मणिपुर में कुकी और जो समुदाय के दो प्रमुख छात्र संगठनों ने मांग की है कि राज्य में एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट (UPF) ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई एक बैठक में छात्र संगठनों ने यह मांग रखी है। यह बैठक 6 और 7 नवंबर को हुई है। संगठन की मांग है कि केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा भी हो। 

कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट (UPF) ने बैठक में यह भी कहा है कि मणिपुर राज्य के प्रशासनिक ढांचे में कुकी-जो और मैतेई समुदायों का सह-अस्तित्व अब संभव नहीं है। दो महीने पहले 4 सितंबर 2025 को ट्राइपार्टाइट सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समझौते पर नए सिरे से हस्ताक्षर हुए थे, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है।  

गृह मंत्रालय ऐसी किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं है। मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की कोई नीति नहीं है। मैतेई, कुकी, जो और नागा समुदाय के प्रतिनिधि नेताओं के साथ प्रशासन लगातार बातचीत कर रहा है। सभी पक्षों के बीच शांति को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है। कई महीनों से अस्थिरता की स्थिति है लेकिन अब हिंसक झड़पें थम गईं हैं। 

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तनाव रोकने के लिए क्या किया गया है?

जिन जगहों पर मैतेई और कुकी समुदाय के लोग हैं, मिश्रित आबादी है, वहां बफर जोन बनाए गए हैं। दोनों समुदायों के बीच सहअस्तित्व पर जोर दिया जा रहा है। 

बैठक में चर्चा क्या हुई है?

कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट के साथ बातचीत में गृह मंत्रालय की ओर से वार्ताकार एके मिश्रा मौजूद रहे। वह उत्तर पूर्व के मामलों पर गृह मंत्रालय के सलाहकार हैं। संगठनों की मांग है कि कुकी-जो जिलों में प्रशासन और शासन के मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। अब मैतेई के साथ सह अस्तित्व संभव नहीं है। दोनों संगठनों का कहना है कि मणिपुर राज्य के प्रशासनिक व्यवस्था के तहत सह-अस्तित्व अब संभव नहीं है। एके मिश्रा ने केंद्र की तरफ से कहा कि केंद्र सरकार कुकी-जो समुदाय के खिलाफ हुई हिंसा को संवेदनशील मानता है लेकिन मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की कोई योजना नहीं है।

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मणिपुर में सुरक्षाबलों के सर्च ऑपरेशन में बरामद हथियार। (Photo Credit: Manipur Police)

क्या चाहते हैं कुकी संगठन?

कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट की मांग है कि जमीन संबंधित अधिकारों की रक्षा किया जाए। कुकी और जो समुदाय की पंरपराओं को संरक्षण दिया जाए, पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी और जो समुदायों को एकाधिकार मिले। सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस पर विद्रोही गुटों ने कहा है कि ग्रामीण समितियों के भंग होने और राष्ट्रपति शासन के बाद दिक्कतें आ रही हैं। जमीन का रजिस्ट्रेशन, बिक्री के दस्तावेज इतने जटिल हो गए हैं कि जिन्हें आसान बनाने की जरूरत है। इसके लिए समुदाय के लोगों को इंफाल जाना पड़ता है। 2023 में भड़की हिंसा के बाद इंफाल, कुकी और जो समुदायों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है, ऐसे में समुदाय के हित के मद्देनजर स्थानीय स्तर पर सुविधाएं बहाल की जाएं।

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सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस के भविष्य पर क्यों सवाल उठे?

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) पर हुए समझौते पर फिर से बातचीत की मांग की जा रही है। साल 2005 में पहली बार राज्य में यह लागू हुआ था। गृह मंत्रालय ने त्रिपक्षीय समझौते पर फरवरी 2024 में बातचीत करने की उम्मीद जताई थी लेकिन बात नहीं बन पाई है। नई शर्तों में कहा गया है कि सुरक्षा बल कैडरों का सत्यापन करेंगे, विदेशी नागरिकों को लिस्ट से बाहर करेंगे, निर्वासित करेंगे और विद्रोही समूहों की ओर से चलाए जा रहे शिविरों को खत्म करेंगे। 

मणिपुर में गश्त पर गए सुरक्षा बल। (Photo Credit: ManipurPolice/X)

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस क्या है?

मणिपुर में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस एक त्रिपक्षीय समझौता है। यह समझौता केंद्र सरकार, मणिपुर सरकार और कुकी-जो के उग्रवादी समूहों के बीच में होता है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंसा रोकना और राजनीतिक संवाद के जरिए शांति स्थापित करना है। यह समझौता 2008 में शुरू हुआ था और इसे नियमित रूप से नए सिरे से तैयार किया जाता रहा है। मणिपुर में बढ़ते जातीय तनाव और हिंसा की वजह से इसके नवीनीकरण में दिक्कतें आईं। हाल ही में, सितंबर 2025 में यह समझौता दोबारा हस्ताक्षरित और संशोधित हुआ है।

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क्या शर्तें तय हुईं हैं?

  • कुकी-जो विद्रोही समूह हिंसा और सुरक्षाबलों पर हमलों को रोकेंगे
  • विद्रोही समूहों के कैडरों की सख्त जांच और विदेशी सदस्यों की पहचान कर उन्हें बाहर किया जाएगा
  • उग्रवादी शिविरों को संवेदनशील क्षेत्रों से दूर ट्रांसफर किया जाएगा
  • मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को मानना ही होगा
  • नेशनल हाइवे 2 के निर्बाध इम्फाल-दीमापुर राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को फिर से खोला जाए
  • भारतीय संविधान के तहत राजनीतिक समाधान की बात शामिल हुई है

नए बदलाव क्या हैं?

  • कैडरों की कड़ी फिजिकल वेरिफिकेशन और शिविरों पर निगरानी
  • संयुक्त निगरानी समूह नियम तोड़ने पर कार्रवाई करेगा
  • कुकी-जो समूहों की राजनीतिक मांगों का समाधान संविधान के तहत ही हो सकता है

चुनौतियां क्या हैं?

  • मैतेई समुदाय अलग प्रशासन नहीं चाहता है
  • कुकी और जो समुदाय की मांग है केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए
  • केंद्र सरकार ने इसे खारिज कर दिया है
  • मणिपुर में हिंसा और विस्थापन अभी खत्म नहीं हो रहा है   

कब से सुलग रहा है मणिपुर? 

मैतेई और कुकी समुदायों के बीच 3 मई 2023 को पहली बार हिंसा भड़की थी। मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे थे। कुकी समुदाय ने आशंका जाहिर की थी कि उनकी जमीनें और अधिकारों को छीनने की साजिश रची जा रही है। साल 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर फैसला करने को कहा था। हंगामा इसी बात पर शुरू हुआ। दोनों समुदायों के बीच भीषण हिंसा हुई। SoS समूहों की सारी शर्तें टूटीं, विद्रोह हुआ, संगठनों ने हंगामा किया, सुरक्षाबलों पर विद्रोही गुटों ने हिंसा की। मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने दावा किया था कि एसओओ समूहों ने समझौते के बुनियादी नियमों का उल्लंघन किया है और जातीय हिंसा को भड़काया है। हिंसा की वजह से 250 लोग मारे गए हैं। 60,000 से ज्यााद लोग अपने घरों से विस्थापित होने को मजबूर हैं।

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मणिपुर में कुकी समूह अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहे हैं। (Photo Credit: PTI)

किस इतिहास का हवाला दे रहे हैं कुकी और जो?

कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन और यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट का तर्क है कि केंद्र शासित प्रदेश की मांग की वजह की जड़ें इतिहास से जुड़ी हैं। 6 और 7 मई को हुई बैठक में विद्रोही समूहों ने तर्क दिया कि आजादी से पहले कुकी-जो बाहुल पहाड़ियां कभी मणिपुर राज्य दरबार के अधीन नहीं थीं। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत इन्हें 'बहिष्कृत क्षेत्र' घोषित किया गया है। ये लोग ब्रिटिश राजनीतिक एजेंटों के सीधे प्रशासन में थे। मणिपुर घाटी मैतेई महाराजा के नियंत्रण में रहीं।

कुकी और जो विद्रोहियों का तर्क है कि साल 1949 में जमीन, पहाड़ी और मैदानी इलाकों में समुदायों के पहले पूर्ण अधिकार थे। साल 1949 के विलय के बाद जिन पहाड़ी क्षेत्रों को घाटी शासित केंद्रीय शासन में शामिल किया गया, तो जमीन मालिकों को मुआवजा ही नहीं दिया गया। मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों की भूमि प्रणाली में अंतर था। पहाड़ियों के सामुदायिक स्वामित्व की रक्षा करनी थी लेकिन घाटी के हिसाब के कानून बने। 

साल 2008 में पहली बार सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस पर समझौता हुआ था। 4 सितंबर 2025 को इसे रिन्यू किया गया। 3 मई 2023 की हिंसा के बाद कुकी और जो समुदायों के लोगों ने साफ कह दिया कि वे अब इस राज्य में मैतेई समुदाय के साथ नहीं रह सकते हैं। केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए, प्रशासनिक विभाजन हो। अब सहअस्तित्व असंभव है। गृह मंत्रालय, केंद्र शासित प्रदेश बनाने का पक्षधर नहीं है। मैतेई बाहुल घाटी और कुकी-जो बाहुल पहाड़ी इलाकों में आए दिन झड़पें हो रहीं हैं।