ओडिशा में पहली बार सरकार बनाने वाली बीजेपी के एक फैसले ने राज्य की सियायत में गर्मी ला दी है। यह फैसला ओडिशा की राजनीति के सूरमा रहे और विपक्षी पार्टी बीजू जनता दल के संस्थापक बीजू पटनायक से जुड़ा हुआ है। दरअसल, मोहन चरण मांझी सरकार ने एक फैसले में 5 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की जयंती को ‘पंचायती राज दिवस’ के रूप में नहीं मनाने की बात कही। राज्य सरकार ने कहा है कि वह 5 मार्च को सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की जयंती के रूप में मनाएगी।
राज्य सरकार ने आदेश के जरिए पांच मार्च की छुट्टी भी रद्द कर दी है। हालांकि, यह प्रथा सालों से चली आ रही थी। बीजू जनता दल ने आरोप लगाया है कि पंचायती राज दिवस को बीजू बाबू की जयंती पांच मार्च से बदल कर उनका अपमान किया गया है।
1993 से मनाया जाता है पंचायती राज दिवस
ओडिशा के मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा कि पांच मार्च ओडिशा में हर साल पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है, लेकिन इस बार 24 अप्रैल को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन के साथ यह दिन मनाया जाएगा। बीजेडी के मुताबिक, साल 1993 से ही पंचायती राज दिवस बीजू पटनायक की जयंती पर मनाया जाता रहा है। राज्य सरकार ने 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाने का फैसला किया है। फैसला वापस लेने की मांग करते हुए बीजद सदस्यों ने बीजेपी सरकार के खिलाफ राजधानी में भुवनेश्वर में प्रदर्शन किया।
पंचायती राज प्रणाली में 30 प्रतिशत आरक्षण
बीजद नेता और पूर्व मंत्री देबी प्रसाद मिश्रा ने इस घटना क्रम के बाद कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार ने बीजू पटनायक को पंचायती राज व्यवस्था से अलग कर दिया। बीजू पटनायक ने ही देश में पंचायती राज आंदोलन को मजबूत किया था और पंचायती राज प्रणाली में 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी।
इस कदम की पूर्व सीएम और बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक ने कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि बीजेपी बीजू बाबू के प्रति लोगों के प्यार को नहीं छीन सकती।
बीजू बाबू के प्रति प्यार और सम्मान और बढ़ा- नवीन
नवीन पटनायक ने कहा, 'आप पुरस्कारों के नाम बदल सकते हैं, उनकी मूर्तियों को खराब कर सकते हैं, तारीखें बदल सकते हैं, लेकिन आप बीजू बाबू के प्रति ओडिशा के लोगों के प्यार और स्नेह को नहीं छीन सकते। वह लोगों के दिलों में रहते हैं। इन घटनाओं ने लोगों के दिलों में बीजू बाबू के प्रति प्यार और सम्मान को और बढ़ा दिया है।'
पूर्व सीएम नवीन पटनायक ने आगे बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा, 'अब वे बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम बदलने की कोशिश कर रहे हैं। क्या आप इस इतिहास को मिटा सकते हैं कि बीजू बाबू एक स्वतंत्रता सेनानी थे और भारत की आजादी के लिए जेल गए थे? आप कितनी परियोजनाओं से उनकी विरासत को मिटाएंगे?'
कौन थे बीजू पटनायक, कितना बड़ा है उनका कद?
बीजू पटनायक का असली नाम बिजयानंदा पटनायक था। लोग उन्हें प्यार से बीजू पटनायक कहते थे। बीजू पटनायक की पहचान एक स्वतंत्रता सेनानी, साहसी पायलट और बड़े राजनेता के रूप में रही है। उन्हें आधुनिक ओडिशा का शिल्पकार भी माना जाता है। इसके अलावा पटनायक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी याद किया जाता है। बीजू पटनायक की इंडोनेशिया की आज़ादी में अहम भूमिका रही थी।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और बीजू पटनायक की दोस्ती काफी भरोसेमंद मानी जाती थी। बीजू पटनायक का जन्म ओडिशा के गंजम में 5 मार्च 1916 को हुआ था। बीजू ने प्राथमिक शिक्षा मिशन प्राइमरी स्कूल और मिशन क्राइस्ट कॉलेजिएट कटक से पूरी की थी।
दो देशों के स्वतंत्रता संग्राम में लिया हिस्सा
बीजू पटनायक एक ऐसे राजनेता के तौर पर जाने जाते हैं , जिन्हें स्कूल के समय से ही रोमांच करना और कठिन काम करना पसंद था। बाद में वह पायलट बने और दो देशों के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अपनी जान की बाजी तक लगाई थी।
बीजू पटनायक आजाद भारत में राजनीति में सक्रिय हो गए। तेजतर्रार नेता बीजू दो बार मुख्यमंत्री और एक बार केंद्रीय मंत्री बने। 17 अप्रैल 1997 को उनका निधन हो गया, 19 अप्रैल 1997 को उनकी अंतिम यात्रा निकल रही थी तो उन्हें तीन देशों के राष्ट्र ध्वज को उनके पार्थिव शरीर पर लपेटा गया था।
कांग्रेस ने भी मोहन चरण माझी के नेतृत्व वाली सरकार के फैसले को नकारते हुए आरोप लगाया कि यह बीजू पटनायक जैसे कद्दावर नेता को छोटा करने की कोशिश है, जो आधुनिक ओडिशा के निर्माताओं में से एक थे और राजनीतिक में उनका सम्मान था।
बीजद का कहना है कि ओडिशा में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बीजू पटनायक ने किया था। अब इन संस्थाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण भी दिया जाता है। बाद में उनके बेटे नवीन पटनायक ने इन पंचायती राज विभागों में महिलाओं के लिए कोटा बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया। बीजेपी का कहना है कि बीजेपी के इस कदम का बदला लोग अलगे चुनाव में लेगें।
