राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की प्रचंड जीत के बीच अधिकांश चर्चा केवल बीजेपी और जेडीयू की प्रचंड जीत हो रही है। मगर चिराग पासवान के नेतृत्व में उनकी पार्टी ने वह करिश्मा कर दिखाया है, जिसे हासिल करने में कई दलों को वर्षों लग जाते हैं। जब सीट शेयरिंग के तहत चिराग की पार्टी को 29 सीटें मिलीं तो कई रणनीतिकारों ने इस पर हैरानी जताई। पार्टी के प्रदर्शन पर भी सवाल उठाया। मगर नतीजे आने पर वही रणनीतिकार एक बार फिर हैरत में है। चिराग पासवान की अगुवाई में एलजेपी (रामविलास) ने अपने इतिहास का दूसरा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान को एनडीए में जगह नहीं मिली थी। उनकी पार्टी ने अलग चुनाव लड़ा। मगर कुछ खास नहीं कर सकी, लेकिन 25 सीटों पर खेल जरूर बिगाड़ दिया था। अबकी गठबंधन के तहत बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें मिलीं। चिराग पासवान को 29 सीटें दी गईं। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को छह-छह सीटें मिलीं। चुनाव नतीजों में एनडीए की आंधी देखने को मिली। 243 में से गठबंधन ने 202 सीटों पर जीत हासिल की। 89 सीटों पर कब्जा जमा कर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी। जेडीयू को 85, एलजेपी (रामविलास) को 19, हम को पांच और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 4 सीटों पर जीत मिली।
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2020 में सिर्फ एक सीट पर जीती थी एलजेपी
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। सिर्फ मटिहानी विधानसभा सीट पर उसके प्रत्याशी राजकुमार सिंह को 333 वोट से जीत मिली थी। हालांकि बाद में राजकुमार ने जेडीयू का दामन थाम लिया था। 10 सीटों पर चिराग की पार्टी दूसरे स्थान पर रही। 94 सीटों पर उसे तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। पार्टी को करीब 5.8 फीसद वोट मिले थे। करीब 25 सीटों पर चिराग की पार्टी ने जेडीयू का खेल बिगाड़ा था। यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें चिराग ने न केवल नीतीश कुमार बल्कि एनडीए को अपनी ताकत का एहसास कराया था।
चिराग के पास खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत
2020 के चुनाव नतीजे के बाद एनडीए को यह पता चल चुका था कि बिहार की सियासत में चिराग पासवान खेल बनाने और बिगाड़ने की शक्ति रखते हैं। यही वजह है कि अबकी गठबंधन में उन्हें 29 सीटें मिली। चिराग की पार्टी ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा, क्योंकि मढ़ौरा सीट पर उनकी प्रत्याशी सीमा सिंह का नामांकन खारिज हो गया था। चुनाव नतीजे आने पर उनकी पार्टी को 28 में से 19 सीटों पर जीत मिली। फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद यह एलजेपी (रामविलास) का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। अबकी के चुनाव नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि चिराग पासवान कोई भी सियासी खेल सजाने की ताकत रखते हैं।
पिता से भी तगड़ा चिराग का स्ट्राइक रेट
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने रामविलास पासवान की अगुवाई में 178 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे जीत 29 सीटों पर मिली थी। 33 विधानसभा सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे और 54 पर तीसरे स्थान पर थे। तब पार्टी को 12.6 फीसद वोट मिले थे। अपने पिता के मुकाबले चिराग पासवान ने 10 सीटें कम हासिल की हैं, लेकिन सिर्फ 28 सीटों पर लड़कर 19 सीटें जीती हैं, जबकि उनके पिता रामविलास पासवान ने छह गुना अधिक विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारकर 29 सीटें हासिल की थीं।
1 से 19 तक कैसे पहुंची चिराग की पार्टी?
2005 में छह महीने बाद ही नवंबर में दूसरी बार बिहार में विधानसभा चुनाव होने पर एलजेपी को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि उसने 209 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। 2010 में एलजेपी 75 सीटों पर लड़ी। मगर जीत सिर्फ तीन सीटों पर ही मिली। 2015 में एलजेपी को 42 में से सिर्फ 2 सीटों पर ही कामयाबी मिली थी। वोटबैंक लगभग 5 फीसद था। चिराग पासवान की अगुवाई में एलजेपी ने अपना पहला चुनाव 2020 में 135 सीटों पर लड़ा। पार्टी को एक सीट ही मिली। उसका वोटबैंक 5.8 फीसद हो गया था।
2025 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी 19 सीटों पर जीती है। मतलब बिहार के मुख्य विपक्षी दल आरजेडी से सिर्फ छह सीट ही कम हैं। अगर वोट शेयर की बात करे तो एलेजपी (रामविलास) ने 4.97 फीसद वोट हासिल किया। चिराग पासवान के 10 विधायकों ने 20 हजार से अधिक और चार ने 10 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव जीता है। बलरामपुर सीट पर संगीता देवी को 389 और बख्तियारपुर में अरुण कुमार को 981 वोट से जीत मिली। तीन अन्य प्रत्याशियों ने 10 हजार के अंदर ही जीत दर्ज की है।
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2020 में जहां चिराग पासवान की पार्टी 94 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहीं तो वहीं अबकी बार सिर्फ बहादुरगंज सीट पर उसका इकलौता प्रत्याशी तीसरे पायदान में रहा। बाकी आठ हारी सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही। इनमें से सात सीटों पर चिराग की पार्टी 15 हजार से कम मतों के अंतर से हारी। दो सीटों पर हार का फासला 15 हजार से अधिक रहा।
कौन-कहां से बना विधायक?
- सुगौली से राजेश कुमार 58191 मतों से जीते।
- गोविंदगंज से 32683 मतों से राजू तिवारी जीते।
- बेलसंड से अमित कुमार 22685 मतों से विजयी हुए।
- कस्बा से नितेश कुमार ने 12875 वोट से जीत दर्ज की।
- बलरामपुर से संगीता देवी ने 389 वोट से जीत हासिल की।
- सिमरी बख्तियारपुर से संजय कुमार सिंह 7930 वोट से जीते।
- बोचहां से बेबी कुमारी 20316 वोट के अंतर से विधायक बनीं।
- दरौली से विष्णु देव पासवान 9572 मतों से जीते।
- महुआ से संजय कुमार सिंह 44997 मतों से जीत हासिल की।
- बखरी से संजय कुमार ने 17318 वोट से कामयाबी हासिल की।
- परबत्ता से बाबूलाल शोर्य 34039 मतों से जीते।
- नाथनगर से मिथुन कुमार 25424 वोट से विधायक बने।
- बख्तियारपुर से अरुण कुमार 981 मतों से जीते।
- चेनारी से मुरारी कुमार गौतम 21988 मतों से जीते।
- देहरी से राजीव रंजन सिंह 35968 मतों से जीते।
- ओबरा से प्रकाश चंद्रा 12013 मतों से विधायक बने।
- शेरघाटी से उदय सिंह 13524 वोट से जीते।
- राजौली से विमल राजबंशी 3953 वोट से जीते।
- गोबिंदपुर से बिनीता मेहता 22906 मतों से जीते।
| विधानसभा | प्रत्याशी | कौन सा स्थान रहा | कितने अंतर से हारे |
| गरखा | सिमंत मृणाल | दूसरा | 12804 |
| साहेबपुर कमाल | सुरेंद्र कुमार | दूसरा | 15721 |
| पालीगंज | सुनील कुमार | दूसरा | 6655 |
| ब्रह्मपुर | हुलास पांडे | दूसरा | 3220 |
| मखदुमपुर | रानी कुमारी | दूसरा | 1830 |
| बोधगया | श्यामदेव पासवान | दूसरा | 881 |
| फतुहा | रूपा कुमारी | दूसरा | 7992 |
| बहादुरगंज | मोहम्मद कलीमुद्दीन | तीसरा | 30120 |
| मनेर | जितेंद्र यादव | दूसरा | 20034 |
टूट के बाद भी पार्टी को शिखर तक पहुंचाया
साल 2021 में लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंटी गई थी। पांच सांसद चिराग को छोड़कर उनके चाचा पशुपति पारस के गुट में शामिल हो गए। बाद में चिराग ने अलग एलजेपी (रामविलास) नाम से पार्टी का गठन किया। 2024 में एनडीए गठबंधन के तहत पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। इसमें चिराग पासवान की पार्टी ने सभी पांचों सीटों पर जीत हासिल की। अब विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी ने कमाल कर दिया है।
