पिछले हफ्ते बरेली में हुई हिंसा के बाद मौलाना तौकीर रजा को गिरफ्तार कर लिया गया। काफी हो-हल्ला हुआ। उनके साथ 39 अन्य लोगों के नाम से भी एफआईआर दर्ज की गई थी। कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा कि मस्जिद नमाज पढ़ने के लिए होती है न कि बाहर निकलकर विरोध प्रदर्शन करने के लिए।

 

‘आई लव मोहम्मद’ विवाद मामले में मौलाना तौकीर रजा ने लोगों को सड़कों पर उतने के लिए कहा था। पुलिस का कहना है कि उनके उकसाने की वजह से सारा बवाल हुआ। प्रशासन ने मौके पर शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हाई अलर्ट जारी किया था ताकि किसी तरह की अव्यवस्था न फैले फिर भी लोग सड़कों पर निकल आए।

 

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पुलिस के मुताबिक लोगों ने हाथों में पोस्टर-बैनर लेकर बैरिकेडिंग को तोड़ने की कोशिश की। पुलिस ने भीड़ को समझाने की कोशिश की लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। पुलिस के मुताबिक भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और आगे बढ़ने लगे जिसके बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।

 

प्रशासन ने भीड़ के उकसाने के लिए मौलान तौकीर रजा पर आरोप लगाया। तो जानते हैं कि कौन हैं मौलाना तौकीर रजा?

बरेलवी संप्रदाय से

मौलाना तौकीर रजा सुन्नी मुसलानों के बरेलवी संप्रदाय से हैं। बरेलवी संप्रदाय से उनके जुड़ाव की जड़ें काफी गहरी हैं। उनके परदादा अहमद रजा खान बरेलवी आंदोलन के संस्थापक थे। वह इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) के अध्यक्ष हैं और खुद को मुसलमानों का बहुत बड़ा पैरोकार मानते हैं। यह पहला मामला नहीं है जब उनके ऊपर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा है। इसके पहले साल 2010 में बरेली में दंगे करवाने का भी आरोप उनके ऊपर लगा था।

ज्ञानवापी पर भी किया था बवाल

इसके अलावा भीड़ को भड़काने और उकसाने का उनके ऊपर पहले भी आरोप लगा था। ज्ञानवापी ढांचे को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू होने पर 'जेल भरो' आंदोलन की घोषणा की थी और इस दौरान भी उनके कहने पर लोग सड़कों पर उतरे थे। 

 

ऐसे ही हल्द्वावानी में भी अतिक्रमण हटाने के दौरान जब प्रशासन द्वारा कार्रवाई की गई थी तो भी तौकीर ने भड़काऊ भाषण दिए थे। उन्होंने कहा था कि अगर कोर्ट संज्ञान नहीं ले रहा तो हम अपनी हिफाजत खुद करेंगे। हमें कानूनी अधिकार है कि अगर हमारे ऊपर हमला होता है तो हम उसको जान से मार दें। हिंदू राष्ट्र के विरोध में भी उन्होंने विवादित बयान दिया था।

बनाई थी राजनीतिक पार्टी

तौकीर रजा सिर्फ धार्मिक नेता ही नहीं हैं बल्कि उन्होंने साल 2001 में इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद नाम की एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई थी। हालांकि, बाद में 2009 में उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया था।

 

फिर वह 2012 के चुनाव के दौरान उन्होंने समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था और भोजीपुरा से उनकी पार्टी को जीत भी हासिल हुई थी, लेकिन मुजफ्फरपुर दंगे के बाद वह समाजवादी पार्टी से अलग हो गए।

 

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बीएसपी का भी किया समर्थन

सपा के साथ छोड़ने के बाद उन्होंने 2014 में बीएसपी का समर्थन किया था। इसके अलावा उन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ भी बयान दिया था और तस्लीमा नसरीन के खिलाफ भी फतवा जारी किया था। 

 

उन्होंने जेल में आजम खान से भी मुलाकात की थी और योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ भी बयान दिया था कि हर जुल्म का हिसाब लिया जाएगा।