अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: सुबह में 06:09 मिनट से सुबह 07:40 मिनट तक शुभ-उत्तम मुहूर्त: सुबह 09:11 मिनट से सुबह 10:43 मिनट तक कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:49 मिनट से दोपहर 12:38 मिनट तक
उसके बाद उस पर सात प्रकार के अनाज रखें फिर उस पर कलश (मिट्टी या पीतल) की स्थापना करें कलश के ऊपर रक्षासूत्र बांधें और रोली से तिलक या स्वास्तिक बनाएं।
इसके बाद कलश में गंगा जल डालें और पवित्र जल से उसे भर दें। कलश के अंदर अक्षत्, फूल, हल्दी, चंदन, सुपारी, एक सिक्का, दूर्वा (दूब या घास) आदि डाल दें और सबसे ऊपर आम पत्ते रखें (पांच पत्तों वाले आम की छोटी डाली) फिर एक ढक्कन से कलश के मुंख को ढंक दें।
उस ढक्कन को अक्षत (चावल) से भरें। सूखे नारियल पर रोली या चंदन से तिलक करें और उस लाल रंग का कपड़ा लपेट कर रक्षा सूत्र से बांधें। फिर इसे ढक्कन पर स्थापित कर दें। उसके बाद प्रथम पूज्य गणेश जी, वरुण देव समेत अन्य देवी और देवताओं का पूजन करें।
इस प्रकार से कलश स्थापना करें। उसके पास मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें और पानी से उसे सींच दें। इस जौ में पूरे 9 दिनों तक पानी डालना है। ये जौ अंकुरित होकर हरा भरा हो जाएगा। हरा जौ सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है।
कलश के पास ही एक अखंड ज्योति भी जलाएं, जो महानवमी तक जलनी चाहिए।
नवरात्रि में कलश स्थापना करने के बाद देवी दुर्गा का आह्वान करते हैं। कलश स्थापना करके ही त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ अन्य देवी और देवताओं को इस पूजा का साक्षी बनाते हैं। धर्म शास्त्रों में कलश को मातृ शक्ति का प्रतीक मानते हैं। मान्यता के अनुसार, नवरात्रि के 9 दिनों में कलश में सभी देवी और देवताओं का वास होता है।