केरल के तिरुवनंतपुरम के रहने वाले 22 वर्षीय जैनविन क्लीटस ने राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) में दाखिले का आवेदन किया। सभी शर्तें पूरी करने के बाद चयन प्रक्रिया में उन्हें शामिल किया गया। मगर इंटरव्यू राउंड से उन्हें बाहर होना पड़ा। इसकी वजह यह थी कि वह ट्रांसजेंडर हैं। उन्हें बताया गया कि वह एनसीसी के लिए अयोग्य हैं। इसके बाद जैनविन ने केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की। मगर न्यायमूर्ति एन. नागरेश की पीठ ने उनकी यह याचिका खारिज कर दी और कहा कि मौजूदा कानून में सिर्फ महिला और पुरुष के दाखिले का प्रावधान है। हालांकि पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय युवा कार्यक्रमों में ट्रांसजेंडर को बराबर का मौका मिलना चाहिए। उसने केंद्र सरकार से भी समावेशी सुधार पर विचार करने का आग्रह किया।
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि राष्ट्रीय कैडेट कोर अधिनियम- 1948 के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकते हैं। इसमें सिर्फ दो लिंगों के दाखिले का प्रावधान है। अपनी याचिका में जैनविन क्लीटस ने बताया कि उन्होंने 30(के) बटालियन कालीकट ग्रुप में दाखिले का आवेदन किया था। वह सभी शर्तों को पूरा करता था। उसे सिलेक्शन प्रोसेस में शामि किया गया, लेकिन जब इंटरव्यू में खुलासा हुआ कि वह ट्रांसजेंडर है तो उसे अयोग्य करार दिया गया।
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जैनविन क्लीटस का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 में उल्लेखित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि लैंगिक पहचान के कारण अयोग्य ठहराया गया। केंद्र और केरल और एनसीसी निदेशालय ने 1948 अधिनियम की धारा 6 का हवाला दिया और प्रावधान का बचाव किया। सरकार ने कहा कि एनसीसी की संरचना और ट्रेनिंग वातावरण में शारीरिक अभ्यास, फील्ड कैंप और साझा आवास शामिल हैं। कैडेट की भलाई और सुरक्षा की खातिर लिंग भेद जरूरी है।
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अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर छात्रों को भी एनसीसी ट्रेनिंग में अवसर मिलना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इसके लिए विधायी हस्तक्षेप और नीति अध्ययन की जरूरत होगी। पीठ ने रजिस्ट्री को आदेश की एक कॉपी नीतिगत विचार विमर्श के लिए रक्षा मंत्रालय और विधि मंत्रालय को भेजने को कहा।