उत्तराखंड के जौनसार-बावर और हिमाचल की सीमाओं पर बसे पहाड़ी इलाकों में आज भी ऐसी आस्था धड़कती है, जिसे लोग देवता का आदेश और न्याय का अंतिम फैसला मानते हैं। इन्हीं मान्यताओं के केंद्र में हैं, महासू देवता, जिन्हें स्थानीय लोग जागते देवता, न्याय के देवता और रक्षक देवता के रूप में पूजते हैं। सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपराओं से घिरे महासू देवता की डोली जब भी गांवों की ओर बढ़ती है, कहा जाता है कि देवता स्वयं लोगों का दुख-दर्द सुनने निकल पड़े हों।
राक्षसों से मुक्ति दिलाने की पौराणिक कथा से लेकर गांवों की सुरक्षा और न्याय देने की अनोखी परंपरा की वजह से महासू देवता आज भी उत्तराखंड की आस्था की सबसे मजबूत धुरी माने जाते हैं। प्रदेश के लोगों में यह विश्वास गहरा है कि महासू देवता का आदेश कभी गलत नहीं होता और देवता के दरबार में बोला गया हर शब्द सत्य के तराजू पर तौला जाता है।
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महासू देवता का इतिहास
महासू देवता का इतिहास बहुत प्राचीन माना जाता है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, महासू देवता असल में चार भाइयों का समूह हैं-
- बासिक महासू
- पबासिक महासू
- बूठिया महासू
- चाल्डा महासू
ये चारों भाई मिलकर 'महासू देव' कहलाते हैं। इनकी उत्पत्ति त्रेतायुग से मानी जाती है। माना जाता है कि राक्षसों से मुक्ति दिलाने और जनकल्याण के लिए इनका अवतार हुआ था। कई इतिहासकारों के अनुसार, महासू देवता की परंपरा 1000 साल से भी पुरानी है और इनके बड़े मंदिर हनोल (उत्तरकाशी) और हिमाचल के कई क्षेत्रों में स्थापित किए गए थे।
महासू देवता से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं
न्याय के देवता
लोक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से महासू देवता के पास अपनी समस्या या विवाद लेकर जाता है, उसे न्याय जरूर मिलता है।
इसलिए इन्हें 'जागते देवता' भी कहा जाता है।
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रक्षक देवता
गांवों की रक्षा, पशुओं की सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से बचाव और बुरी आत्माओं से संरक्षण, महासू देवता इन सभी के प्रतीक माने जाते हैं।
मनोकामना पूरी करने वाले देवता
भक्त मानते हैं कि महासू देवता सच्चे मन से प्रार्थना करने पर हर मनोकामना पूरी करते हैं।
देव परंपरा और देव डोली
इनकी डोली को बहुत पवित्र माना जाता है। जब भी डोली निकलती है, माना जाता है कि स्वयं देवता गांवों का निरीक्षण करने निकलते हैं।
महासू देवता क्यों प्रसिद्ध हैं?
- सटीक और तुरंत न्याय देने की परंपरा,
- संकटमोचक और सुरक्षा के देवता,
- हजारों साल पुरानी अनोखी देव-परंपरा और नृत्य,
- डोली का स्वयं चलना और भविष्यवाणी जैसी लोक-मान्यताएं,
- इनके कोप से डर और कृपा का भरोसा,
- उत्तराखंड–हिमाचल के अनेक गांवों के कुलदेवता,
- इन वजहों से महासू देवता आज भी लोगों की आस्था के केंद्र हैं।
महासू देवता से जुड़ी पौराणिक कथा
स्थानीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार हिमालय क्षेत्र में एक भयानक राक्षस कुंभ का आतंक था। वह लोगों को प्रताड़ित करता था, देवी-देवताओं का अपमान करता था और स्थानीय जनता का जीवन दुखों से भर चुका था।
तब इस क्षेत्र को राक्षस से बचाने के लिए भगवान शंकर और मां पार्वती ने महासू देवता के रूप में चार भाइयों को अवतरित किया। चारों भाइयों ने राक्षसों का संहार किया और लोगों को भयमुक्त किया, जिससे क्षेत्र में शांति स्थापित हुई। कहा जाता है कि युद्ध के समय चाल्डा महासू ने सबसे पहले राक्षस से लड़ाई की, फिर बाकी भाइयों ने भी युद्ध में मदद की। मान्यता के अनुसार, राक्षसों का अंत करने के बाद महासू देवता ने लोगों को धर्म, न्याय और सामाजिक व्यवस्था का मार्ग दिखाया।
हनोल मंदिर (उत्तरकाशी) – महासू देवता की सबसे प्रसिद्ध सीट
- यह मंदिर पांडव काल का माना जाता है।
- काठ-कला और हिमालयी स्थापत्य का बेहतरीन नमूना है।
- कहा जाता है कि मंदिर में देवता स्वयं जागृत अवस्था में रहते हैं।
- मंदिर परिसर में देव दरबार लगता है जहां फैसले सुनाए जाते हैं।
महासू देवता के प्रति स्थानीय लोगों की मान्यता
- देवता के आदेश को कानून मानते हैं
- जो निर्णय देव डोली या देवता की वाणी से मिलता है, लोग उसे अंतिम मानते हैं।
- देवता के प्रति अत्यधिक सम्मान और डर
- कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति झूठ बोलता है या गलत काम करता है, महासू देवता उसे दंड दे देते हैं।
- गांव के रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित
- गांव में बीमारी, आपदा या संकट हो तो स्थानीय लोग उन्हें ही सबसे पहले याद करते हैं।
