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लाल किला ब्लास्ट से चर्चा में आई अल-फलाह यूनिवर्सिटी की कहानी क्या है?

लाल किला के पास हुए ब्लास्ट के बाद फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी भी चर्चा में आ गई है। इसी यूनिवर्सिटी के दो डॉक्टरों को गिरफ्तार भी किया गया है। क्या है इसकी कहानी है? जानते हैं।

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अल-फलाह यूनिवर्सिटी। (Photo Credit: PTI)

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लाल किला के पास ब्लास्ट 10 नवंबर की शाम 6 बजकर 52 मिनट पर कार में ब्लास्ट हुआ था। इसमे 12 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें डॉ. उमर मोहम्मद का नाम सामने आ रहा है, जो कथित तौर पर वही ह्युंडई i20 कार चला रहा था, जिसमें ब्लास्ट हुआ था। डॉ. उमर मोहम्मद भी इस ब्लास्ट में मारा गया है या नहीं? इसके लिए उसकी मां का ब्लड सैंपल लिया गया, ताकि डीएनए जांच की जा सके।


इस पूरे मामले में फरीदाबाद की 'अल-फलाह यूनिवर्सिटी' भी केंद्र में आ गई है। हाल ही में पुलिस ने 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' का पर्दाफाश करते हुए डॉ. मुजम्मिल गनई और डॉ. शाहीन सईद को गिरफ्तार किया था। इनके पास से विस्फोटक और हथियार भी बरामद हुए थे। पुलिस का कहना है कि डॉ. उमर मोहम्मद भी डॉ. मुजम्मिल और डॉ. शाहीन से जुड़ा हुआ था।


पुलिस का मानना है कि डॉ. मुजम्मिल और डॉ. शाहीन की गिरफ्तारी से घबराकर ही डॉ. उमर मोहम्मद ने हड़बड़ी में धमाका कर दिया। 


अब पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि कैसे अल-फलाह यूनिवर्सिटी ऐसे लोगों का ठिकाना बन गई, जहां कथित तौर पर पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले लोग काम कर रहे थे। हालांकि, यूनिवर्सिटी का कहना है कि उनका उन लोगों से कोई संबंध नहीं है, सिवाय इसके कि वे यहां काम करते थे।

 

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यूनिवर्सिटी बोली- हमारा कोई लेना-देना नहीं

इस मामले में अल-फलाह यूनिवर्सिटी भी केंद्र में आ गई है। यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ. भूपिंदर कौर ने इसे लेकर एक बयान जारी किया है और कहा है जिन दो डॉक्टरों को हिरासत में लिया गया है, उनसे यूनिवर्सिटी का कोई लेना-देना नहीं है, सिवाय इसके कि वे यहां काम करते थे।


बयान में कहा गया है, 'हमें उन अफसोसजनक घटनाओं से बहुत दुख हुआ और हम उनकी कड़ी निंदा करते हैं। हमें पता चला है कि हमारे दो डॉक्टरों को जांच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है। विश्वविद्यालय का इन लोगों से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है, वे सिर्फ अपने आधिकारिक कर्तव्यों में यहां काम करते हैं।'

 

 

यूनिवर्सिटी ने आगे कहा, 'विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी तरह का ऐसा रसायन या सामग्री का भंडारण नहीं किया जा रहा है, जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है। विश्वविद्यालय की लैब भी सिर्फ पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए है।'

 

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अल-फलाह यूनिवर्सिटी क्या है?

यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, अल-फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना हरियाणा विधानसभा की ओर से पास हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटी ऐक्ट के तहत की गई थी।


इसकी शुरुआत 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में हुई थी। 2013 में अल-फलाह इंजीनियरिंग कॉलेज को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) की नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC) से 'A' कैटेगरी की मान्यता मिली थी। 2014 में हरियाणा सरकार ने इसे 'यूनिवर्सिटी' का दर्जा दिया था। अल-फलाह मेडिकल कॉलेज भी इसी यूनिवर्सिटी से संबद्ध है।


कई विशेषज्ञों के अनुसार, अपने शुरुआती सालों में अल-फलाह यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक छात्रों के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के एक विकल्प के रूप में सामने आया।

 

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कौन संभालता है इस यूनिवर्सिटी को?

दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से केवल 30 किलोमीटर दूर स्थित इस विश्वविद्यालय का प्रबंधन अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट करता है, जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी।


ट्रस्ट के अध्यक्ष जवाद अहमद सिद्दीकी हैं। उपाध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल्ला कासिमी एम ए और सचिव मोहम्मद वाजिद डीएमई हैं। अल-फलाह विश्वविद्यालय के वर्तमान रजिस्ट्रार प्रोफेसर (डॉ.) मोहम्मद परवेज हैं। डॉ. भूपिंदर कौर आनंद इसकी कुलपति हैं।

मरीजों का होता है मुफ्त इलाज

यह विश्वविद्यालय तीन कॉलेजों में शिक्षा देता है। इसमें अल-फलाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, ब्राउन हिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, और अल-फलाह स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग शामिल हैं। इस विश्वविद्यालय में 650 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी है, जहां मरीजों का मुफ्त में इलाज किया जाता है।

 

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डॉ. उमर मोहम्मद का कनेक्शन क्या?

डॉ. मुजम्मिल गनई और डॉ. शाहीन सईद अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे। पुलिस ने बताया कि डॉ. उमर मोहम्मद भी इसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर था। डॉ. मुजम्मिल भी पुलवामा के उसी कोइल गांव के रहने वाले हैं, जहां से डॉ. उमर मोहम्मद का ताल्लुक है। माना जा रहा है कि डॉ. उमर भी उसी 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' का हिस्सा था। 


डॉ. मुजम्मिल जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़े थे। डॉ. शाहीन भी जैश की महिला विंग जमात-उल-मोमिनात की जिम्मेदारी संभाल रही थी। इसका काम महिला आतंकियों की भर्ती करना था।

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