जम्मू-कश्मीर में जोजिला टनल (Zojila Tunnel) को बनाने का काम बहुत चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है और इसको बनाने की जिम्मेदारी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) को मिली है। यह कंपनी पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने के लिए भी चर्चा में आई थी। अब इस कंपनी को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने ब्लैकलिस्ट कर दिया है। NHAI ने मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड पर 1 साल के लिए टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के से रोक लगा दी है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, MEIL पर यह कार्रवाई केरल में NH-66 के चेंगला-नीलेश्वरम सेक्शन में सड़क पर ठीक से काम नहीं करने के लिए की गई है। NH-66 पर MEIL को सड़क के किनारे की मिट्टी को गिरने से बचाने और बारिश के पानी को निकालने के लिए उचित सिस्टम बनाना था लेकिन कंपनी ने ऐसा नहीं किया और इसके बाद उन्हें नोटिस जारी किया गया था। इस नोटिस में पूछा गया था कि MEIL ने अपनी जिम्मेदारी को सही से नहीं निभाया है तो उस पर एक साल के लिए क्यों ना बैन लगा दिया जाए। इस नोटिस का संतोषजनक जवाब ना मिलने के बाद कंपनी पर यह बैन लगाया गया है। बैन के साथ ही MEIL पर 9 करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस बैन के बाद अब MEIL एक साल तक NHAI के किसी भी नए प्रोजेक्ट के लिए बोली नहीं लगा पाएगी।
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जांच के लिए कमेटी
इस मामले की जांच के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई है। इसमें सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) के एक सीनियर वैज्ञानिक, IIT-पलक्कड के एक रिटायर्ड प्रोफेसर और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के एक्सपर्ट शामिल हैं। यह कमेटी देखेगी कि डिजाइन कैसा था, निर्माण की क्वालिटी कैसी थी और क्या सुधार किया जा सकता है। NHAI ने कहा है कि वे सभी जरूरी कदम उठा रहे हैं ताकि आगे से ऐसे प्रोजेक्ट में सुरक्षा और जवाबदेही बनी रहे। यानी NHAI यह सुनिश्चित करना चाहती है कि भविष्य में जो भी सड़कें बनें, वे सुरक्षित हों और अगर कोई गलती करे तो उसकी जिम्मेदारी तय की जा सके।
MEIL को क्या काम मिला था?
MEIL कंपनी को NH-66 हाइवे के 77 किलोमीटर लंबे हिस्से को चौड़ा करने का काम दिया गया था। यह हिस्सा चेंगला से नीलेश्वरम तक जाता है और फिर थालिपरम्बा तक फैला हुआ है। यह प्रोजेक्ट एक खास तरीके से चल रहा है, जिसे 'हाइब्रिड एन्युटी मॉडल'(HAM) कहते हैं। इसका मतलब है कि MEIL को सिर्फ सड़क बनानी नहीं है बल्कि उसे 15 साल तक उस सड़क की देखभाल भी करनी होगी लेकिन अब कुछ दिक्कतें आ गई हैं।
सड़क के ढलानों को सुरक्षित रखना था लेकिन उनमें नुकसान हो गया है और MEIL को अपने पैसे से इसे ठीक करना पड़ेगा। माना जा रहा है कि इतनी जल्दी रोड की ढलानें इसलिए बह गई क्योंकि इनको सही तरीके से नहीं बनाया गया था। इस मामले के सामने आने के बाद सरकार ने MEIL को एक नोटिस भेजा है। इसमें पूछा गया है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस नोटिस में MEIL पर एक साल के लिए काम करने पर रोक लगाने और 9 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाने की बात भी कही गई है।
जांच के लिए बनी कमेटी
इस मामले को साफ करने और समझने के लिए एक विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है। इसमें सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) के एक सीनियर वैज्ञानिक, IIT-पलक्कड के एक रिटायर्ड प्रोफेसर और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के एक्सपर्ट शामिल हैं। ये लोग मिलकर जांच करेंगे कि सड़क का डिजाइन कैसा था, निर्माण का काम कितना अच्छा या खराब था और भविष्य में क्या सुधार किए जा सकते हैं। NHAI कह रही है कि हर जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं ताकि आगे से ऐसी समस्याएं ना हों। उनका मकसद है कि जो भी नई सड़कें बनें वे पूरी तरह सुरक्षित हों। अगर कोई गलती होती है, तो उसकी जिम्मेदारी साफतौर पर तय की जा सके।
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बीजेपी को दिए थे करोड़ों
मेघा इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (MEIL)ने साल 2014 में देश की राजनैतिक पार्टियों को बड़ी रकम चंदे के रूप में दी थी। कंपनी की पहचान चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाली बड़ी कंपनी के तौर हुई। इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI) के डेटा के मुताबिक, MEIL ने बीजेपी को कुल 966 करोड़ रुपये दिए थे। MEIL ने एक-एक करोड़ रुपये के कुल 966 बॉन्ड खरीदे, जिनमें से ज्यादातर 584 बॉन्ड BJP को दिए गए। बीजेपी के अलावा भारत राष्ट्र समिति को 195 बॉन्ड, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को 85 बॉन्ड और YSR कांग्रेस पार्टी को 37 बॉन्ड मिले। इसके अलावा, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) को, कांग्रेस को, बिहार की पार्टियों को और जनसेना पार्टी को भी कंपनी ने बॉन्ड दिए थे। MEIL ने अपनी सहायक कंपनियों के जरिए भी पार्टियों को चंदा दिया है।
