वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC से कुछ किमी की दूरी पर भारत का नया एयरफोर्स स्टेशन ऑपरेशनल हो चुका है। यह एयरबेस लद्दाख के न्योमा में बनाया गया है। 12 नवंबर को एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने इसका उद्घाटन किया। जब वे सी-130जे विमान से एयरबेस स्टेशन पर उतरे तो देश की रक्षा में एक नया अध्याय जुड़ गया। न्योमा एयरबेस के सहारे भारत चीन की आक्रामकता को तुरंत जवाब दे सकेगा। तेजी के साथ भारी हथियारों और बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती हो सकेगी। यह लेह और श्रीनगर एयरबेस का विकल्प होगा। चीन के रणनीतिक हाईवे और सैन्य ठिकानों को जरूरत पड़ने पर तबाह किया जा सकता है। आइये जानते हैं लद्दाख के नए-नए न्योमा एयरबेस के बारे, क्यों इससे चीन की टेंशन बढ़ गई है।
न्योमा एयरबेस का रनवे 2.7 किमी लंबा है। पहले यह कच्ची मिट्टी का था, मगर अब नहीं। न्योमा एयरबेस के तैयार होने से अग्रिम मोर्चे पर सैनिकों की तैनाती आसान और त्वरित होगी। अगर चीन कोई हिमाकत करता है तो भारतीय सेनाओं को जवाब देने में कम समय लगेगा। अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों तक रसद पहुंचाना भी आसान होगा। न्योमा एयरबेस पर राफेल, मिग 29, सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे विमान उतर सकेंगे। इसके अलावा चिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टरों की भी तैनाती हो सकती है।
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क्यों खास है न्योमा एयरबेस?
चीन के खिलाफ 1962 के युद्ध में एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (ALG) के तौर पर विकसित न्योमा में 18 सितंबर 2009 में पहली बार फिक्स्ड विंग विमान एएन-32 की लैंडिंग हुई। हालांकि इसके बाद लंबे समय तक न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड का इस्तेमाल नहीं हुआ। 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत ने न्योमा को विकसित करने का फैसला किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2023 के सितंबर महीने में इस एयरफील्ड की नींव रखी।
न्योमा एयरबेस 1235 एकड़ के विशाल क्षेत्रफल में फैला है। यह दुनिया का सबसे ऊंचा लड़ाई सक्षम एयरबेस है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 13,700 फुट है। एयरफोर्स स्टेशन एलएसी से सिर्फ 50 किमी की दूरी पर है। चीन के शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने वाला रणनीतिक जी219 हाईवे न्योमा सिर्फ 100 किमी दूर है। इसी हाईवे से चीन भारत सीमा पर तेजी के साथ अपने सैनिकों को तैनात करता है। अब युद्ध की स्थिति में न्योमा बेस से इस हाईवे को निशाना बनाना आसान होगा।
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न्योमा एयरबेस से क्या-क्या फायदा?
- भारत की निगरानी क्षमता बढ़ेगी।
- भारत को टोही मिशनों पर भी बढ़त होगी।
- अग्रिम मोर्चे पर हथियारों की तुरंत तैनाती।
- टैंक, एयर डिफेंस सिस्टम, तोपखाना पहुंचाना आसान होगा।
- कम समय में अधिक सैनिक तैनात करने की क्षमता होगी।
- भारी मशीनरी ले जाने में आसानी कोई दिक्कत नहीं होगी।
- आपात स्थिति में प्रतिक्रिया देने में सेना को कम समय लगेगा।
चीन को जवाब देने में नहीं होगी देरी
2020 में भारत और चीन के बीच पैंगोंग त्सो झील, देपसांग, डेमचोक, गलवान और चुशुल में तनाव बढ़ा था। मगर यह इलाके भी न्योमा एयरबेस से बहुत दूर नहीं है। हवाई पट्टी का विकास भारतीय वायुसेना और सीमा सड़क संगठन (BRO) ने मिलकर किया है। पहले भारतीय वायुसेना काफी हद तक लेह और श्रीनगर एयरबेस पर निर्भर रहती थी। ये दोनों एयरबेस अग्रिम मोर्चे से काफी दूर हैं। आपात स्थिति में प्रतिक्रिया टाइम भी अधिक लगता है। मगर न्योमा के तैयार होने से अब तस्वीर बदल गई है।
न्योमा एयरबेस में क्या-क्या सुविधा?
न्योमा दक्षिणी लद्दाख का एक अहम गांव और तहसील है। यहां की आबादी एक हजार से भी कम है। भारत न्योमा में इंटरनेट और टेलीफोन कनेक्टिविटी मजबूत कर रहा है। अगर कोई विदेशी न्योमा जाना चाहता है तो उसे इनर लाइन परमिट लेना होगा। एयरबेस में हैंगर, निगरानी टावर, एयर ट्रैफिक कंट्रोल सुविधा और समेत कई आधुनिक सुविधाएं हैं। एयरबेस की हवाई पट्टी 46 मीटर चौड़ी और 2.7 किमी लंबी है। दोनों तरफ से विमानों के उतरने की सुविधा है। सरकार ने कुल 218 करोड़ रुपये की रकम खर्च की है। माना जा रहा है कि भारत न्योमा को ड्रोन बेस बना सकता है।
चीन का खास एयरपोर्ट भी जद में
चीन का न्गारी कुन्सा एयरपोर्ट न्योमा से 180 किमी दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि चीन इसका दोहरा इस्तेमाल करता है। भारतीय सेना की माहे फील्ड फायरिंग रेंज भी न्योमा के करीब है। यह फील्ड 1260 हेक्टेयर में फैली। यहां सेना हर तरह के हथियारों को फायर करती है। अगर चीन भविष्य में कोई आक्रामकता करता है तो उसे न्योमा से जवाब देना आसान होगा।
लेह एयरबेस: न्योमा लद्दाख का लड़ाकू विमानों से लैस तीसरा एयरबेस है। लेह एयरबेस का रनवे लगभग 9,040 फुट की ऊंचाई पर है। यहां से राफेल, मिग-29 और सुखोई-30 जैसे विमान उड़ान भर चुके हैं। वहीं परिवहन विमान भी नियमित रूप से उतरते रहे हैं।
थोईस एयरबेस: लद्दाख के नुब्रा क्षेत्र में स्थित यह एयरबेस सियाचिन के लिहाज से काफी अहम है। सैनिकों तक रसद सामग्री इसी बेस से पहुंचाई जाती है। एयरबेस लेह से 160 किमी की दूरी पर स्थित है। यह दौलत बेग ओल्डी का मेन एयर पोर्ट भी है। अगर थोईस तक जाना है तो आपको खारदुंग ला से गुजरना होगा। लद्दाख के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड में न्योमा, दौलत बेग ओल्डी और फुकचे शामिल है। हालांकि अब न्योमा एयरबेस में तब्दील हो चुका है।
