निरंजनी अखाड़े की स्थापना सन 904 में विक्रम संवत 960 में हुआ था। जिस दिन इस अखाड़े की स्थापना हुई थी, उस दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष का महीना था।
निरंजनी अखाड़े का पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा है। इस अखाड़े में साधुओं की संख्या अनगिनत है।
निरंजनी अखाड़ा अपनी विशिष्ट परंपराओं, रीति-रिवाजों और आध्यात्मिक प्रथाओं के कारण हर अखाड़े से अलग है।
निरंजनी अखाड़ा का संबंध भगवान कार्तिकेय से है और यह अखाड़ा उन विशेष अखाड़ों में से एक है, जो धर्म, भक्ति और साधना के लिए प्रसिद्ध है।
सनातन धर्म में मुख्य रूप से कुल अखाड़ों की संख्या 13 है। निरंजनी अखाड़े को धनी अखाड़ों में माना जाता है। निरंजनी अखाड़े में देश के पढ़े लिखे साधु-संत भी है।
निरंजनी अखाड़े के मठ प्रयागराज और आसपास के इलाकों में है। इस अखाड़े के मठ, जमीन और मंदिर की कीमत करीब 300 करोड़ से भी अधिक है।
अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी भी व्यक्ति को वैराग्य और संन्यास का होना बहुत ही जरूरी होता है। जो लोग महामंडलेश्वर बनते हैं उन्हें घर-परिवार और पारिवारिक संबंध नहीं होता है।
ऐसे तो महामंडलेश्वर बनने की कोई आयु भी निश्चित नहीं की गई है, जो लोग महामंडलेश्वर बनते हैं। उन्हें संस्कृत, वेद-पुराण का ज्ञान होना चाहिए।
निरंजनी अखाड़े के साधु-संत एक विशिष्ट पोशाक पहनते हैं। जो उन्हें अन्य अखाड़ों से अलग बनाती है।
इस अखाड़े में 10,000 से भी अधिक नागा संन्यासी हैं। यह संख्या और अखाड़ों के मुकाबले काफी बड़ी है।