संजय सिंह। इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया कि सिर्फ जाति की राजनीति करके जनता का भरोसा नहीं जीता जा सकता है। जाति एक सच्चाई है, लेकिन उसके साथ-साथ कई दूसरे कारक भी हार जीत में निर्णायक होते हैं। बिहार में अलग-अलग जातियों के प्रत्याशियों और विजेताओं की संख्या के आधार पर इसका सहज आकलन किया जा सकता है।
एनडीए ने चुनाव जीतने के लिए बेहतर सोशल इंजीनियरिंग तैयार की थी। बीजेपी की रणनीति भी कारगर साबित हुई। सरकारी योजनाओं का भी लाभ वोटरों को पहुंचाया गया। जेडीयू के प्रति लव-कुश और धानुक वोटर एकजुट रहे।
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सोशल इंजीनियरिंग का रहा कमाल
वैश्य और अगड़ी जाति के वोटरों ने भी एनडीए के पक्ष में खुलकर लामबंदी की। छोटी-छोटी जातियों का भी समर्थन एनडीए को मिला। इस बार जगह और उम्मीदवार के हिसाब से यादव वोटों का विभाजन भी हुआ। जबकि, अनुसूचित जाति के वोटरों ने एनडीए का साथ दिया। कांग्रेस इस वर्ग को लुभाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वोटरों ने उनकी एक नहीं सुनी।
निषादों ने मुकेश सहनी की नहीं सुनी
वीआईपी के नेता मुकेश सहनी का जादू भी अपनी जाति के वोटरों पर नहीं चल पाया। हालात यह हुए कि उन्हें अपने भाई को चुनाव मैदान से हटाना पड़ा। वह चुनाव से पहले से ही टिकट वितरण को लेकर दबाव बना रहे थे। उन्होंने अपने को निषादों का स्वयंभू नेता घोषित करके ज्यादा से ज्यादा टिकट पाने की कोशिश की थी। जब ज्यादा टिकट नहीं मिला तो राजनीतिक दबाव डालकर अपने को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित करवा लिया। उसके वावजूद वे अपना वोट निषादों को दिलवा पाने में नाकाम रहे। हालात यह हो गए कि आखिरी क्षण में उन्हें अपने भाई को चुनाव मैदान से हटाना पड़ा।
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नहीं सफल हो सका 'माई' समीकरण
आरजेडी ने इस विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा टिकट यादव और मुसलमानों को दिया था, लेकिन उसका राजनीतिक समीकरण सफल नहीं हो पाया। महागठबंधन से ज्यादा यादव उम्मीदवार एनडीए के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे। पूर्व बिहार, कोशी और सीमांचल की 62 सीटों में से 11 पर एनडीए के कुशवाहा, कुर्मी और धानुक प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे।
कुशवाहा वोट बैंक में सेंधमारी के लिए महागठबंधन ने कई कुशवाहा नेताओं को पार्टी में शामिल करवाया। पूर्णिया से जेडीयू के सांसद संतोष कुशवाहा, रेणु कुशवाहा, वैद्यनाथ मेहता, जितेंद्र सिंह जैसे नेताओं को टिकट दिया गया, लेकिन सभी टिकट लेकर जीतने में नाकाम रहे। सुरक्षित कोटे के अधिकांश सीटों पर भी एनडीए उम्मीदवारों को सफलता मिली। जीत ने यह साबित कर दिया कि आज भी अनुसूचित जाति पर एनडीए की ही मजबूत पकड़ बनी हुई है।
| जाति | एनडीए | महागठबंधन |
| यादव | 15 | 12 |
| कुर्मी | 23 | 02 |
| कुशवाहा | 19 | 03 |
| वैश्य | 23 | 01 |
| राजपूत | 31 | 01 |
| भूमिहार | 22 | 02 |
| ब्राह्मण | 14 | 00 |
| कायस्थ | 02 | 00 |
| अतिपिछड़ा | 10 | 01 |
| अनुसूचित जाति | 34 | 04 |
| आदिवासी | 01 | 01 |
| मुसलमान | 01 | 05 |
