20 जून 1991। फोन की घंटी बजती है। सरकारी बंगले का नौकर फोन उठता है। दूसरी ओर से आवाज आती है मनमोहन सिंह से बात कराओ। नौकर कहता है सर यूरोप गए हैं। आज देर रात तक लौट आएंगे। फोन कट जाता है।

अगले दिन, 21 जून की सुबह 5 बजे फिर से फोन की घंटी बजती है। फिर से कहा जाता है, मनमोहन सिंह से बात कराओ। नौकर कहता है साहब अभी अभी लौटे हैं, गहरी नींद में सो रहे हैं। बहुत जोर देने पर नौकरा मनमोहन सिंह को जगता है। मनमोहन सिंह फोन पर आते हैं। फोन पर मौजूद शख्स कहता है मेरा आपसे मिलना बहुत जरूरी है। मैं कुछ ही मिनट में आपके घर आ रहा हूं। मनमोहन सिंह हामी भरते हैं।


चंद मिनटों पर गेट पर गाड़ी की हॉर्न सुनाई देती है। शख्स अंदर आता है। लेकिन मनमोहन सिंह दोबारा सोने जा चुके होते हैं। उन्हें फिर से उठाया जाता है। जब बाहर आते हैं तो पाते हैं पीसी अलेक्ज़ेंडर उनका इंतजार कर रहे होते हैं। अलेक्जेंडर उनसे कहते हैं, आपको देश का अगला वित्त मंत्री बनना है।

किस्सा मनमोहन सिंह के राजनीति में आने का
मनमोहन सिंह के राजनीति में एंट्री की। कैसे वो वित्त मंत्री बने। कैसे उन्होंने देश के आर्थिक दरवाजे खोल कर डुबती अर्थव्यव्स्था को दोबारा मजबूत किया।

ये साल 1991 का शुरुआत दौर था। नरसिम्हा राव की राजनीतिक पारी का अंत हो चुका था। रोजर्स रिमूवल कंपनी का ट्रक उनकी किताबों के 45 कार्टन लेकर दिल्ली से हैदराबाद रवाना हो चुका था। ये अलग बात है कि राव के एक नौकरशाह मित्र, जो शौकिया ज्योतिषि भी थे। उन्होंने राव से कहा था कि इन किताबों को यहीं रहने दीजिए। मेरा मानना है कि आप राजनीति में वापस आ रहे हैं।

लेकिन नरसिम्हा राव रिटायरमेंट के ऐसे मू़ड में थे, कि उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की सदस्यता के लिए आवेदन कर दिया था। ताकी अगर फ्यूचर में वो कुछ दिनों के लिए दिल्ली आएं, तो रूकने की परेशानी न हो। लेकिन किसे पता था, इस बार जब राव की वापसी होगी, तो उन्हें इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के एक कमरे में नहीं, बल्की प्रधानमंत्री आवास के आलिशान इमारत में जगह मिलने वाली है।

राजीव की हत्या और हकसर की सोनिया को सलाह
21 मई 1991 को श्रीपेरंम्बदूर में राजीव गांधी की हत्या हो गई। इंदिरा गांधी के एडवाइजर रहे पीएन हकसर के कहने पर सोनिया गांधी ने पहले शंकर दयाल सक्सेना को कांग्रेस अध्यक्ष बनाना चाहा। लेकिन सक्सेना ने उम्र और खराब सेहत का हवाला देते हुए पद लेने से मना कर दिया। सोनिया एक ने एक बार फिर हकसर की राय ली। हकसर ने इस बार नरसिम्हा राव का नाम सुझाया। इस बार सोनिया के पूछने पर राव ने हामी भर दी।


विनय सीतापति अपनी किताब, 'हाफ लायन: हाऊ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया' में लिखते हैं नरसिम्हा राव जब 1991 में प्रधानमंत्री बने तब वो कई मामलों के एक्सपर्ट हो चुके थे। स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय वो पहले देख चुके थे। वो भारत के विदेश मंत्री भी रह चुके थे। एक ही विभाग में उनका हाथ तंग था। वो था वित्त मंत्रालय। प्रधानमंत्री बनने से 2 दिन पहले, कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने राव को 8 पेज का एक नोट दिया था। जिसे पढ़ कर राव के पैरों तले जमीन खिसक गई। राव के मुंह से सबसे पहले निकला, क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है? नरेश चंद्रा का जवाब था, नहीं सर, इससे भी कहीं ज्यादा खराब है।


भारत के विदेशी मुद्रा की हालत ये थी कि अगस्त 1990 में ये सिर्फ 3 अरब 11 करोड़ डॉलर था। और ये भी जनवरी 1991 में महज़ 89 करोड़ डॉलर ही बचा था। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के पास सिर्फ दो हफ्ते तक आयात के लिए ही पैसे बचे थे। मुख्य कारण था 1990 के खाड़ी युद्ध के चलते तेल की कीमतों में तिगुनी वृद्धी।


विनय सीतापति लिखते हैं कि, घबराए राव ने सीधे अपने पुराने दोस्त और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पी सी अलेक्ज़ेंडर को बुलावा भेजा। राव ने अलेक्ज़ेंडर को बताया कि उन्हें एक ऐसा चेहरा या मुखौटा चाहिए, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और उनके घरेलु आलोचकों को भरोसा दिला सके की भारत अब पुराने ढर्रे से नहीं चलेगा। राव ने अलेक्जेंडर से पूछा, क्या आप वित्त मंत्री के लिए ऐसे शख्स का नाम सुझा सकते हैं जिसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता हो? अलेक्जेंडर ने पहला नाम रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक आईजी पटेल का सुझाया।


मनमोहन सिंह सो रहे थे और जग गई उनकी किस्मत
सीतापति के मुताबिक आईजी पटेल दिल्ली आना नहीं चाहते थे। क्योंकि उनकी मां बीमार थी और वो वडोदरा में रह रहे थे। इस बार अलेक्जेंडर ने राव को मनमोहन सिंह का नाम दिया। राव से सहमति मिलने के बाद अलेक्जेंडर ने शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले, मनमोहन सिंह को फोन किया। मनमोहन सिंह सो रहे थे। क्योंकि वो कुछ घंटों पहले ही विदेश से लौटे थे। जब उन्हें उठा कर इस प्रस्ताव के बारे में बताया गया। तब मनमोहन सिंह ने इस पर विश्वास नहीं किया।


अगले दिन शपथ ग्रहण समारोह से तीन घंटे पहले मनमोहन सिंह के पास UGC के दफ्तर में नरसिम्हा राव का फोन आया। कहा कि मैं आपको अपना वित्त मंत्री बनाना चाहता हूं। शपथ ग्रहण समारोह से पहले राव ने मनमोहन सिंह से कहा, मैं आपको काम करने की पूरी आजादी दूंगा। लेकिन अगर हम सफल होते हैं तो हम दोनों को इसका श्रेय मिलेगा। लेकिन अगर हमारे हाथ असफलता लगती है तो आपको जाना पड़ेगा।

अंदर से खुश, बाहर से परेशान थे मनमोहन सिंह
वित्त मंत्री बनते ही मनमोहन सिंह ने दो बड़े काम किए। पहला काम 1 जुलाई 1990 को हुआ रुपए का डिवैल्यूवेशन। राव ने भारी मन से इस फैसले पर मुहर लगाई थी। 1 जुलाई 1991 को रुपए का पहला अवमूल्यन किया गया। 48 घंटे बाद रुपए का दोबारा अवमूल्यन किया गया। 3 जुलाई की सुबह नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को फोन कर कहा कि रुपए का दोबारा अवमूल्य रोक दें। मनमोहन सिंह ने रिजर्व बैंक के डिप्टी गर्वनर डॉ सी रंगराजन को सुबह साढ़े नौ बजे फोन मिलाया। रंगराजन ने कहा कि आधे घंटे पहले दूसरा अवमूल्यन किया जा चुका है। मनमोहन सिंह अंदर ही अंदर बहुत खुश हुए। लेकिन जब उन्होंने ये बात नरसिम्हा राव को बताई तो दिखावा किया कि उन्हें इससे तकलीफ पहुंची है।


वित्त मंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने दूसरा बड़ा फैसला लिया, देश का सोना गिरवी रखने का। विनय सीतापत ने अपनी किताब 'हाफ लायन, हाऊ नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया' में लिखते हैं, राव सरकार बनने के करीब दो हफ्ते बाद, मुंबई के रिजर्व बैंक की तिजोरी से बंद गाड़ियों का एक काफिला रवाना हुआ। उसके चारों ओर इतनी सिक्योरिटी थी मानों कोई शासनाध्यक्ष इस काफिले में जा रहा हो। इन गाड़ियों में 21 टन सोना लदा हुआ था। ये काफिला 35 किलोमीटर दूर सहर हवाईअड्डे पर जाकर रूका। जहां इसे ले जाने के लिए हेवी लिफ्ट कारगो एयरलाइंस का विमान खड़ा हुआ था। इस सोने को लंदन पहुंचा कर बैंक ऑफ इंग्लैंड की तिरोजी में रख दिया गया। इसके बदले में नरसिम्हा राव सरकार को जो डॉलर मिले। उसकी वजह से भारत को उसके लिए उधार के भुगतार में देरी की अनुमति मिली। और भारत की अर्थव्यस्था बिखरने से बच गई।


विनय सीतापति अपनी किताब में लिखते हैं कि राव का भारतीय राजनीति और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा योगदान मनमोहन सिंह की खोज थी। मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव को हम उदारीकरण के लिए जानते हैं। जिसने दुनिया के लिए भारत के बाजार को खोल दिया था। उसकी कहानी भी आपको बताते हैं।


बजट से पहले का किस्सा दिलचस्प है
24 जुलाई 1991। दिल्ली में भयानक गर्मी थी। दोपहर 12 बजकर 50 मिनट पर मनमोहन सिंह के बजट पेश करने से 4 घंटे पहले, उद्योग राज्य मंत्री पी जे कुरियन खड़े हुए। और एक रूटीन वकतव्य दिया। बोले - सर मैं सदन के पटल पर आद्योगिक नीति पर एक वकतव्य रख रहा हूं।


संजय बारू ने अपनी किताब 1991 'हाऊ पीवी नरसिम्हाराव मेड हिस्ट्री' में लिखते हैं। औद्योगिक निति में जिस तरह के परिवर्तन किए थे। उससे ये तो बनता था कि इस महत्वपूर्ण वकतव्य को कैबिनेट मंत्री सदन में पेश करे। लेकिन उद्योग मंत्रालय का काम देख रहे नरसिम्हा राव ने अपने आप को इससे दूर रखा। कुरियन ने 4 घंटे लंबा भाषण दिया। जिसकी सबसे महत्वपूर्ण बात थी, अब से सभी उद्योगों में लाइसेंसिंग का नियम समाप्त किया जाता है।


जयराम रमेश ने लिखा की 4 घंटे बाद शायद जिंदगी में पहली बार नेहरू जैकेट पहने और आसमानी रंग की पगड़ी बांधे मनमोहन सिंह ने अपनी भाषण की शुरुआत की। और कहा की वो राजीव गांधी के आकर्षक और मुस्कुराते हुए चेहरे को मिस कर रहे हैं।


जयराम रमेश ने लिखा कि, मनमोहन सिंह ने पूरे भाषण के दौरान उस परिवार का बार-बार नाम लिया, जिसकी नीतियों और विचारधारा को वो अपने बजट के माध्यम से सिरे से पलट रहे थे।

मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति में ऊंचे पद तक काफी मेहनत से पहुंचे थे। उन्होंने किसी पैराशूट का सहारा नहीं लिया था। उनके भाषण देने का तरीका दूसरे तेजतर्रार राजनेताओं जैसा नहीं था। देवनागरी न पढ़ पाने के चलते उनके भाषण या तो नास्तालिक़ में लिखे होते या गुरुमुखि में। भाषण देते वक्त वो एक मुझे हुए वक्ता की तरह पॉज़ नहीं ले पाते थे। जिसके चलते शुरुआती दिनों में उन्हें काफी भाषणों की खूब प्रैक्टीस करनी पड़ती। लेकिन उनके कितने ही शब्द आज हवा में गूंज रहे हैं, जब वो इस दुनिया में नहीं। उन्होंने कहा था - हिस्ट्री विल बी काइंडर टू मी देन कंटेपररी मीडिया ऑर फ़ॉर दैव मैटर, दी ऑपोज़ीशन।

माने आज मीडिया और विपक्ष मेरे बारे में जो कहते हों, इतिहास मेरा मूल्यांकन करते हुए ज़्यादा उदार रहेगा। इतनी बड़ी बात कहते हुए भी डॉ सिंह कितने सहज थे। दुनिया आज उन्हें याद कर रही है, उन्हें श्रद्धांजलि दे रही है।