धार्मिक परंपराओं में अक्सर हम पुजारी और पंडित शब्दों का एक ही अर्थ में इस्तेमाल कर देते हैं लेकिन क्या वाकई दोनों एक जैसे होते हैं? हिंदू धर्म की विशाल परंपरा में इन दोनों की भूमिकाएं, जिम्मेदारियां और विद्या, एक-दूसरे से काफी अलग है। जहां पंडित को शास्त्रों, वेदों और ज्योतिष का गहन ज्ञान रखने वाला विद्वान माना जाता है, वहीं पुजारी मंदिर में भगवान की नित्य पूजा और आरती का दायित्व संभालता है।

 

समाज में लोगों के बीच बढ़ती धार्मिक रुचि के बीच अब यह सवाल और महत्वपूर्ण हो गया है कि आखिर कौन पंडित कहलाता है और कौन पुजारी? आज हम आपको विस्तार से बताने वाले हैं कि इन दो शब्दों के मायने क्या हैं, इनकी भूमिकाओं में क्या फर्क है और हिंदू परंपरा में दोनों का महत्व क्यों अलग-अलग माना गया है।

 

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पुजारी और पंडित में प्रमुख अंतर 

पंडित 

  • पंडित वह व्यक्ति होता है जिसे वेद, पुराण, शास्त्र, संस्कृत, ज्योतिष, कर्मकांड और धर्मग्रंथों का गहरा ज्ञान हो
  • पंडित को विद्वान या शास्त्रों का ज्ञानी कहा जाता है
  • जरूरी नहीं कि हर पंडित मंदिर में पूजा करे। कई पंडित केवल कर्मकांड, ज्योतिष, संस्कार आदि का काम करते हैं

पुजारी

  • पुजारी वह होता है जो मंदिर में पूजा-अर्चना, आरती, अभिषेक और देवी-देवताओं की दैनिक सेवा करता है
  • पुजारी की मुख्य भूमिका भगवान की 'नित्य सेवा' होती है
  • हर पुजारी का पंडित होना जरूरी नहीं है, यानी उसके लिए शास्त्रों का गहरा ज्ञान होना जरूरी  नहीं माना जाता है

काम और जिम्मेदारियां 

पंडित क्या करते हैं?

  • विवाह, मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश, श्राद्ध, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि करवाते हैं
  • कुंडली बनाना, ज्योतिष परामर्श देना
  • शास्त्रार्थ, प्रवचन, धार्मिक शिक्षा देना
  • देवी-देवताओं के मंत्र, सूक्त और शास्त्रों का विस्तृत ज्ञान देना

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पुजारी क्या करते हैं?

  • मंदिर में सुबह-शाम की पूजा, आरती, भोग, शृंगार और भगवान की सेवा
  • मंदिर का धार्मिक संचालन और व्यवस्थापन
  • भक्तों को प्रसाद देना
  • विशेष त्योहार और व्रत के दिन मंदिर में विशेष पूजा-पाठ कराना

योग्यता 

पंडित बनने के लिए:

  • संस्कृत का अध्ययन (पढ़ाई)
  • वेद, पुराण, ज्योतिष, मंत्र, कर्मकांड की शिक्षा
  • कई पंडित कर्मकांडाचार्य की औपचारिक शिक्षा लेते हैं

पुजारी बनने के लिए:

  • मूल मंत्रों और मंदिर की नित्य पूजा के विधि-विधान का ज्ञान
  • कुछ मंदिरों में पुरोहित या पुजारी का प्रशिक्षण होता है
  • पात्रता और धार्मिक नियमों का पालन जरूरी

काम का स्थान 

पंडित:

  • घरों में धार्मिक काम
  • यज्ञ-हवन स्थल
  • विवाह समारोह
  • धर्मशालाएं
  • आश्रम

पुजारी:

  • केवल मंदिर में ही सेवा करते हैं
  • बड़ी धार्मिक संस्थाओं या मठों में भी काम कर सकते हैं
  • सम्मान और सामाजिक भूमिका

पंडित:

  • समाज में विद्वान या ज्ञान के स्तंभ के रूप में माना जाता है
  • धार्मिक विद्या और शास्त्रार्थ में उनकी प्रमुख भूमिका होती है

पुजारी:

  • भगवान और भक्त के बीच सेतु (पुल) माना जाता है
  • भक्तों की आस्था बनाए रखने में बड़ी जिम्मेदारी होती है