शरीर से बैक्टीरिया हटते हैं और वातावरण की पवित्रता बनी रहती है। मंदिरों का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है।
मंदिर को अत्यंत पवित्र स्थान कहा जाता है। इसलिए देवी-देवताओं को आदर प्रकट करने के लिए जूते-चप्पल बाहर उतारे जाते हैं।
दीपक की लौ देखने से आंखों की पुतलियों को गर्मी मिलती है जिससे आंखों को राहत मिलती है।
ॐ का उच्चारण एक कंपन (vibration) पैदा करता है, जिससे मस्तिष्क शांत होता है और ध्यान केंद्रित होता है।
घंटी की ध्वनि एक खास आवृत्ति (frequency) की होती है जो मस्तिष्क को जागरूक करती है।
इन सामग्रियों से वातावरण में सुगंध फैलती है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
यह योग की मुद्रा है जिसे ‘अंजलि मुद्रा’ कहते हैं। इससे शरीर में ऊर्जा संतुलन बनता है और एकाग्रता बढ़ती है।
चंदन, कपूर और धूप की सुगंध में रोगाणुनाशक तत्व होते हैं जो सांस की बीमारियों को दूर रखते हैं और मन को शांत करते हैं।
दाहिना हाथ स्वच्छ माना जाता है और बैठकर भोजन करने से पाचन क्रिया बेहतर होती है। प्रसाद में आमतौर पर हल्के और सात्विक तत्व होते हैं।