भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आम लोगों को डिजिटल गोल्ड और ई-गोल्ड में इन्वेस्ट करने से सावधान किया है। पिछले एक साल में सोने के दाम बहुत तेजी से बढ़े हैं, जिससे लोगों ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए डिजिटल गोल्ड खरीदने का ट्रेंड काफी बढ़ गया है। यह तरीका सुविधाजनक लगता है, लेकिन सेबी का कहना है कि ये प्रोडक्ट्स किसी भी रेग्युलेटर के दायरे में नहीं आते। इसलिए इनमें इन्वेस्ट करना जोखिम भरा हो सकता है।
डिजिटल गोल्ड का मतलब है बिना फिजिकल फॉर्म में पाए सोना खरीदना। इसका दाम असली सोने के दाम से जुड़ा रहता है। यह ब्लॉकचेन तकनीक से बनाया जाता है। इसमें आप इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सोना खरीद सकते हैं, बेच सकते हैं और रख सकते हैं।
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आसान है खरीदना
इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे खरीदना बहुत आसान है। आप थोड़े से पैसे से भी शुरू कर सकते हैं। असली सोने की तरह बड़ा इन्वेस्ट करने की जरूरत नहीं पड़ती। स्टोर करने की टेंशन भी नहीं रहती। जरूरत पड़ने पर इसे असली सोने के रूप में बदलवाया जा सकता है।
पिछले एक साल में एमसीएक्स स्पॉट गोल्ड का दाम 59 फीसदी बढ़ गया है। एक साल पहले 10 ग्राम सोना 76,577 रुपये का था, जो अब 1.22 लाख रुपये तक पहुंच गया है। इसी तेजी ने लोगों को डिजिटल गोल्ड की तरफ आकर्षित किया है।
सेबी ने चेतावनी क्यों दी?
सेबी ने देखा है कि कई डिजिटल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म डिजिटल गोल्ड या ई-गोल्ड में इन्वेस्टमेंट का मौका दे रहे हैं। इन्हें असली सोने का आसान विकल्प बताया जाता है। लेकिन सेबी ने साफ कहा है कि ये प्रोडक्ट्स उसके द्वारा रेग्युलेटेड गोल्ड से जुड़े प्रोडक्ट्स से अलग हैं। इन्हें न तो सिक्योरिटी माना गया है और न ही कमोडिटी डेरिवेटिव्स के तहत लाया गया है।
सेबी के अनुसार, डिजिटल गोल्ड पूरी तरह से रेग्युलेशन के बाहर काम करता है। इसमें इन्वेस्टर्स को काउंटरपार्टी रिस्क और ऑपरेशनल रिस्क का बड़ा खतरा रहता है। अगर प्लेटफॉर्म डिफॉल्ट कर जाए तो पैसा डूब सकता है। सेबी ने कहा, ‘ऐसे डिजिटल गोल्ड/ई-गोल्ड प्रोडक्ट्स में इन्वेस्टमेंट पर सिक्योरिटीज मार्केट के तहत कोई इन्वेस्टर सिक्युरिटी उपलब्ध नहीं होगी।’
क्या है सुरक्षित
गोल्ड ईटीएफ या कमोडिटी डेरिवेटिव्स की तरह इसमें डीमैट अकाउंट या मार्जिन जमा करने की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए लोग इसे ज्यादा पसंद करने लगे हैं। संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के जौहरी भी डिजिटल गोल्ड में इन्वेस्ट करने का मौका दे रहे हैं।
एक मार्केट विशेषज्ञ ने बताया, 'डिजिटल गोल्ड ओवर-द-काउंटर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) जैसा है। इसमें काउंटरपार्टी रिस्क रहता है यानी डिफॉल्ट का खतरा। यही सेबी की सबसे बड़ी चिंता है।' सोशल मीडिया पर भी डिजिटल गोल्ड को आकर्षक इन्वेस्टमेंट विकल्प के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ी है।
इन्वेस्टर्स को क्या करना चाहिए?
विशेषज्ञों का कहना है कि जोखिम से बचना चाहते हैं तो सेबी द्वारा नियंत्रित गोल्ड प्रोडक्ट्स में ही पैसा लगाएं। सेबी के मुताबिक म्युचुअल फंड कंपनियों द्वारा ऑपरेट किए जाने वाले गोल्ड ईटीएफ, सरकार द्वारा जारी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी), स्टॉक एक्सचेंड पर ट्रेड होने वाले इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीट (ईजीआर) और एमसीएक्स और एनएसई पर ट्रेड होने वाले कमोडिटी डेरिवेटिव्स को खरीदा सुरक्षित रहेगा।
इनमें सेबी रजिस्टर्ड ब्रोकरों के जरिए इन्वेस्टमेंट होता है और पूरा रेग्युलेशन सेबी के पास रहता है। कोटक सिक्योरिटीज के कमोडिटी और करेंसी हेड अनिंद्य बनर्जी ने कहा, 'इन्वेस्टर्स को गोल्ड ईटीएफ, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड या एमसीएक्स-एनएसई पर ट्रेड होने वाले कमोडिटी डेरिवेटिव्स चुनने चाहिए। इनमें काउंटरपार्टी और ऑपरेशनल रिस्क बहुत कम होता है।'
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एमसीएक्स और एनएसई जैसे नियंत्रित एक्सचेंजों पर सख्त रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम, मार्जिन रूल और रोजाना मार्क-टू-मार्केट सेटलमेंट होता है। सारे ट्रेड क्लियरिंग कॉर्पोरेशन गारंटी देते हैं, इसलिए डिफॉल्ट का खतरा खत्म हो जाता है। पारदर्शी दाम और सेबी का मजबूत निगरानी तंत्र इनको और सुरक्षित बनाता है।