देशभर में 16 नवंबर, 2025 के दिन वृश्चिक संक्रांति का पावन पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। सूर्य देव के तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश के साथ शुरू होने वाली यह संक्रांति न केवल ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह दिन ऊर्जा, तप, पितृ-तर्पण और दान का विशेष अवसर माना गया है। सुबह से ही देश के अलग-अलग तीर्थों, नदियों और सूर्य मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। श्रद्धालु पवित्र स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वृश्चिक संक्रांति वह शुभ घड़ी है जब सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के मूल स्थान में प्रवेश करते हैं, जिसे पितृ कृपा और ग्रह दोषों के निवारण का विशेष योग माना जाता है। इसी वजह से देशभर के कई हिस्सों में लोग पितरों के लिए तर्पण भी करते हैं और इस दिन लोग तिल, गुड़, कपड़ा और अन्न का दान करते हैं। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि इस संक्रांति पर किया गया दान सामान्य दिनों से सौ गुना ज्यादा फलदायी होता है।
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साल 2025 में वृश्चिक संक्रान्ति कब है?
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन वृश्चिक संक्रान्ति मनाई जाती है। इस तिथि की शुरुआत 16 नवंबर के दिन होगा और इसका समापन 17 नवंबर 2025 के दिन होगा।
- वृश्चिक संक्रान्ति पुण्य काल - सुबह 08:02 मिनट से दोपहर 01:45 मिनट तक,
- वृश्चिक संक्रान्ति महा पुण्य काल - सुबह 11:58 मिनट से दोपहर 01:45 मिनट तक,
- वृश्चिक संक्रान्ति का वक्त - दोपहर 01:45 तक।
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वृश्चिक संक्रांति क्या है?
जब सूर्य देव अपनी राशि बदलकर तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार, एक धार्मिक और पवित्र संक्रांति मानी जाती है, जिसमें पूजा, स्नान, दान और ध्यान का विशेष महत्व होता है। हर संक्रांति की तरह इसे भी पुण्य काल माना जाता है।
वृश्चिक संक्रांति से जुड़ी मान्यता
सूर्य देव का रूपांतरण का दिन
इस दिन सूर्य देव अग्नितत्त्व प्रधान वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं। माना जाता है कि इससे पृथ्वी पर अग्नि, ऊर्जा और तेज का प्रभाव बढ़ता है। इसलिए यह दिन ऊर्जा, शौर्य और संकल्प का प्रतीक है।
पितृ तर्पण का महत्व
कई धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि वृश्चिक संक्रांति पर पितरों को अर्घ्य, तर्पण और श्राद्ध करने से बाधाएं दूर होती हैं और पितरों की कृपा मिलती है।
दान-पुण्य का फल
स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन किया गया दान सामान्य दिनों से सौ गुना ज्यादा फलदायी होता है।
पूजा की विधि
- स्नान और सूर्य को अर्घ्य
- सुबह स्नान करके सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य देते समय, 'ऊँ घृणि सूर्याय नमः' मंत्र का जाप शुभ माना जाता है।
- सूर्य पूजा
- लाल फूल
- गुड़
- तांबे का लोटा से सूर्य देव की पूजा की जाती है।
- पितृ तर्पण
- यह दिन पितरों को याद करने और जल देने के लिए बहुत शुभ माना गया है।
- दाल, गुड़, कपड़ा, तेल का दान
- दान के लिए विशेष चीजें,
- तिल
- गुड़
- ऊनी कपड़े
- भोजन
- दीपदान
- मंदिर दर्शन और ध्यान
- इस दिन भगवान शिव, सूर्य देव और विष्णु भगवान की विशेष पूजा का महत्व है।
वृश्चिक संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथा
कथा - सूर्य देव और शनि देव का मेल
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सूर्य देव और शनि देव के बीच समय-समय पर मतभेद रहे। शनि देव का मूल स्थान वृश्चिक राशि को माना जाता है। कहते हैं कि जब सूर्य देव इस राशि में प्रवेश करते हैं, तो वह अपने पुत्र शनि को दर्शन देते हैं।
इस मिलन को पितृ कृपा और शुभता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन दोनों ग्रहों की स्थिति एक साथ मिलने की वजह से, धन, संतान, व्यापार और स्वास्थ्य में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
इस दिन क्या करना शुभ माना जाता है?
सूर्योदय से पहले स्नान, सूर्य को जल, पितृ तर्पण, तांबे के बर्तन का दान, लाल रंग की चीजों का दान, शिव और विष्णु पूजा, गरीबों को भोजन करवाना, तिल और गुड़ का दान करना चाहिए।
इस दिन क्या करना अशुभ होता है?
इस दिन बिना नहाए भोजन करना, झूठ बोलना, झगड़ा करना, शराब पीना, नॉनवेज खाना, किसी का अपमानकरना, काले जादू या तंत्र करने का प्रयास और पौधों को नुकसान पहुंचाना अशुभ माना जाता है।