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हिंदू-मुस्लिम करते हैं एक साथ पूजा, क्या है सुंदरवन की बोनबिबि देवी की कहानी?

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में स्थित बोनबिबि मंदिर अपनी मान्यता और इतिहास के लिए स्थानीय लोगों में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।

Bonbibi devi

जंगलों की देवी बोनबिबि: Photo Credit: Social Media

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पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के बीच में एक ऐसा मंदिर है, जहां न हिंदू-मुस्लिम का फर्क है, न जात-पात का बंधन। इस मंदिर में बोनबिबि की पूजा होती है, जिन्हें सुंदरबन में ‘जंगल की देवी’ कहा जाता है। माना जाता है कि बोनबिबि ही वह शक्ति हैं जो जंगल में जाने वाले हर इंसान की रक्षा करती हैं। चाहे मछुआरे हों, मधुमक्खी पालक या लकड़ी काटने वाले मजदूर। सभी देवी से आशीर्वाद लेकर ही जंगल में कदम रखते हैं।

 

स्थानीय कथा के अनुसार, कभी सुंदरबन में दक्षिण राय नाम का राक्षस राज करता था, जो बाघ का रूप धरकर लोगों को निगल जाता था। तब अल्लाह ने बोनबिबि और उनके भाई शाह जंगली को भेजा, जिन्होंने दक्षिण राय को परास्त किया और जंगल में शांति स्थापित की। तभी से सुंदरबन के लोग बोनबिबि को अपना रक्षक देवी मानते हैं।

 

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बोनबिबि मंदिर की विशेषता

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र में स्थित बोनबिबि मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर देवी की पूजा की जाती है। देवी बोनबिबि को जंगल और इंसान दोनों की रक्षक माना जाता है। सुंदरबन के घने मैंग्रोव जंगलों में रहने वाले लोग, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम दोनों इस देवी की समान श्रद्धा से पूजा करते हैं।

 

यह मंदिर सद्भाव और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक मानी जाती हैं। यहां देवी के साथ-साथ 'दक्षिन राय' (टाइगर देवता) और 'दुक्खे' नामक भक्त की भी पूजा होती है।

 

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

स्थानीय किंवदंती के अनुसार, बहुत समय पहले सुंदरबन के जंगलों में दक्षिन राय नामक एक राक्षस का राज था। वह बाघ का रूप धरकर जंगल में आने वाले लोगों पर हमला करता था और उन्हें खा जाता था। बाघ के भय से लोगों का जंगल में जाना लगभग असंभव हो गया था। तभी अल्लाह ने अपनी शक्ति से बोनबिबि और उसके भाई शाह जंगली को जंगल की रक्षा के लिए पृथ्वी पर भेजा। बोनबिबि ने दक्षिण राय को युद्ध में हराया और यह वचन लिया कि जंगल में केवल वही लोग सुरक्षित रहेंगे जो ईमानदारी से देवी का आशीर्वाद लेकर प्रवेश करेंगे।

 

इसके बाद से जंगल जाने वाले मछुआरे, मधुमक्खी पालक और लकड़ी काटने वाले लोग जंगल में जाने से पहले देवी बोनबिबि की पूजा करते हैं और बोनबिबिर पालागान गाकर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।

मंदिर का इतिहास

बोनबिबि की पूजा का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है। माना जाता है कि जब अरब देशों से कुछ सूफी संत बंगाल पहुंचे, तब स्थानीय हिंदू समुदाय और मुस्लिम संतों के बीच सांस्कृतिक मेल से बोनबिबि की कथा और पूजा परंपरा का जन्म हुआ।

 

इस देवी को धर्म और प्रकृति के बीच संतुलन की देवी कहा जाता है। सुंदरबन में लगभग हर गांव में या जंगल के किनारे छोटे-छोटे बोनबिबि मंदिर हैं। ज्यादा मंदिर मिट्टी और बांस से बने होते हैं और उनमें देवी की मूर्ति मिट्टी या लकड़ी की होती है।

बोनबिबि का स्वरूप और पूजा विधि

  • देवी बोनबिबि का रूप बहुत सरल और ग्रामीण है - वह सादे कपड़ों में, सिर पर दुपट्टा ओढ़े खड़ी दिखाई जाती हैं।
  • उनके साथ उनके भाई शाह जंगली भी दर्शाए जाते हैं।
  • पूजा में नारियल, फल, मिट्टी के दीपक और गुड़-चावल चढ़ाया जाता है।
  • त्योहार के रूप में बोनबिबिर पूजा हर साल माघ महीने (जनवरी-फरवरी) में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

बोनबिबि का यह मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का प्रतीक भी है। यह पूजा संदेश देती है कि जंगल से उतना ही लेना चाहिए जितना जरूरत हो। स्थानीय लोग मानते हैं कि जो व्यक्ति बोनबिबि का नाम लेकर जंगल में प्रवेश करता है, उसे बाघ (दक्षिन राय) से कोई हानि नहीं पहुंचती।


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