरबी के अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा आती थी। 1978 में अज्जा नोवारी से शादी करने के बाद अल-जवाहिरी पाकिस्तान चला आया था। 2011 में लादेन की मौत के बाद जवाहिरी को अल कायदा की कमान सौंपी गई थी। 

 

बिलाल अब्दुल्ला: साल 2007 में यूनाइटेड किंगडम (यूके) के ग्लासगो एयरपोर्ट को उड़ाने की कोशिश की गई थी। इराक के डॉक्टर बिलाल अब्दुल्ला ने भारत में जन्म कफील अहमद थे के साथ मिलकर इंग्लैंड को दहलाने की साजिश रची थी। हालांकि एक खंभे ने भीषण जनहानि रोक दी थी। आरोपियों ने प्रोपेन गैस सिलेंडरों और पेट्रोल से लदी जीप को एयरपोर्ट के गेट पर भिड़ा दी थी। उस वक्त टर्मिनल के अंदर करीब 4000 लोग मौजूद थे। 

 

गनीमत रही कि जीप में धमाका नहीं हुआ। इसके बाद बिलाल अब्दुल्ला यात्री पर पेट्रोल बम से हमला किया। वहीं काफिल अहमद ने खुद को आग लगा ली थी। अस्पताल में उसकी मौत हो गई। वहीं इंग्लैंड की कोर्ट से अब्दुल्ला को 32 साल की सजा हुई है।

 

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डॉ. निदाल हसन: 5 नवंबर 2009 को अमेरिका के टेक्सास का फोर्ट हूड गोलीबारी से दहल उठा था। आतंकी हमले में करीब 13 लोगों की जान गई थी और 30 से अधिक लोग घायल हुए थे। वरदात को अंजाम मेजर निदाल हसन ने दिया था। वह अमेरिका सेना में मनोचिकित्सक था। सभी मृतक अमेरिकी सेना के कर्मचारी थे। आरोपी निदाल हसन एक समय अफगानिस्तान में भी तैनात रहा चुका है। अमेरिका की सैन्य अदालत से उसे फांसी की सजा मिल चुकी है। 

 

डॉ. रफीक साबिर: रफीक साबिर अमेरिका के फ्लोरिडा में डॉक्टर था। उसे साल 2007 में अल कायदा से जुड़े होने का दोषी पाया गया। तारिक शाह नाम एक उसका एक साथी भी पकड़ा गया था।  दोनों अल कायदा के आंतकी नेटवर्क का हिस्सा था। अदालत ने खुद यह बात कबूली थी। इसके बाद उन्हें 25 साल की सजा सुनाई गई। उस वक्त अल कायदा की कमान कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन के हाथ में थी। 

 

डॉ. मुहम्मद अब्दुल्ला अल-नाफी: डॉक्टर से आतंकी बना अब्दुल्ला अल-नाफी का सऊदी अरब का रहने वाला था। उसका संबंध आईएसआईएस से थे। उस पर सीरिया में मेडिकल यूनिट चलाने का आरोप था। यहां आईएसआईएस के लड़ाकों का इलाज होता था। सऊदी अरब एक अन्य डॉक्टर अफीफ अब्दुल लतीफ अल-जुहानी अल-कायदा से जुड़ा था। उसे जिहाद के नाम पर डॉक्टरों की भर्ती की। इसकी जड़े पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक फैली रही।