उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की अदालत ने एक महिला को झूठा रेप केस दाखिल करने पर सजा सुनाई है। 24 साल की इश महिला को कोर्ट ने 42 महीने जेल की सजा सुनाई है। महिला ने जिस व्यक्ति पर रेप का आरोप लगाया था, उसे पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका था। अब उसे बरी कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि महिला ने रेप और मारपीट का जो आरोप लगाया था, उसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।


स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अरविंद मिश्रा ने कहा कि कोर्ट ने महिला को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 217 (दूसरे को नुकसान पहुंचाने के इरादे से झूठी जानकारी देना), 248 (चोट पहुंचाने के इरादे से झूठा आरोप लगाना) और 331 (घर में बिना इजाजत घुसना) के तहत दोषी ठहराया है।

 

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क्या था मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की शुरुआत में महिला ने एक व्यक्ति पर रेप और मारपीट का केस दर्ज कराया था। उसने आरोप लगाया था कि वह उसके साथ रिलेशनशिप थी और शादी का झांसा देकर उसने उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मनाया था।


महिला ने आरोप लगाया था कि 30 मई को जब वह उसके घर गई तो उस व्यक्ति की मां और भाई ने उसके साथ मारपीट की और उसे धमकाया था।


महिला की शिकायत के आधार पर पुलिस ने व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज किया था। पुलिस ने आरोपी व्यक्ति पर रेप और SC/ST ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया था।

 

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ऐसे सामने आया महिला का सच

जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि दोनों कई सालों से आपसी सहमति से रिलेशनशिप में थे। फरवरी में आरोपी युवक की शादी हो गई थी। वह महिला उस पर शादी तोड़ने का दबाव बना रही थी। 


पुलिस को यह भी पता चला था कि शादी के बावजूद वह महिला उसके घर आती-जाती रही। इतना ही नहीं, जब महिला ने उसके और उसके परिवार वालों के खिलाफ रेप और मारपीट का केस दर्ज कराया था तो भी उसने मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया था।

 

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कोर्ट ने महिला को सुनाई सजा

ट्रायल के दौरान सबूतों के आधार पर कोर्ट ने कहा कि महिला ने जो आरोप लगाए हैं, उसे लेकर कोई सबूत नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि महिला ने व्यक्ति और उसके परिवार को फंसाने के लिए कानून का गलत इस्तेमाल किया था और वह उसकी शादीशुदा जिंदगी पर असर डालने के इरादे से उसके घर में बिना इजाजत के आती-जाती थी।


महिला को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर आपसी सहमति से बने रिश्तों के टूटने से होने वाले रेप के मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है। कोर्ट ने कहा, 'अदालत के सामने ऐसे कई मामले आते हैं जहां बालिग होने के बावजूद दो लोग कुछ समय तक आपसी सहमति से सेक्सुअल रिलेशन में रहे और जब रिश्ता टूट जाता है तो रेप के आरोप लगा दिए जाते हैं।'


कोर्ट ने कहा कि हर टूटे हुए रिश्ते को 'क्रिमिनल केस' में बदलने देना न सिर्फ इंसाफ के नजरिए के खिलाफ होगा, बल्कि यौन अपराधों के कानून की असली भावना और मकसद के भी खिलाफ होगा।


अदालत ने अपने फैसले में कहा कि रेप कानूनों का मकसद महिलाओं की रक्षा करना है और उन लोगों को सजा देना है जो जबरदस्ती या धोखे से उनका शोषण करते हैं। कोर्ट ने कहा, 'इसे ऐसे झगड़ों में एक टूल बनने के लिए नहीं बनाया गया है जहां दो वयस्क आपसी सहमति से और अपने पसंद से साथ रहते हैं और इससे जुड़े नतीजों के बारे में पूरी तरह जानते हुए भी बाद में अलग हो जाते हैं।'