logo

ट्रेंडिंग:

हरसिद्धि मंदिर: जहां गिरी थी देवी सती की कोहनी, चंड-मुंड से जुड़ी है मान्यता

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता के अनुसार, इस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी।

Harsiddhi mandir

हरसिद्धि मंदिर की तस्वीर: Photo Credit: Wikipedia

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि माता मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह प्राचीन धाम अपनी रहस्यमयी मान्यताओं, अद्भुत परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। लगभग दो हजार साल पुराने माने जाने वाले इस मंदिर में श्रद्धालु देवी की विशेष पूजा करते हैं। मंदिर परिसर में स्थित ऊंचे दीप-स्तंभ, चारों दिशाओं में बने भव्य प्रवेश द्वार और प्राचीन बावड़ी इस स्थल की भव्यता को और बढ़ा देते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जिस स्थान पर यह मंदिर बना है वहीं माता सती की कोहनी गिरी थी, यही वजह है कि यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है।

 

धार्मिक इतिहास में वर्णित चंड-मुंड वध की कथा से जुड़े ‘हरसिद्धि’ नाम की उत्पत्ति हो या फिर राजा विक्रमादित्य की साधना से जुड़ी लोककथाएं, यह मंदिर अपने भीतर कई रहस्य और पौराणिक प्रसंग समेटे हुए है। मंदिर में बलि प्रथा नहीं है और यहां की सबसे अनोखी परंपरा है विशाल दीप-स्तंभों पर दीप-प्रज्ज्वलन, जिसे भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने वाला उपाय मानते हैं। 

 

यह भी पढ़ें: बेलुर मठ: हिंदू, मुस्लिम और ईसाई वास्तुकला से कैसे तैयार हुआ मंदिर?

 

चार दिशाओं में बने हैं प्रवेश द्वार

हरसिद्धि मंदिर में कुल चार मुख्य द्वार बने हुए हैं, जिनकी बनावट बेहद सुंदर है। मंदिर के दक्षिण-पूर्व हिस्से में एक पुरानी बावड़ी भी मौजूद है। इसी बावड़ी के भीतर एक पत्थर का स्तंभ है, जिस पर श्रीयंत्र उकेरा गया है। मंदिर के सामने दो ऊंचे दीप-स्तंभ (मस्तक वाले खंभे) बने हुए हैं। खासकर नवरात्रि में पांच दिनों तक इन पर रोशनी से सजी दीप-मालाएं जगमगाती हैं।

 

जहां गिरी थी देवी सती की कोहनी

मान्यता है कि उज्जैन की क्षिप्रा नदी के किनारे भैरव पर्वत पर माता सती के होंठ गिरे थे। जिस स्थान पर हरसिद्धि मंदिर है, वहीं उनकी कोहनी गिरी बताई जाती है। इसी वजह से यह स्थान शक्तिपीठ माना जाता है और माता के परम शक्तिरूप की पूजा यहां की जाती है।

‘हरसिद्धि’ नाम कैसे पड़ा?

कहानी के अनुसार, एक समय चंड और मुंड नाम के दो दैत्य कैलाश पर आक्रमण करने पहुंच गए। उस समय महादेव जी और देवी पार्वती द्यूत-क्रीड़ा में व्यस्त थे। दोनों दैत्यों ने भीतर घुसने की कोशिश की लेकिन नंदीगण ने उन्हें रोक लिया। दैत्यों ने नंदीगण को घायल कर दिया। यह जानकर भगवान शिव ने देवी चंडी को बुलाया। देवी ने दोनों दैत्यों का नाश कर दिया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कहा कि दुष्टों के विनाश की वजह से तुम ‘हरसिद्धि’ नाम से पूजित होगीं। तभी से उज्जैन की धरती पर यह रूप प्रतिष्ठित माना जाता है।

 

यह भी पढ़ें: 16 नवंबर या 17 किस दिन मनाई जाएगी वृश्चिक संक्रांति? यहां जानें पूजा विधि

राजा विक्रमादित्य से भी जुड़ा है संबंध

स्थानीय परंपराओं में यह भी माना जाता है कि यह स्थान राजा विक्रमादित्य की साधना-भूमि रहा है। मंदिर के पीछे एक कोने में कई सिरों के प्रतीक रखे हुए हैं, जिन पर सिंदूर चढ़ाया जाता है। लोकमान्यता कहती है कि विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12 वर्ष में अपना सिर चढ़ाया था। ग्यारह बार उनका सिर लौट आया, पर 12वीं बार ऐसा नहीं हुआ। इसे उनके राजकाल के अंत का संकेत माना गया।

खास परंपराएं और श्रद्धा

मंदिर में पशु-बलि नहीं होती क्योंकि यहां की देवी को वैष्णव माना जाता है और वह परमार वंश की कुलदेवी बताई जाती हैं। मंदिर में श्रीसूक्त और वेद मंत्रों से पूजन होता है। यहां के दीवट-स्तंभ (दीप स्तंभ) पर दीप प्रज्ज्वलन को बहुत शुभ माना जाता है। विश्वास है कि इन दीप-स्तंभों पर दीप चढ़ाते समय जो इच्छा बोली जाती है, वह पूरी हो जाती है।


और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap