पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में गंगा के शांत तट पर स्थित बेलूर मठ श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र माना जाता है। स्वामी विवेकानंद के जरिए स्थापित यह आध्यात्मिक स्थल केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि तीनों प्रमुख धर्मों, हिंदू, इस्लाम और ईसाई की वास्तुकला का संगम है, जो दुनिया को धार्मिक एकता और सद्भाव का संदेश देता है। रामकृष्ण परमहंस, देवी शारदा और स्वामी विवेकानंद की ऊर्जा से जुड़ा माना जाने वाला यह परिसर सालों से श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है।
गौरतलब है कि बेलूर मठ से कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति अद्भुत शांति और मानसिक सुकून का अनुभव करता है। यही वजह है कि देश और दुनिया के लाखों भक्त इस मठ में पहुंचकर न केवल भगवान रामकृष्ण परमहंस की पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि स्वामी विवेकानंद के समाधि स्थल पर भी अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। वास्तुकला की अनोखी शैली और गंगा किनारे का अलौकिक वातावरण बेलूर मठ को देश के सबसे आध्यात्मिक रूप से जीवंत स्थानों में शामिल करता है।
यह भी पढ़ें: 16 नवंबर या 17 किस दिन मनाई जाएगी वृश्चिक संक्रांति? यहां जानें पूजा विधि
बेलूर मठ से जुड़ी मान्यता
रामकृष्ण परमहंस, देवी शारदा और स्वामी विवेकानंद की ऊर्जा से बना स्थान
मान्यता है कि यह स्थान तीनों, रामकृष्ण परमहंस, देवी शारदा देवी और स्वामी विवेकानंद की दिव्य ऊर्जा का केंद्र है। यहां आने वाला हर व्यक्ति आध्यात्मिक शांति महसूस करता है।
विश्व के सभी धर्मों को एक साथ जोड़ने की भावना
स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि भारत विश्व को यह संदेश दे कि 'सभी धर्म एक हैं।' इसलिए मठ को ऐसे डिजाइन किया गया है कि इसमें हिंदू, इस्लाम और ईसाई सभ्यता का संगम दिखे। यहां आने से मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। लोगों का मानना है कि बेलूर मठ में ध्यान और प्रार्थना करने से मानसिक तनाव दूर होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
यह भी पढ़ें: हिंदू-मुस्लिम करते हैं एक साथ पूजा, क्या है सुंदरवन की बोनबिबि देवी की कहानी?
बेलूर मठ की विशेषताएं
धर्मों का संगम
मठ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी संरचना में हिंदू मंदिर, ईसाई चर्च और इस्लामी मस्जिद तीनों की झलक दिखाई देती है। इसे विश्व में धार्मिक सद्भाव का सबसे बड़ा प्रतीक भी कहा जाता है।
शांति और अनुशासन का वातावरण
यहां प्रवेश करते ही अद्भुत शांति का अनुभव होता है। यह स्थान भीड़ और शोर से दूर, गंगा नदी के किनारे स्थित है।
स्वामी विवेकानंद का समाधि स्थल
मठ परिसर में स्वामी विवेकानंद के पार्थिव शरीर को यहीं समाधि दी गई थी। यहां उनकी याद में ध्यान केन्द्र भी बनाया गया है।
इस मठ में किसकी पूजा होती है?
इस विशाल मंदिर में मुख्य रूप से भगवान रामकृष्ण परमहंस की पूजा होती है। इसके अलावा देवी शारदा देवी, स्वामी विवेकानंद के भी पूजा-स्थल और स्मारक बने हुए हैं।
इस मंदिर में सुबह-शाम वैदिक मंत्रोच्चार, भजन, ध्यान और आरती होती है।
बेलूर मठ से जुड़ी कथा
स्वामी विवेकानंद का सपना
1897 में शिकागो से लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसा स्थान बनाने का निश्चय किया जहां युवाओं को शिक्षा, जनता को सेवा और साधकों को आध्यात्मिक साधना मिल सके।
इसी विचार से बेलूर मठ अस्तित्व में आया।
कहानी - 'मेरे गुरु का घर ऐसा होगा…'
स्वामी विवेकानंद कहते थे, 'मेरा गुरु सबको अपनाने वाला था, उसका घर भी वैसा ही होगा।' इसी भावना से इस मंदिर को ऐसे बनाया गया, जहां सभी धर्मों के लोग बिना भेदभाव आ सकें।
देवी गंगा का आशीर्वाद
कहते हैं कि जब मठ बनाने के लिए जगह खोजी जा रही थी, तब स्वामी विवेकानंद को यह स्थान दिव्य लगा एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ प्राकृतिक शांति। उन्होंने इसे ही मठ के लिए चुना था।
बेलूर मठ की बनावट की विशेषताएं
हिंदू, मुस्लिम और ईसाई वास्तुकला का अनोखा मिश्रण
सामने का बड़ा गुंबद मस्जिद जैसा लगता है। मुख्य ढांचा दक्षिण भारतीय मंदिर जैसा लगता है। वहीं, खिड़कियों और मेहराबों में ईसाई चर्च की झलक देखने को मिलती है और छतों पर बंगाल की परंपरागत ‘ढाकाई’ शैली में नक्काशी की गई है। मंदिर के अंदर बनी दिवारों में कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है, जिससे मंदिर का वातावरण ठंडा और शांत बना रहता हैं। गंगा के किनारे बना यह मठ करीब 40 एकड़ में फैला हुआ है।
