बिहार की सियासत में विपक्ष की नजरों में नीतीश कुमार की छवि ऐसे नेता की हो गई है, जिन्हें पाला बदलने में महारत हासिल है। वह अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी तेजस्वी यादव को दो-दो बार उपमुख्यमंत्री बना चुके हैं। उन्हें तेजस्वी 'पलटू चाचा' और 'पलटू राम' तक कह चुके हैं। नीतीश कुमार पर ये आरोप ऐसे ही नहीं लगे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले, जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार प्रस्तावित किया था, एनडीए से दोस्ती तोड़कर नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ हो गए थे। उन्होंने जून 2013 में यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया था कि नरेंद्र मोदी ध्रुवीकरण की राजनीति करते हैं।

नीतीश कुमार की इस छवि का नुकसान इतना हुआ कि उन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बार-बार सार्वजनिक मंचों से कहना पड़ा कि एनडीए और जेडीयू का गठबंधन स्वाभाविक है, उनकी पार्टी विकासवादी पार्टी है, वह अब नहीं पलेंटेग, हर दिन एनडीए के साथ रहेंगे। इसके लिए उन्होंने वक्फ अधिनियम पर बीजेपी का साथ दे दिया, जबकि नीतीश कुमार की छवि ऐसे नेता की रही है, जिसे मुसलमान भी पसंद करते हैं। उन्हें यह पता था कि बिहार में मुस्लिम मतदाता केंद्र में वक्फ पर बीजेपी का साथ देने से नाराज होंगे, फिर भी बीजेपी का साथ दिया। नीतीश कुमार को साबित करना पड़ा कि वह बीजेपी के साथ हैं। 

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19 अक्तूबर 2024 में दिया गया नीतीश कुमार का बयान:-
दो बार गलती हो गई है। अब इधर-उधर नहीं जाएंगे। शुरू से हम लोग साथ थे। जब पार्टी बनाए थे तो साथ थे। हम लोग गड़बड़ कर दिए। इधर-उधर चले गए। बीजेपी से दो बार अलग हो गए, लेकिन अब हम कहीं नहीं जाएंगे। वे लोग जरा सा गड़बड़ नहीं करता है। बहुत गड़बड़ करता है। अब आ गए हैं, तो कहीं नहीं जाएंगे।

नीतीश कुमार कब-कब बदल चुके हैं पाला?

जून 2013 आखिरी तारीख नहीं थी जब नीतीश कुमार पलट गए हों। 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ गए नीतीश कुमार ने कुछ दिनों तक सरकार चलाई। तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम पद पर रहे लेकिन 2017 में अचानक उनका महागठबंधन से मोह भंग हो गया, फिर उन्होंने एनडीए का हाथ थाम लिया। वजह बताई कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महागठबंधन से अलग हो रहे हैं। कुछ घंटे बाद ही 26 जुलाई 2017 को वह एनडीए में शामिल हो गए थे। 

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तेजस्वी यादव के साथ नीतीश कुमार। (File Photo Credit: PTI)

साल 2020 में एनडीए के साथ उन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन 2022 में एनडीए गठबंधन से उन्होंने नाता तोड़ लिया। उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना ली। 10 अगस्त 2022 से लेकर 28 जनवरी 2024 तक वह महागठबंधन में रहे लेकिन फिर अचानक महागठबंधन का साथ छोड़ दिया और एनडीए में वापसी कर ली। अब वह सार्वजनिक मंचों से बार-बार कह रहे हैं कि एक-दो बार उधर चला गया था लेकिन अब सब दिन यहीं रहेंगे। 2024 में एनडीए के साथ लौटे तो लोकसभा से लेकर विधानसभा तक नीतीश कुमार छा गए। 

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नीतीश कुमार की सियासी ताकत क्या है?

  • लोकसभा: 12 सांसद
  • विधानसभा: 85 विधायक

कमजोरी क्या है?

बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार 2020 की तुलना में 43 सीटों से बढ़कर 85 तक पहुंच गए हैं लेकिन महागठबंधन के पास इतनी कम सीटें हैं कि वह चाहें भी तो उनके साथ जाकर 2015 और 2022 की तरह सरकार नहीं बना सकते हैं। 

अब चाहें भी पलटी नहीं मार सकते हैं नीतीश कुमार

  • नीतीश कुमार इस बार चाहें भी तो पलटी नहीं मार सकते हैं। वजह यह है कि विपक्ष का सिर्फ 35 सीट पर सिमट जाना। बीजेपी जरूर अगर चाहे तो नीतीश कुमार के बिना भी सरकार बना सकती है। पार्टी के पास 89 सीटें हैं। इस बार पहले जितनी मजबूत स्थिति में महागठबंधन के घटक दल नहीं हैं। 

  • जेडीयू को 85 सीटों पर जीत मिली है। राष्ट्रीय जनता दल के पास सिर्फ 25 सीटें हैं। कांग्रेस के पास सिर्फ 6 सीटें हैं। CPI (ML) (L) को 2 सीटें मिलीं हैं, CPI (M) और इंडिनयन इंक्लूसिव पार्टी (IIP) को 1 एक सीट मिली है। बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं, सरकार बनाने के लिए 122 सीटें अनिवार्य हैं। बहुमत साबित करने के लिए अगर महागठबंधन नीतीश कुमार के साथ आए तो भी 120 सीटें किसी तरह से हो रही हैं।

  • दूसरी तरफ बीजेपी के पास 89 सीटें हैं। नीतीश कुमार के साथ एनडीए गठबंधन के पास 202 सीटें हैं। अगर नीतीश कुमार छिटकते भी हैं तो भी बीजेपी सरकार बना सकती है। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के पास 19 सीटें हैं। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के पास 5 तो  राष्ट्रीय लोक मोर्चा के पास 4 सीटें हैं। कुल सीटें मिलाकर 117 हो रही हैं। जेडीयू की पार्टी में ही कई नेता ऐसे हैं, जो सिर्फ इसलिए नीतीश कुमार के साथ हैं कि वह बीजेपी के साथ हैं। अगर नीतीश कुमार पलटते भी हैं तो उनकी पार्टी में ही बगावत छिड़ सकती है।  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार। (Photo Credit: PTI)


अगर न छिटके जेडीयू के विधायक तो क्या हो सकता है?

अगर नीतीश कुमार अपने विधायकों को संभाल पाते हैं तो बिहार में सियासी खेल हो सकता है। महागठबंधन के साथ जाने पर उनके विधायकों की कुल संख्या 120 हो रही है। असदुद्दीन ओवैसी पहले ही महागठबंधन से 6 सीटें मांग रहे थे। उन्होंने 5 सीटों पर जीत हासिल की है। अगर वह महागठबंधन का हिस्सा बनें और वह नीतीश कुमार की सीएम दावेदारी पर सहमत हों तो बिहार में एनडीए गठबंधन सत्ता से दूर भी हो सकता है।