उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में स्थित अब्दुल समद का मकबरा सुर्खियों में है। अबु नगर में हिंदू संगठनों के हजारों कार्यकर्ता अचानक मकबरे के बाहर जमा हो गए और मकबरा गिराने की कोशिशें करने लगे। पुलिस ने बल प्रयोग से इन्हें रोकने की कोशिश की। सोमवार सुबह, सैकड़ों हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ता मकबरे के भीतर घुस गए और तोड़फोड़ करने लगे। मकबरे के आसपास बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे फिर भी वे नहीं रुके।
प्रदर्शनकारियों को मकबरे के भीतर दाखिल होने से पुलिस ने रोका। प्रदर्शनकारियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि तमाम रोक के बाद भी वे मकबरे के भीतर घुसने में कामयाब रहे। अब्दुल समद के मकबरे के बाहर अब हालात तनावपूर्ण हैं। मकबरे के बाहर खड़े लोग नारेबाजी कर रहे हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें यहां पूजा का हक दिया जाए।
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फतेहपुर, जिला मजिस्ट्रेट, रविंद्र सिंह:-
हमले लोगों को आश्वस्त किया है कि कानून व्यवस्था किसी भी हाल में नहीं बिगड़ने दिया जाएगा। यहां से लोग अब हट गए हैं। अब कानून व्यवस्था नियंत्रण में है। हमारी पहली चिंता थी कि इलाके में शांति बनी रहे। लोगों ने पुलिस पर भरोसा जताया है।
क्या चाहते हैं हिंदू संगठन?
हिंदू संगठनों का कहना है कि जहां आज मकबरा बना है, वहां कभी शिव मंदिर था। अब मकबरा को गिरा देना चाहिए, जिससे भगवान शिव की पूजा अर्चना फिर से शुरू हो सके। यह हिंदुओं के अधिकार का मामला है। हिंदुओं के हितों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
क्या है मकबरे का इतिहास?
फतेहपुर के रेडइया इलाके में यह मकबरा स्थित है। करीब 200 साल पहले इसका निर्माण हुआ है। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने पहले ही कहा था कि 11 अगस्त से मकबरे पर पूजा पाठ शुरू की जाएगी। सोमवार सुबह होते ही बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी यहां पहुंचने लगे। मकबरे के बाहर हिंदू संगठनों के लोग जुड़ने लगे। कुछ उपद्रवियों ने मकबरे को तोड़ने की कोशिश भी की।
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अब्दुल समद कौन थे?
अब्दुल समद फतेहपुर सीकरी के एक बड़े प्रसिद्ध फारसी चित्रकार थे। वह मुगल बादशाह अकबर के दरबार में काम करते थे, चित्रकला बनाने थे। उन्होंने मुगलकालीन शिल्प कला को नई दिशा दी थी। वह करीब 80 साल तक जीवित रहे, उन्हें राजकीय संरक्षण भी मिलता रहा। उनकी कई चित्रकलाएं आज भी रखी गई हैं। वह फतेहपुर के शाही टकसाल के अधिकारी भी थे। वह 16वीं सदी के मशहूर चित्रकार थे। वह ईरान से आए थे। उनकी कृतियों में हमजानामा, निजामी के खमसे शुमार हैं। वह हुमायूं और अकबर दोनों के दरबार में काम कर चुके थे। अब उनके मकबरे को मंदिर बताया जा रहा है।
