गुजरात के पंचमहल जिले की पावागढ़ पहाड़ियों पर स्थित देवी महाकालिका मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है। मान्यता के अनुसार, यह वही मंदिर है, जहां विश्वामित्र ऋषि स्वयं देवी काली की मूर्ति की स्थापना की थी। इस मंदिर को देवी दुर्गा की शक्तिपीठों के साथ भी जोड़ा जाता है। मंदिर में दर्शन के लिए कठिन चढ़ाई करनी होती है। यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
देवी महाकालिका का यह पवित्र स्थान UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट 'चंपानेर–पावागढ़ पुरातात्विक पार्क' का भी हिस्सा है। कहा जाता है कि यह मंदिर 10वीं से 11वीं सदी के बीच बना था। लोकमान्यता है कि देवी कालिका यहां स्वयंभू रूप में विराजमान हैं और सच्चे मन से की गई प्रार्थना को कभी खाली नहीं लौटातीं। यह मंदिर गुजरात के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक है।
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मंदिर की विशेषताएं
ऊंचाई और लोकेशन: यह मंदिर पावागढ़ की चोटी पर स्थित है, समुद्र तल से करीब 750–830 मीटर की ऊंचाई पर, ऊंचे चट्टानी पहाड़ के शिखर पर बने होने की वजह से यहां के नजारे और माहौल दोनों प्रभावशाली हैं।
देवी रूप और आराधना: यहां देवी को महाकालिका/कालिका के रूप में पूजा जाता है, देवी को दुर्गा/चंडी की रूपरेखा में देखा जाता है। मंदिर में एक प्राचीन काली यंत्र भी प्रतिष्ठित है।
यूनेस्को जगसेवा क्षेत्र: पावागढ़, चम्पानेर यूनेस्को वर्ल्ड-हेरिटेज साइट का हिस्सा है। इसलिए धार्मिक-सांस्कृतिक और पुरातात्विक दोनों दृष्टियों से यह स्थान महत्वपूर्ण है।
पावागढ़ मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
शक्ति-पीठ का दर्जा: पावागढ़ की महाकालिका को कई लोकमान्यताओं में 51 शाक्ति-पीठों में से एक माना जाता है। यहां माता के किसी अंग के गिरने (या उनकी उपस्थिति) का भावनात्मक-पौराणिक वजह बताई जाती है।
स्थानीय मान्यता: स्थानीय आदिवासी-समुदाय भी सदियों से मंदिर में उपस्थित देवी की आराधना करता आ रहा है। बहुत से भक्त मानते हैं कि देवी यहां स्वयंभू रूप में विराजमान हैं और यहां श्रद्धापूर्वक की गई मन्नतें पूरी होती हैं।
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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
प्रचलित कथा के अनुसार यहां पर महाशक्ति कालिका की उपस्थिति बहुत प्राचीन है। कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने यहां तप किया और देवी को स्थापित किया था उसके बाद यह पर्वत पवित्र हुआ। अन्य धाराओं में इसे सती/शक्ति-कथा से जोड़ा जाता है, यानी सती-स्थानों (शक्ति-पीठों) की परंपरा से पावागढ़ जुड़ा हुआ बताया जाता है।
मंदिर से जुड़ा इतिहास
प्राचीनता: मंदिर का प्रारंभिक स्रोत 10वीं–11वीं सदी का माना जाता है।
जैन सम्बन्ध: इतिहासकारों का कहना है कि पावागढ़ कृषि सहित एक समय जैन तीर्थ स्थल भी रहा था। 12वीं सदी में यहां स्नातंबर आचारगच्छ की उपस्थिति और महाकालिका की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई मिली है। यानी इस स्थल की परंपराएं जैन और हिन्दू दोनों धार्मिक प्रभावों से गुजरी हैं।
मध्यकालीन परिवर्तन: 15वीं और 16वीं सदी में क्षेत्र के शासकों ने मंदिर के शिखर/संरचनाओं में बदलाव भी किए गए थे।
पावागढ़ तक पहुंचने का रास्ता
सबसे आसान और प्रभावी रास्ता - रोप-वे
रोप-वे की सुविधा: 1986 से यहां रोप-वे चल रहा है। नीचे के स्टेशन से ऊपर की ओर रोप-वे चोटी के पास तक ले जाता है। रोप-वे से सफर केवल 5-6 मिनट का होता है और फिर पैदल बहुत कम चलना होता है।
पैदल चढ़ाई / ट्रेक
सीढ़ियां और रास्ता: अदर पैदल जाना हो तो करीब 1,800–2,400 सीढ़ियां या फिर लगभग 4–5 किमी की चढ़ाई पार करनी पड़ती है (चढ़ाई के उपाय अलग-अलग भी दिए जाते हैं)। रोप-वे स्टेशन से चोटी तक लगभग 250–300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
नजदीकी शहर और गाड़ियां
नजदीकी शहर: पावागढ़-चम्पानेर गुजरात के पंचमहल जिले में है। यह स्थान वडोदरा से लगभग 46 किलोमीटर दूरी पर है। वडोदरा और अहमदाबाद से सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
लोकल एक्सेस: नजदीकी बस/टैक्सी सेवाएं भी उपलब्ध रहती हैं।
यहां जाने का सबसे अच्छा मौसम
सर्दी का मौसम (अक्टूबर–फरवरी) और नवरात्रि के समय सबस् ज्यादा भीड़ होती है और मौसम भी अच्छा रहता है। मानसून में भी हरी-भरी वादियां खूबसूरत दिखती हैं लेकिन चढ़ाई फिसलनदार हो सकती है।