गीता में कुल कितने अध्याय हैं?

अर्जुन विषाद योग और सांख्य योग

अर्जुन विषाद अध्याय में युद्धभूमि पर अर्जुन मोह और दुख से भर जाते हैं। सांख्य योग में कृष्ण आत्मा की अमरता, धर्म और कर्तव्य का ज्ञान देते हैं।

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कर्म योग और ज्ञान कर्म संन्यास योग

इस योग में कर्म करने का महत्व बताया गया है। ज्ञान कर्म संन्यास योग ज्ञान का महत्व, अवतारवाद (कृष्ण का आत्मप्रकाश) और कर्म-त्याग के सही अर्थ को समझाया गया है।

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कर्म सन्यास योग और ध्यान योग

कर्म और संन्यास दोनों रास्तों की तुलना बताई गई है। ध्यान योग में ध्यान की विधि, मन को नियंत्रित करने और योगी के गुणों का वर्णन किया गया है।

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ज्ञान विज्ञान योग और अक्षर ब्रह्म योग

ज्ञान विज्ञान योग में कृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप और प्रकृति के रहस्य बताते हैं। अक्षर ब्रह्म योग में मृत्यु के समय ईश्वर को स्मरण करने को बताया गया है।

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राजविद्या राजगुह्य योग और विभूति योग

यह अध्याय ज्ञान का राजा और सबसे बड़ा रहस्य कहलाता है। विभूति योग में कृष्ण अपनी दिव्य शक्तियों (विभूतियों) का वर्णन करते हैं।

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विश्वरूप दर्शन योग और भक्ति योग

कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं। भक्ति योग में भक्ति के मार्ग, भक्त के गुण को बताया गया है।

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क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग और गुणत्रय विभाग योग

शरीर (क्षेत्र) और आत्मा (क्षेत्रज्ञ) का भेद समझाया गया है। गुणत्रय विभाग योग में तीन गुण -सत्व, रजस और तमस के प्रभाव को बताया गया है।

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पुरुषोत्तम योग और दैवासुर संपद विभाग योग

जीवन के वृक्ष, आत्मा, प्रकृति और पुरुषोत्तम (परमात्मा) की व्याख्या की गई है। दैवासुर संपद विभाग योग दैवी और आसुरी स्वभावों का अंतर बताया गया है।

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श्रद्धात्रय विभाग योग और मोक्ष संन्यास योग

मनुष्य की आस्था तीन गुणों के अनुसार कैसी होती है, इसका विवरण है। मोक्ष सन्यास योग में पूरी गीता की शिक्षाओं का सार बताया गया है।

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