हाल ही में कर्नाटक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग उठी। सार्वजनिक स्थानों पर आरएसएस की शाखा लगाने पर भी कथित पाबंदी लगी। हालांकि हाई कोर्ट इस मामले में अंतरिम रोक लगा चुका है। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और उनके बेटे प्रियांक खरगे भी बैन लगाने की मांग उठे चुके हैं।
कर्नाटक के अलावा कई अन्य राज्यों में भी विपक्षी दल आरएसएस पर हमलावर हैं। रविवार को केरल सरकार ने एर्नाकुलम से बेंगलुरु के लिए शुरु हुई नई वंदे भारत एक्सप्रेस में छात्रों से संघ का गीत गवाने के मामले की जांच शुरु कर दी है। विपक्षी दल संघ पर बिना पंजीकरण के काम करने का आरोप लगाते हैं।
अब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विपक्षी सवालों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। रविवार को उन्होंने कहा, 'आरएसएस की स्थापना साल 1925 में हुई थी, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के पास रजिस्टर्ड होंगे? देश आजाद होने के बाद भारत सरकार ने पंजीकरण अनिवार्य नहीं किया। हमें व्यक्तियों के एक समूह के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। हम एक मान्यता प्राप्त संगठन हैं।
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'हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं'
मोहन भागवत ने आगे स्पष्ट किया कि आयकर विभाग और अदालतों ने आरएसएस को व्यक्तियों का एक समूह माना है। संगठन को आयकर से छूट मिली है। उन्होंने कहा, 'हमें तीन बार प्रतिबंधित किया गया था, इसलिए सरकार ने हमें मान्यता दी है। अगर ऐसा नहीं था तो उन्होंने किस पर बैन लगाया?।' संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आगे कहा, 'हर चीज पंजीकृत नहीं होती है। यहां तक कि हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है।'
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तिरंगे के प्रति हमारा गहरा सम्मान: संघ प्रमुख
संघ पर आरोप लगता है कि वह तिरंगे की जगह भगवा झंडे को अहमियत देता है। भागवत ने खुलकर इस मामले में भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि आरएसएस में भगवा को गुरु माना जाता है। मगर भारतीय तिरंगे के प्रति भी गहरा सम्मान है। उन्होंने कहा, 'हम हमेशा अपने तिरंगे का सम्मान करते हैं, उसकी रक्षा करते हैं।'
