सामान्यतः किसी भी ग्रंथ को 'पुराण' कहलाने के लिए उसमें 5 लक्षण होने चाहिए लेकिन भागवत पुराण में इन 5 के बजाय 10 लक्षण पाए जाते हैं, जो इसे अधिक विस्तृत और गहरा बनाते हैं।
अन्य पुराणों में अलग-अलग देवताओं की महिमा बताई गई है। भागवत का एकमात्र लक्ष्य 'परम धर्म' है। यह वेदों के सार 'वेदांत' का भाष्य माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने 17 पुराणों और महाभारत की रचना करने के बाद नारद मुनि के कहने पर श्रीमद्भागवत की रचना की।
जहां कुछ पुराण केवल कहानियों और अनुष्ठानों तक सीमित लगते हैं, भागवत में अद्वैत वेदांत और विशिष्ट भक्ति का अद्भुत मेल है।
भागवत को 'कल्पतरोर्गलितं फलम्' कहा गया है जिसका अर्थ है- वेदों रूपी कल्पवृक्ष का यह वह फल है जिसमें केवल रस (भक्ति) है।
अन्य पुराणों में जहां देवी-देवताओं के माध्यम से सांसारिक लाभ और स्वर्ग-नरक की चर्चा अधिक है, वहीं भागवत पूरी तरह से ईश्वर के साथ प्रेमपूर्ण संबंध को समर्पित है।
हिंदू धर्म में 'भागवत सप्ताह' का बहुत महत्व है। इसके अनुष्ठान को बहुत पवित्र माना जाता है। भागवत की तुलना में अन्य किसी पुराण का उतना महत्व नहीं।
विद्वानों के बीच एक बहस यह भी रहती है कि 18 महापुराणों में 'श्रीमद्भागवत' को गिना जाए या 'देवी भागवत' को। हालांकि, व्यापक रूप से श्रीमद्भागवत को ही महापुराण की मान्यता प्राप्त है।