पूर्वोत्तर की राजनीति में पिछले काफी समय से हलचल देखने को मिल रही है। पुरानी पार्टियों के अलावा नई पार्टियां आंदोलन, प्रदर्शन और नए समीकरण के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज करवाकर अपनी पैठ मजबूत करने में लगी हुई हैं। साथ ही ये दल बीजेपी और कांग्रेस का तोड़ निकालने के लिए एक जुट हो रहे हैं। इसका असर त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुरी में देखने को मिल रहा है। इसी की बानगी 5 नवंबर को देश की राजधानी नई दिल्ली में तक दिखी जब पूर्वोत्तर के कई बड़े और अहम राजनीतिक दलों ने एक मंच पर आने का संकेत दिया। इससे बीजेपी-कांग्रेस के खेमों में चिंता बढ़ गई और ये दोनों राष्ट्रीय दल अपनी रणनीति में बदलाव करने की सोच में पड़ गए हैं।
पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रिय दल एक साथ मिलकर संयुक्त रूप से नई पार्टी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। 5 नवंबर को मेघालय मुख्यमंत्री और नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) के अध्यक्ष कोनराड संगमा, टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा, पीपल्स पार्टी के संस्थापक डैनियल लांगथासा समेत कई नेता एक मंच पर आकर नई पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे समय में टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा पूर्वोत्तर में बड़ा उटलफेर करने की तैयारी में हैं। प्रद्योत देबबर्मा की पूर्वोत्तर के राज्यों को लेकर क्या प्लानिंग है आइए विस्तार से इस स्टोरी में समझते हैं...
लंबित ग्राम समिति के चुनाव कराने की मांग
दरअसल, टिपरा मोथा के सुप्रीमो प्रद्योत देबबर्मा ने 5 नवंबर को अपनी पुरानी बातों को दोहराते हुए कहा कि त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय का कल्याण और भविष्य सभी राजनीतिक झुकाव-जुड़ाव या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर है। उन्होंने टिपरासा समझौते को लागू करने और लंबे समय से लंबित पड़े ग्राम समिति के चुनाव कराने में देरी के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाली त्रिपुरा सरकार की तीखी आलोचना की। उन्होंने त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय की बात उठाकर उन्हें अपने खेमें में लाने की कवायद कर दी, जिसे वह आने वाले विधानसभा चुनाव में उठाएंगे।
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दिल्ली में बढ़ाई हलचल
राजधानी दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कोनराड संगमा (मेघालय), भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवक्ता रहे एम किकोन (नागालैंड), असम की पीपल्स पार्टी के संस्थापक डैनियल लांगथासा और टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत देबबर्मा (त्रिपुरा) ने नई पार्टी बनाने की बात कही। दिल्ली से मीडिया से मुखआतिब होने के बाद त्रिपुरा पहुंचने के बाद प्रद्योत देबबर्मा ने कहा कि सभी दल अलग-अलग मंचों से टिपरासा, नागा और मिजो लोगों की तरह ही समान मुद्दे उठाते रहे हैं, लेकिन यही लोग दिल्ली में मूलनिवासी समुदाय के रूप में सामूहिक रूप से कभी अपनी आवाज नहीं उठाई।
उन्होंने कहा, 'अब तिप्रसा अकेले नहीं हैं, नागा, मिजो, अरुणाचली, मणिपुरी और दिमासा तिप्रसा आदिवासियों के साथ हैं। अब यह पूर्वोत्तर की एकता होगी। मेरी एकमात्र ब्रांड जनता है, और जनता के भविष्य से बड़ा कोई ब्रांड नहीं है। मेरे लिए, मेरे देश, मेरे लोगों और पूर्वोत्तर का हित ही मेरा ब्रांड है। मुझे ब्रांडों से प्यार नहीं है, बल्कि मुझे अपने समुदाय से प्यार है, जो मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।' तिप्रसा आदिवासी त्रिपुरा और बांग्लादेश में फैले हुए हैं। यह लोग त्रिपुरा के मूल निवासी माने जाते हैं। इस जनजाति की भाषा तिब्बती-बर्मी है।
पूर्वोत्तर की जनजाति को जानिए
नागा जनजाति पूर्वोत्तर भारत में खासतौर से नागालैंड, मणिपुर और असम जैसे राज्यों में रहती है। यह इन राज्यों में 17 से ज्यादा विशिष्ट जनजातियों का एक समूह है, जो अपनी योद्धा परंपरा, अनोखे रीति-रिवाजों और विशिष्ट भाषाओं के लिए जाने जाते हैं। वहीं, मिजो भी जनजातीय समूह है जो मुख्य रूप से मिजोरम और पूर्वोत्तर भारत के पड़ोसी क्षेत्रों, साथ ही म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में रहते हैं। इसी तरह से अरुणाचल में रहने वाले आदिवासी, मणिपुर में रहने वाले मैतेई और डिमासस आदिवासी और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के कई क्षेत्रों में फैसे हुए हैं।
इन राज्यों में ये आदिवासी समुदाय राजनैतिक लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। ये समुदाय चुनावों में किसी भी पार्टी को राज्य की सत्ता से लेकर दिल्ली तक पहुंचा सकते हैं। यही वजह है कि प्रद्योत देबबर्मा इनकी बात बड़े पैमाने पर उठा रहे हैं।
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'टिपरासा' क्या है?
बता दें कि प्रद्योत देबबर्मा जिस 'टिपरासा' की बात कर रहे हैं वह त्रिपुरा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय शांति समझौता है। यह टिपरा इम्पीरिकल पार्ट टू रिस्टोर अस (TIPRA) जिसे आमतौर पर टिपरा मोथा के नाम से जाना जाता है, जिसके साथ केंद्र सरकार और त्रिपुरा की राज्य सरकार के बीच 2 मार्च 2024 को समझौता हुआ था। टिपरासा नाम त्रिपुरा के मूल निवासियों/जनजाति के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को लेकर है। यह त्रिपुरा को एक अलग 'टिपरासा' के रूप में देखता है। यह समझौता त्रिपुरा में जनजातीय असंतोष और अलगाववादी मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की कोशिश है।
प्रद्योत देबबर्मा ने इस दौरान कहा कि तिप्रसा के लोगों का भविष्य बीजेपी, टिपरा मोथा, सीपीआई-M या कांग्रेस के भविष्य से ज्यादा जरूरी है। उन्होंने आगे कहा, 'मैं पार्टी के बारे में नहीं, बल्कि अपने लोगों के बारे में सोच रहा हूं।' देबबर्मा लगातार तिप्रसा के लोगों की बात करके और उनके हक में आवाज उठाकर उनकी लगातार सहानुभुति ले रहे हैं। साथ ही उनके बीच अपनी पैठ मजबूत कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
उन्होंने आगे कहा, '10 नवंबर को ग्राम परिषद की सुनवाई होगी। त्रिपुरा ने और समय मांगा है, लेकिन हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने समय देने से इनकार कर दिया है। अगर राज्य सरकार चुनाव कराने को तैयार है, तो हमें सुप्रीम कोर्ट क्यों जाना पड़ रहा है? पिछला चुनाव 2016 में हुआ था और अब 2026 आ रहा है। क्या यही लोकतंत्र है? अगर वे ऐसा करना चाहते, तो कर सकते थे। तिप्रसा समझौते पर, मुख्यमंत्री और मैं चर्चा करेंगे।'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट त्रिपुरा में ग्राम समिति चुनावों में देरी से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) क्षेत्र की 587 ग्राम समितियों के चुनाव मार्च 2021 से लंबित हैं। इस अभूतपूर्व देरी ने राज्य में स्थानीय स्वशासन की प्रक्रिया को प्रभावित किया है। प्रद्योत देबबर्मा इसी को राज्य में मुद्दा बना रहे हैं। गांव स्तर पर स्थानीय लोगों की आवाज उठाकर देबबर्मा उनका समर्थन हासिल करना चाहते हैं।
प्रद्योत देबबर्मा का मकसद
त्रिपुरा में नई पार्टी बनाने वाले प्रद्योत देबबर्मा की टिपरा मोथा ने 2023 के विधानसभा चुनाव में सबको चौंका दिया था। तब उनकी पार्टी के 13 विधायक जीते थे और यह पार्टी त्रिपुरा में बीजेपी के बाद दूसरे नंबर पर रही थी। बाद में टिपरा मोथा भी त्रिपुरा सरकार में शामिल हो गई। यानी तिपरा मोथा भी एनडीए के हो गई है। इस तरह से देबबर्मा लगातार त्रिपुरा में अदिवासियों की बात करके अपनी स्तिथी मजबूत कर रहे हैं।
