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ध्रुवीकरण या कुछ और? किसके पक्ष में जाएगा सीमांचल का बढ़ा वोट प्रतिशत?

बिहार में सीमांचल में बढ़े वोट प्रतिशत ने सबके कान खड़े कर दिए हैं और लोगों के दिमाग में एक ही बात चल रही है कि यह किसके पक्ष में जाएगा।

Nitish Kumar and Tejashwi Yadav । Photo Credit: PTI

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव । Photo Credit: PTI

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संजय सिंह, पटना: सीमांचल के चार जिलों की 24 सीटों पर वोटिंग के पिछले सारे रिकॉर्ड टूट गए। वोटिंग के प्रतिशत को बढ़ते देख राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ गई है। यहां के मतदाताओं का मन चुनावी हिसाब से बदलता है। इस क्षेत्र में एआईएमआईएम के प्रमुख अससुद्दीन ओवैसी की पकड़ मजबूत है। मजबूत पकड़ के कारण ही 2020 के चुनाव में ओवैसी ने सीमांचल की पांच सीटें जीतकर महागठबंधन को मुसीबत में डाल दिया था। विधानसभा चुनाव से पहले ओवैसी लगातार महागठबंधन का हिस्सा बनने का प्रयास करते रहे, लेकिन न तो कांग्रेस ने और न ही आरजेडी ने ओवैसी को महागठबंधन में घुसने का मौका दिया। इससे ओवैसी और महागठबंधन के बीच राजनीतिक रिश्ता 36 का हो गया। 

 

अन्य चुनावों की तरह इस बार भी सीमांचल का इलाका सभी दलों के लिए फोकस में रहा। यहां लोकसभा की 4 और विधानसभा की 24 सीटें है। एनडीए और महागठबंधन के साथ साथ एआईएमआईएम भी सीमांचल के राजनीतिक जमीन पर खूब पसीने बहाए। एनडीए के नेताओं ने यहां वोटरों को घुसपैठिये के खतरे से डराते रहे। नीतीश कुमार के कार्यकाल में वे विकास कार्यों का भी जमकर हवाला दिया गया। उधर महागठबंधन ने एसआईआर के खिलाफ रैली निकालकर अल्पसंख्यकों को यह बताने की कोशिश की कि एनडीए में खासकर बीजेपी अल्पसंख्यकों से वोट का हक छीनना चाहती है।

 

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ओवैसी की पैठ

ओवैसी सीमांचल में गरीबी, पिछड़ापन और मुसलमानों की हकमारी का मुद्दा लगातार उठाते रहे। ओवैसी के खिलाफ महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव द्वारा की गई टिप्पणी का मामला भी पूरे सीमांचल में राजनीतिक रूप से छाया रहा। घुसपैठियों के सवाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का जोरदार भाषण हुआ। इस कारण सीमांचल में वोटों का ध्रुवीकरण भी हुआ। ध्रुवीकरण का नतीजा यह रहा कि दोनों ध्रुव के वोटरों ने दिल खोलकर अपने अपने उम्मीदवारों के पक्ष में वोट किया। 

ध्रुवीकरण से बढ़े वोट प्रतिशत 

पूरे प्रदेश में अल्पसंख्यकों की आबादी सीमांचल में सर्वाधिक है। बीते लोकसभा चुनाव में सीमांचल की चार सीटों में से तीन पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी की जीत हुई थी। अल्पसंख्यक वोटों की गोलबंदी महागठबंधन के पक्ष में जमकर हुई थी। कटिहार और पूर्णिया लोकसभा सीट पर जेडीयू का कब्जा था। दोनों सीटें कांग्रेस के कब्जे में चली गईं। आंकड़े बताते है कि किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 43 प्रतिशत, अररिया में 42 प्रतिशत और पूर्णिया में 38 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। यहीं से बांग्लादेशी घुसपैठ का तूफान उठा और ध्रुवीकरण की राजनीति परवान पर चढ़ाने की कोशिश हुई। परिणाम यह हुआ कि चारो जिलों में पिछले चुनाव के मतदान के सारे रिकॉर्ड टूट गए। 

 

कटिहार जिले में 2020 के चुनाव में 63.87 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जबकि इस चुनाव में 78.46 प्रतिशत वोट डाले गए। सीमांचल में सबसे ज्यादा वोट कटिहार में ही डाला गया। इसी तरह किशनगंज में पिछले विधानसभा चुनाव में 62.63 प्रतिशत वोट डाले गए थे। इस चुनाव में 77.97 प्रतिशत वोट डाले गए। पूर्णिया का भी हाल कुछ ऐसा था। पूर्णिया में 2020 के विधानसभा चुनाव में 61.80 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जबकि इस चुनाव में 77.89 प्रतिशत वोट डाले गए।

 

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नेताओं की बढ़ी बेचैनी

अररिया का भी हाल कुछ बेहतर रहा। 2020 के चुनाव में 59.56 प्रतिशत वोट डाले गए थे, जबकि 2025 के चुनाव में 69.59 प्रतिशत वोट डाले गए। बढ़े हुए वोट प्रतिशत ने नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी है। नेताओं को यह बात समझ में नहीं आ रहा है कि सीमांचल में घुसपैठियों का मुद्दा हावी रहा या फिर एसआईआर के विरोध का। कुछ लोग ओवैसी द्वारा अल्पसंख्यकों की राजनीतिक हकमारी मुद्दे को भी गंभीर बता रहे हैं।

 


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