इजरायल की सरकार ने 23 नवंबर को एक बड़ा फैसला लिया जिसमें भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले सभी 5800 यहूदियों को वापस इजरायल ले जाने की योजना को मंजूरी दी है। इन यहूदियों को आमतौर पर 'बेनी मेनाशे' कहा जाता है। ऐसा पहली बार नहीं है कि इजरायल इस समुदाय को वापस यरुशलम ले जाने की तैयारी में है। इससे पहले भी इस समुदाय के कुछ परिवारों को इजरायल में बसाया जा चुका है।
इस प्रस्ताव के तहत अगले 5 साल में सभी यहूदियों को इजरायल ले जाया जाएगा। इजरायल यहूदी एजेंसी ने इस बारे में जानकारी दी है। एजेंसी ने बताया कि साल 2030 तक समुदाय के लगभग 5800 सदस्य इजरायल आ जाएंगे जिनमें 2026 में पहले से मंजूर 1200 सदस्य शामिल हैं।
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2.7 अमेरिकी डॉलर का खर्च
यह पहली बार होगा कि जुइश एजेंसी इमीग्रेशन प्रक्रिया का नेतृत्व करेगी। इस योजना के लिए अनुमानित 9 करोड़ शेकेल यानी 240 करोड़ का खर्च आएगा जिसमें इन लोगों के लिए उड़ानों, धर्म संबंधी पढ़ाई, आवास, हिब्रू पाठ और अन्य चीजों को कवर किया जा सके। आने वाले दिनों में रब्बियों (धार्मिक नेताओं) का एक प्रतिनिधिमंडल भारत के लिए रवाना होने की संभावना है।
कौन हैं बेनी मेनाशे?
बेनी मेनाशे खुद को इजरायल की 10 खोई हुई जनजातियों में से एक, मेनाशे जनजाति का वंशज मानते हैं। उनका मानना है कि 2700 साल पहले, जब नियो-असीरियन साम्राज्य ने उत्तरी इजरायल पर कब्जा किया था, तो उनकी जनजाति को देश से बाहर निकाल दिया गया था, जिसके बाद वे सदियों तक फारस, अफगानिस्तान, तिब्बत और चीन के रास्ते भटकते हुए भारत-म्यांमार सीमा के पास आकर बस गए।
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फिलहाल इस समुदाय के लोग भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर और मिजोरम में रहते हैं। वे कुकी, चिन और मिजो जातीय समूहों से संबंधित हैं। इन लोगों ने लंबे समय तक ईसाई धर्म का पालन किया लेकिन 20वीं सदी के मध्य में अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ों को यहूदी धर्म से जोड़कर फिर से खोजा और कई यहूदी परंपराओं (जैसे खतना और सब्त) को अपनाना शुरू किया।
2005 में इनको इजरायल के तत्कालीन सेपहार्डी मुख्य रब्बी श्लोमो अमर ने इस समुदाय को इजरायल के वंशज के रूप में आधिकारिक मान्यता दी। इसके बाद इनका इजरायल वापसी का रास्ता खुल गया। 'अलियाह' यहूदियों के इजरायल लौटने की प्रक्रिया को कहते हैं। पिछले दो दशकों में लगभग 4000 से अधिक इसके सदस्य पहले ही इजरायल जा चुके हैं और वहां बस गए हैं।
