भारत के पड़ोस में एक नई भूराजनीतिक आकार ले रही है। हिंसा और दमन के बीच बदलते समीकरण में भारत, चीन और बांग्लादेश के हित दांव में है। कई देश अपनी-अपनी बिसात बिछाने में जुटे हैं। कई संगठनों को हथियारों की मदद दी जा रही है, ताकि अपने हितों की रक्षा की जा सके। भारत के पड़ोस में अराजकता और अस्थिरता के और भी गहराने का खतरा है। यहां बात गृह युद्ध झेलने वाले म्यांमार की हो रही है।
रखाइन प्रांत में अराकान आर्मी मजबूत हो रही है। म्यांमार की सेना की पकड़ ढीली हो रही है। अभी तक अराकन आर्मी ने रखाइन प्रांत के 17 में से 14 शहरों पर कब्जा कर लिया है। अनुमान है कि कुछ ही समय में अराकान आर्मी पूरे रखाइन में अपना कब्जा जमा लेगी। म्यांमार के पश्चिम में पड़ने वाला यह प्रांत रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है। बंगाल की खाड़ी और बांग्लादेश से रखाइन की सीमा लगती है। अराकान आर्मी से बांग्लादेश न केवल चिंतित है, बल्कि उसके खिलाफ हथियारबंद रोहिंग्याओं का समर्थन भी करने लगा है।
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रोहिंग्याओं पर बढ़ा अत्याचार
म्यांमार में साल 2021 में सेना ने तख्तापलट किया था। इसके बाद से ही देश में गृह युद्ध चल रहा है। पूरी अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है। सबसे अधिक हिंसा की चपेट में रखाइन प्रांत है। गृह युद्ध से पहले भी रखाइन में लोगों ने हिंसा का दौर देखा था। साल 2012 और 2017 में हिंसा भड़की। सेना की क्रूरता के बाद लगभग 730,000 से अधिक रोहिंग्याओं को अपना देश छोड़ना पड़ा और बाद में बांग्लादेश में शरण ली। म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर शरणार्थी शिविरों में 10 लाख से अधिक रोहिंग्या रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले 18 महीने में इन शिविरों में डेढ़ लाख रोहिंग्या और आए हैं।
अराकान आर्मी रखाइन में बचे रोहिंग्याओं के खिलाफ दमनकारी कदम उठा रही है। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। पिछले साल 600 रोहिंग्याओं का नरसंहार किया गया। अत्याचार के कारण रोहिंग्याओं में अराकान आर्मी के प्रति नफरत बढ़ रही है। इसका फायदा म्यांमार की वही सेना उठाना चाहती है, जिसने 2017 में उनका दमन किया था। अराकान आर्मी के खिलाफ सेना रोहिंग्याओं को हथियारबंद बना रही है।
बांग्लादेश और म्यांमार की सेना खड़ी कर रही नई 'फौज'
रोहिंग्याओं के सशस्त्र समहूों की पकड़ बांग्लादेश में मौजूद समुदाय के शिविरों तक हो चुकी है। यह समूह अराकान आर्मी के खिलाफ रोहिंग्याओं को संगठित करने में जुटे हैं। धार्मिक भाषणों के माध्यम से रोहिंग्याओं को भड़काया जा रहा है और अराकान के खिलाफ लामबंद किया जा रहा है।
इस मुद्दे पर अराकान आर्मी और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। रखाइन की सीमा बांग्लादेश से लगती है। बांग्लादेश चाहता है कि अराकान आर्मी रोहिंग्यों को स्वीकार करे। मगर बांग्लादेश की बात नहीं बन रही है। बांग्लादेश अराकान आर्मी पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत अपने यहां शिविरों में रहने वाले सशस्त्र रोहिंग्या समूहों का समर्थन करना शुरू कर दिया है। अराकान आर्मी को डर है कि बांग्लादेश रखाइन में अलग देश का समर्थन कर सकता है।
हथियारबंद रोहिंग्याओं से क्या खतरा?
अगर रोहिंग्याओं के बीच हथियार पहुंचे तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि म्यांमार और क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा पहुंच सकता है। म्यांमार और बांग्लादेश सीमा पर कट्टरपंथ के साथ-साथ आतंकवाद का उदय हो सकता है। इसकी आशंका इस वजह से भी बढ़ गई है कि बांग्लादेश और म्यांमार की सेना रोहिंग्या शिविरों तक हथियार पहुंचाने का कथित तौर पर समर्थन कर रही है। एक रणनीति के तहत रोहिंग्याओं में व्याप्त गुस्से को अराकान आर्मी के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है।
रखाइन में कितनी तबाही?
यूनाइटेड लीग ऑफ अराकान के मुताबिक रखाइन में 2023 से 2025 तक हवाई हमलों में 402 लोगों की जान गई है। मृतकों में 96 बच्चे भी हैं। 26 लोग अन्य वजहों से मारे गए हैं। पूरे म्यांमार में तख्तापलट के बाद संघर्ष में 80,000 से अधिक लोगों की जान गई है।
नाकेबंदी से रखाइन में गहराया खाद्य संकट
म्यांमार की सेना ने रखाइन की नाकेबंदी शुरू कर दी है। यहां खाद्य सामग्री के अलावा जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। बढ़ते खाद्य संकट से भुखमरी का खतरा मंडराने लगा है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के आंकड़ों के मुताबिक मध्य रखाइन के 57 फीसदी परिवार अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। संयुक्त राष्ट्र ने आशंका जताई है कि सिर्फ रखाइन में लगभग 20 लाख लोगों के सामने भुखमरी का संकट खड़ा है।
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सित्तवे पर कब्जे की लड़ाई
उधर, म्यांमार की सेना ने सित्तवे को घेर रखा है। यहां बड़ी तादाद में लोग फंसे हैं। अगर आपको सित्तवे जाना है तो सिर्फ दो ही रास्ते हैं। एक हवाई और दूसरा समुद्री मार्ग। सड़क मार्ग से सित्तवे पूरी तरह कट चुका है। अराकान आर्मी ने जल्द ही सित्तवे को कब्जे में लेनी की कसम खाई है। म्यांमार में सबसे भयानक लड़ाई रखाइन में ही सेना और अराकान आर्मी के बीच जारी है। दोनों ने अब भर्ती को अनिवार्य कर दिया है। अराकान आर्मी तेजी से महिलाओं और पुरुषों को भर्ती कर रही है। दूसरी तरफ म्यांमार की सेना ने लगभग 70,000 लोगों को भर्ती किया है। रखाइन में सेना हवाई हमले करने में जुटी है।
भारत का क्या हित छिपा?
भारत चिकन नेक का विकल्प तैयार कर रहा है। वह बंगाल की खाड़ी के रास्ते म्यांमार और वहां से सड़क मार्ग के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों तक एक कॉरिडोर बना रहा है। म्यांमार के सित्तवे में भारत ने एक बंदरगाह विकसित किया है। सित्तवे बंदरगाह और कालादान प्रोजेक्ट का अधिकांश हिस्सा रखाइन प्रांत में पड़ता है। इस लिहाज से म्यांमार में मची उथल-पुथल में भारत के हित भी दांव पर हैं।
क्या है कलादान प्रोजेक्ट?
कलादान मल्टीमॉडल प्रोजेक्ट भारत और म्यांमार की साझा परियोजना है। इसके तहत कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह से जोड़ना है। इसके बाद सित्तवे को कलादान नदी के रास्ते पलेत्वा से जोड़ा जाएगा। आगे पलेत्वा से म्यांमार भारत-सीमा तक सड़क बनाई जाएगी। यह सड़क मिजोरम के लॉन्गतलाई तक जाएगी। 2008 में परियोजना का बजट 536 करोड़ था। मगर अब इसकी लागत 3,200 करोड़ रुपये से ज्यादा है।
कलादान प्रोजेक्ट में अब-तक क्या हुआ?
- सित्तवे पोर्ट बनकर तैयार।
- आइजोल तक बन रही सड़क।
- 700KM कम होगी आइजोल-कोलकाता की दूरी।
- 2027 तक पूरा हो जाएगा कलादान प्रोजेक्ट।
- जलमार्गों पर 1000 करोड़ का निवेश।
चीन किसके समर्थन में?
सित्तवे के पास क्यौकफ्यू में चीन का बंदरगाह है। इसके अलावा चीन के युन्नान प्रांत से तेल और गैस की दोहरी पाइपलाइनों यहां तक फैली हैं। रक्षा प्रकाशन जेन्स के बैंकॉक स्थित विश्लेषक एंथनी डेविस का मानना है कि अराकान आर्मी सितंबर और अक्टूबर के बीच सित्तवे पर हमला कर सकती है। इससे उसके क्यौकफ्यू पर कब्जा करने की उम्मीद बढ़ जाएगी। अभी 3,000 सरकारी सैनिक हथियारों के साथ क्यौक्फ्यू की सुरक्षा में तैनात हैं। अराकान आर्मी के पास लगभग 40 हजार लड़ाके हैं। वह 10 हजार विद्रोहियों के साथ हमला कर सकता है। चीन के भी 50 सैनिक तैनात है। इस बीच चीन ने म्यांमार सेना को अपना समर्थन बढ़ा दिया है।
