उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और युवा आबादी वाले राज्य में रोज़गार एक आर्थिक मुद्दा भर नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिरता और विकास से जुड़ा प्रश्न है। हर साल लाखों युवा शिक्षा, प्रशिक्षण या परंपरागत कौशल के साथ श्रम बाज़ार में प्रवेश करते हैं, लेकिन सरकारी और निजी क्षेत्र में सीमित नौकरियों के कारण सभी को स्थायी रोज़गार नहीं मिल पाता। इसी पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश सरकार ने युवाओं को नौकरी खोजने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना (CM-Yuva Swayam Rozgar Yojana) की शुरुआत की।

 

इस योजना का मूल विचार यह है कि यदि युवाओं को सस्ता ऋण, सब्सिडी, और संस्थागत सहयोग उपलब्ध कराया जाए, तो वे छोटे‑मोटे उद्यम, सेवा या विनिर्माण इकाइयां स्थापित कर सकते हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोज़गार के नए अवसर भी सृजित होंगे। सरकार इसे 'आत्मनिर्भर युवा, आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश’ के विज़न से जोड़कर देखती है।

 

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हालांकि, किसी भी सरकारी योजना की तरह इस योजना के भी दो पहलू हैं। एक ओर संभावनाएं और अवसर, तो दूसरी ओर ज़मीनी चुनौतियां, बैंकिंग प्रक्रियाएं, और क्रियान्वयन से जुड़ी समस्याएं। इस लेख में खबरगांव मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के सभी पक्षों पर चर्चा करेगा।

क्या है उद्देश्य?

मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य के शिक्षित और अर्ध‑शिक्षित युवाओं को स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित करना है।उत्तर प्रदेश देश की सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। यूपी में देश की कुल जनसंख्या की 17 प्रतिशत आबादी रहती है जिसमें 56 प्रतिशत आबादी वर्किंग एज ग्रुप में है। इस वक्त राज्य की कुल आबादी लगभग 24 करोड़ है यानी कि युवा कामगारों की संख्या 12 करोड़ से ज्यादा है।

 

पारंपरिक रूप से बड़ी संख्या में युवा कृषि, छोटे व्यापार, कुटीर उद्योग और सेवाओं पर निर्भर रहे हैं। अब बदलते आर्थिक परिदृश्य में सरकार चाहती है कि युवा आधुनिक व्यवसायों, स्टार्ट‑अप, सर्विस सेक्टर और लोकल लेवल पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़ें।

 

इस योजना के ज़रिये सरकार तीन बड़े लक्ष्यों को साधना चाहती है। पहला, बेरोज़गारी के दबाव को कम करना। दूसरा, स्थानीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना ताकि गांव और कस्बों से शहरों की ओर पलायन कम हो। तीसरा, बैंकिंग और औपचारिक वित्तीय प्रणाली से युवाओं को जोड़ना, जिससे अनौपचारिक उधार पर निर्भरता घटे।

पात्रता की शर्तें

इस योजना की पात्रता की शर्तों को इस तरह से रखा गया है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल किया जा सके, ताकि अधिक से अधिक युवा इसका लाभ उठा सकें।

  1. आवेदक उत्तर प्रदेश का स्थायी निवासी होना चाहिए।

  2. आयु सीमा सामान्यतः 18 से 40 वर्ष के बीच निर्धारित की गई है।

  3. न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 0वीं पास रखी गई है, हालांकि व्यवसाय के प्रकार के अनुसार यह बदल सकती है। 10वीं की योग्यता रखने का मतलब है कि सरकार चाहती है कि जो कम पढ़े-लिखे लोग हैं वे भी अपना रोजगार स्थापित कर सकें।

  4. आवेदक किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक/वित्तीय संस्था/सरकारी संस्था आदि का डिफ़ॉल्टर नहीं होना चाहिए। उसे किसी भी सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत नहीं होना चाहिए।

  5. परिवार के किसी सदस्य ने पहले से इसी तरह की सरकारी स्वरोज़गार योजना का लाभ न लिया हो।

  6. किसी भी वित्तीय संस्थान से डिफाल्टर न हो।

  7. आवेदक अथवा उसके परिवार के किसी व्यक्ति ने राज्य/केन्द्र सरकार की समान प्रकृति की योजनान्तर्गत सब्सिडी का लाभ नहीं लिया हो।

इन शर्तों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि योजना का लाभ वास्तव में नए और ज़रूरतमंद युवाओं तक पहुंचे।

कितना मिलेगा ऋण

मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसके तहत दी जाने वाली सब्सिडी है। इसके अंतर्गत युवाओं को बैंक के माध्यम से ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इसके तहत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए 25 लाख और सेवा क्षेत्र के लिए अधिकतम 10 लाख तक का ऋण दिया जाता है। 

 

इसमें सामान्य वर्ग के आवेदकों को कम सेकम 10 प्रतिशत और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति/ पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और दिव्यांग जनों को कम से कम 5 प्रतिशत का अंशदान देना होगा होता है, जिसे मार्जिन मनी कहा जाता है। इसके बाद ऋण वितरण के पश्चात सरकार की ओर से ऋणकर्ता को सब्सिडी प्रदान की जाती है, जो सीधे ऋण खाते में समायोजित होती है।

 

यह सब्सिडी योजना को युवाओं को खींचती हैहै, क्योंकि इससे युवाओं पर ऋण का बोझ कम होता है और व्यवसाय शुरू करने का जोखिम घटता है।

कितनी है सब्सिडी

इस योजना के तहत सब्सिडी को लेकर दो स्लैब रखे गए हैं। सामान्य वर्ग को कुल स्वीकृत ऋण का 15 प्रतिशत और आ0जा0/अ0ज0ज0/अपि0वि0/अल्प,महिला, भूतपूर्व सैनिक, दिव्यांग और पूर्वोत्तर पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के आवेदकों को 25 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी।

 

इस तरह से सब्सिडी की अधिकतम राशि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए 6.25 लाख रुपये और सेवा क्षेत्र के लिए 2.5 लाख रुपये हो सकता है।

आवेदन प्रक्रिया

योजना के तहत आवेदन प्रक्रिया को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से उपलब्ध कराया गया है।

  1. आवेदक को पहले योजना के पोर्टल पर पंजीकरण करना होता है।

  2. व्यवसाय प्रस्ताव (प्रोजेक्ट रिपोर्ट) अपलोड करनी होती है।

  3. आवेदन जिला उद्योग केंद्र या संबंधित विभाग द्वारा सत्यापित किया जाता है।

  4. इसके बाद आवेदन बैंक को भेजा जाता है, जहां ऋण स्वीकृति की प्रक्रिया होती है।

सरकार का दावा है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और समयबद्ध है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर इसमें देरी की शिकायतें भी सामने आती हैं और कई बार ऐसा भी कहा जाता है कि पूरी प्रक्रिया में बैंक द्वारा रिश्वत की भी मांग की जाती है।

योजना से मिलने वाले लाभ

इससे स्थानीय स्तर पर छोटे व्यवसायों जैसे दुकानें, सर्विस सेंटर और सूक्ष्म उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। बैंकिंग प्रणाली से युवाओं का जुड़ाव बढ़ता है, जिससे उनकी क्रेडिट हिस्ट्री मजबूत होती है और भविष्य में आगे की वित्तीय सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो सकती हैं। 

 

ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं, क्योंकि नए व्यवसायों से स्थानीय बाजार सक्रिय होता है और आय के नए स्रोत बनते हैं। इसके अतिरिक्त, जब एक युवा अपना व्यवसाय शुरू करता है, तो वह दूसरों को भी रोजगार प्रदान करता है, जैसे कर्मचारी या सप्लायर्स नियुक्त करके, जिससे मल्टीप्लायर इफेक्ट (Multiplier Effect) पैदा होता है और समुदाय में समग्र आय तथा रोजगार बढ़ता है। इस योजना से इंड्र्स्ट्रियल डेवलेपमेंट होता है, बेरोजगारी कम होती है तथा महिलाओं और पिछड़े वर्गों का सशक्तीकरण होता है, जो समाज में आत्मनिर्भरता और इनोवेशन को प्रोत्साहित करता है।

क्या हैं चुनौतियां?

हालांकि योजना का उद्देश्य काफी अच्छा है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियां सामने आती हैं। सबसे बड़ी समस्या बैंकिंग स्तर पर देखी जाती है। कई मामलों में बैंक ऋण स्वीकृति में अनावश्यक देरी करते हैं या अतिरिक्त गारंटी की मांग करते हैं, जबकि इस योजना के तहत नियमतः किसी भी तरह के कोलैटरल यानी गारंटी की मांग नहीं की जा सकती। इसके अलावा, अक्सर बैंकों को अगर ऋण स्वीकृत नहीं करना होता है तो वे डीपीआर में कमियां निकाल देते हैं और उसी के आधार पर ऋण को अस्वीकृत कर देते हैं। एक आम आदमी को इतनी ज्यादा बैंकिंग तकनीकी चीजों का पता नहीं होता और वह प्रक्रिया में उलझ के रह जाता है। या तो आवेदनकर्ता को बैंक की मांगों के सामने झुकना पड़ता है और या तो कुछ न कुछ कमी निकालकर ऋण को अस्वीकृत कर दिया जाता है।

 

दूसरी व्यावहारिक समस्या है कि इंडस्ट्री डिपार्टमेंट से फाइल को किसी बैंक के किसी शाखा को भेजा जाता है, यदि वहां से ऋण किसी कारण से कैंसल कर दिया गया तो उसे फिर से इंडस्ट्री डिपार्टमेंट में जाकर प्रक्रिया को पूरा करके किसी दूसरे बैंक में फाइल को ट्रांसफर कराना पड़ता है, जबकि होना यह चाहिए था कि इंडस्ट्री डिपार्टमेंट की प्रक्रिया एक बार पूरी होने के बाद आवेदक जिस भी बैंक में चाहे वहां पर अपनी फाइल को अपने स्तर से प्रोसेस करा सके।

 

बैंक कई बार फुटकर कामों जैसे की टीन शेड, बाउंड्री बनवाना इत्यादि जैसे फुटकर कामों के लिए भी पहले से कोटेशन मांगते हैं। ऐसे में आवेदनकर्ता को कोटेशन के लिए किसी फर्म से संपर्क करना पड़ता है। जबकि अगर वह इस काम को खुद से करवाता है तो उसका वह बाद में बैंक को दे सकता है लेकिन बैंक अक्सर दबाव डालते हैं कि फुटकर कामों का भी कोटेशन उन्हें पहले से दिया जाए। ऐसे में वास्तविक कस्टमर को बेवजह परेशानी उठानी पड़ती है।

 

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कुछ ऐसे भी लोग हैं जो परियोजना का गलत तरीके से लाभ लेते हुए बैंक अधिकारियों के साथ मिल के बिना परियोजना स्थापित किए हुए भी लोन करा लेते हैं और सब्सिडी का लाभ ले लेते हैं। इस तरह से परियोजना की मूल भावना ही मर जाती है।

 

ऐसा भी देखा गया है कि प्रशिक्षण की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है। केवल ऋण उपलब्ध करा देना पर्याप्त नहीं, बल्कि व्यवसाय को टिकाऊ बनाने के लिए निरंतर सलाह और बाज़ार से जोड़ना भी ज़रूरी है।

 

इसमें सुधार के लिए ज़रूरी है कि बैंकों की जवाबदेही तय की जाए ताकि अनावश्यक देरी न हो साथ ही डिजिटल प्लेफॉर्म के माध्यम से निगराीनी और फीडबैक सिस्टम मजबूत किया जाए।