तमिलनाडु सरकार सियासी दलों के लिए कुछ मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार करने में जुटी है। अगर यह नियम बन जाते हैं तो तमिलनाडु देश का पहला राज्य होगा, जहां सियासी दलों को रैली और रोड शो करने से पहले सिक्योरिटी राशि जमा करवानी होगी। प्रस्ताव के मुताबिक सियासी दलों को 1 लाख से 20 लाख रुपये तक की जमानत राशि जमा करवानी पड़ सकती है। अगर आयोजन शांतिपूर्ण संपन्न हुआ तो यह जमानत राशि लौटा दी जाएगी। पिछले हफ्ते मद्रास हाई कोर्ट ने सरकार को दूसरा ड्राफ्ट तैयार करने का निर्देश दिया। डीएमके सरकार ने एक महीने का समय मांगा, लेकिन कोर्ट ने 21 नवंबर तक का समय दिया है।
सरकार के नए प्रस्ताव में क्या प्रावधान?
सरकारी प्रस्ताव के मुताबिक अगर रैली या रोड शो में पांच हजार से 10 हजार की भीड़ जुटने का अनुमान है तो आयोजक को 1 लाख रुपये की जमानत राशि जमा करवानी होगी। अगर भीड़ 10 से 20 हजार के बीच हुई तो यह राशि 3 लाख रुपये होगी। प्रस्ताव में आगे कहा गया कि 20 से 50 हजार तक की जनसभा की जमानत राशि 8 लाख रुपये होगी। अगर रैली में 50 हजार से अधिक लोग जुटे तो सियासी दल को 20 लाख रुपये बतौर सिक्योरिटी जमा करवाना पड़ेगा।
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प्रस्ताव के खिलाफ क्यों सियासी दल?
तमिलनाडु के कई सियासी दलों ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध किया। इसमें डीएमके के सहयोगी दल भी शामिल हैं। उनका तर्क है कि लोकतंत्र में जनसभा करने का सबको अधिकार है। अगर इतनी भरी भरकम जमानत राशि वसूली गई तो छोटी पर्टियां यह रकम कहां से जुटाएंगी? तमिलनाडु सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक में इस प्रस्ताव के बारे में सभी दलों को अवगत कराया था।
वीसीके, टीएनसीसी और पीएमके ने रैली के बदले जमानत राशि का विरोध किया। उनका दावा है कि छोटे दल इतनी बड़ी रकम नहीं दे पाएंगे। वीसीके अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने रोड शो पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग की। दूसरी तरफ वीसीके विधायक सिंथनाई सेल्वम और एसएस बालाजी ने प्रस्ताव का विरोध किया।
तमिलनाडु कांग्रेस अध्यक्ष के सेल्वापेरुंथगई का कहना है कि प्रस्तावित डिपॉजिट से छोटी पार्टियों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा। कई पार्टियां हर मीटिंग के लिए लाखों रुपये जमा नहीं कर पाएंगी। वहीं सीपीएम नेता के. बालकृष्णन ने कहा कि यह प्रस्ताव बहुत है। अदालत ने सिर्फ निर्देश दिया है, कोई फैसला नहीं सुनाया है।
क्यों नियम बना रही तमिलनाडु सरकार?
27 सितंबर को तमिलनाडु के करूर में अभिनेता से नेता बने विजय की तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) के रोड में भगदड़ मच गई थी। इस हादसे में 41 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। वहीं 60 से अधिक घायल हुए थे। इसके बाद 27 अक्टूबर को मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से सियासी आयोजनों से जुड़े दिशानिर्देश बनाने को कहा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर सरकार दिशानिर्देश बनाने में फेल रही तो कोर्ट खुद ही निर्देश जारी करेगा। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सियासी आयोजनों से जुड़ी एसओपी बनाने में जुटी है।
डीएमके के इन सहयोगियों ने किया विरोध
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा)
- विदुथलाई चिरुथैगल काची (वीसीके)
रोड शो: प्रस्ताव के मुताबिक सियासी दलों को रैली और रोडशो की जानकारी आयोजन से करीब 10 दिन पहले प्रशासन को देनी होगी। रोडशो किस-किस रोड से गुजरेगा। वीआईपी कब रोडशो में पहुंचेगा। समर्थकों को कहां संबोधित किया जाएगा। इसकी सटीक जानकारी भी देनी होगी, ताकि पुलिस पहले से ही भीड़ नियंत्रण का प्लान बना सके। नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे या लोकल सड़क से रोडशो निकलने पर संबंधित निकाय से मंजूरी लेनी होगी। रोड शो में वीआईपी और आम लोगों के बीच 500 मीटर की दूरी में बैरिकेडिंग करनी होगी।
सार्वजनिक सभा: रैली स्थल पर बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं का एन्क्लेव अलग होगा। लाइट, प्राथमिक चिकित्सा सहायता, सीटीटीवी, एंबुलेंस, शौचालय, जनरेटर की व्यवस्था भी करनी होगी। सियासी दलों को लिखित में यह भी आश्वासन देना होगा कि रोडशो या रैली में एंबुलेंस को निकालने का रास्ता दिया जाएगा। रैली स्थल में अलग-अलग जोन बनाने होंगे। हर जोन में एक हजार लोगों के बैठने या 500 लोगों के खड़े होने की व्यवस्था करनी होगी। जिला प्रशासन स्थल का दौरा करेगा और यह देखेगा कि बुनियादी चीजें वहां उपलब्ध हैं या नहीं। इसके बाद सियासी दलों के साथ मशविरा करके मंजूरी देने या नहीं देने पर फैसला किया जाएगा।
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कैसे होगी पुलिस अधिकारियों की तैनाती?
पुलिस के तैनाती के नियम भी बनाए गए हैं। प्रस्ताव के मुताबिक कम रिस्क वाले आयोजन में हर 200 लोगों पर एक अधिकारी की तैनाती होगी। वहीं मीडियम रिस्क और हाई रिस्क वाले आयोजन में क्रमश: 100 और 50 लोगों में एक अधिकारी को तैनात किया जाएगा। खास बात यह है कि ये नियम सिर्फ सियासी आयोजनों पर ही लागू नहीं होंगे। अगर कोई धार्मिक, सांस्कृतिक या कोई अन्य आयोजन किया जा रहा तो उस पर भी यह एसओपी लागू होगी। हालांकि अभी यह प्रस्तावित है।
नियम बनाने के पीछे तर्क क्या?
सरकार का मानना है कि इस जमानत राशि का इस्तेमाल किसी के घायल होने या सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई में किया जाएगा। अगर आयोजन सही ढंग से हुआ तो सियासी दल को रकम वापस कर दी जाएगी। प्रस्तावित नियमों के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर जमानत राशि का कुछ हिस्सा या पूरी राशि जब्त कर सकता है। इसके अलावा वह कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है।
