भारत में बेरोज़गारी केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन का भी कारण रही है। हर वर्ष बड़ी संख्या में युवा शिक्षा पूरी कर नौकरी की तलाश में श्रम बाज़ार में प्रवेश करते हैं, लेकिन सरकारी और निजी क्षेत्र में सीमित अवसर होने के कारण सभी को स्थायी रोजगार नहीं मिल पाता। इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने स्वरोज़गार आधारित योजनाओं को बढ़ावा दिया, ताकि युवा स्वयं उद्यमी बनकर न केवल अपनी आजीविका चला सकें, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकें। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम यानी पीएमईजीपी इसी सोच का व्यावहारिक रूप है। इस योजना का मूल उद्देश्य बेरोज़गार युवाओं और परंपरागत कारीगरों को वित्तीय सहायता देकर सूक्ष्म उद्यम यानी कि माइक्रो इंडस्ट्री स्थापित करने में मदद करना है, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हों।

 

पीएमईजीपी योजना की शुरुआत वर्ष 2008 में की गई थी। इसे केंद्र सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा लागू किया जाता है। यह योजना पहले से चल रही प्रधानमंत्री रोजगार योजना और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम को मिलाकर बनाई गई थी, ताकि स्वरोज़गार से जुड़ी नीतियों को एकीकृत और प्रभावी बनाया जा सके। पीएमईजीपी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सरकार सीधे नकद सहायता नहीं देती, बल्कि बैंक ऋण से जुड़े हुए सब्सिडी मॉडल के माध्यम से लाभार्थी को सहयोग प्रदान करती है। इसे तकनीकी भाषा में क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी स्कीम कहा जाता है।

 

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क्या है उद्देश्य?

इस योजना का प्रमुख उद्देश्य देश में नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना को प्रोत्साहित करना है। सरकार का मानना है कि बड़े उद्योगों की तुलना में छोटे और सूक्ष्म उद्योग कम पूंजी में अधिक रोजगार पैदा करने की क्षमता रखते हैं।

 

पीएमईजीपी के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों और कौशल का उपयोग करते हुए उद्योग लगाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है, ताकि ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर पलायन कम हो। इसके साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और दिव्यांगों को प्राथमिकता देकर सामाजिक समावेशन को भी बढ़ावा दिया जाता है।

कौन से उद्यम बाहर?

पीएमईजीपी के तहत मैन्युफैक्चरिंग और सेवा, दोनों क्षेत्रों में उद्यम स्थापित किए जा सकते हैं। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण, अगरबत्ती, मोमबत्ती, फर्नीचर, रेडीमेड कपड़े, साबुन, डिटर्जेंट, पेपर उत्पाद, प्लास्टिक उत्पाद जैसे उद्योग शामिल हैं। वहीं सेवा क्षेत्र में मोबाइल रिपेयरिंग, कंप्यूटर सेंटर, ब्यूटी पार्लर, ट्रांसपोर्ट सर्विस, ढाबा, कैफे, टेलरिंग यूनिट और अन्य स्थानीय आवश्यकताओं से जुड़े व्यवसायों को अनुमति दी जाती है। हालांकि, सामाजिक और नैतिक कारणों से शराब, तंबाकू, पान-मसाला, जुआ और सट्टा जैसे व्यवसायों को इस योजना से बाहर रखा गया है।

क्या है पात्रता?

पात्रता की बात करें तो पीएमईजीपी के तहत आवेदन करने के लिए आवेदक की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए और अधिकतम आयु की कोई सीमा तय नहीं की गई है, जिससे अधिक आयु के लोग भी इसका लाभ उठा सकें। सामान्य तौर पर किसी विशेष शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति 10 लाख रुपये से अधिक की प्रोजेक्ट मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में या 5 लाख रुपये से अधिक की प्रोजेक्ट सेवा क्षेत्र में लगाना चाहता है, तो उसके लिए कम से कम आठवीं पास होना आवश्यक है।

 

इस योजना के तहत व्यक्तिगत उद्यमी, स्वयं सहायता समूह, सहकारी समितियां और कुछ शर्तों के साथ ट्रस्ट भी आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, वे लोग पात्र नहीं होते जिन्होंने पहले किसी अन्य सरकारी स्वरोज़गार योजना के तहत सब्सिडी का लाभ लिया हो।

 

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कितने लाख तक का मिलेगा लोन

पीएमईजीपी योजना के अंतर्गत यह भी निर्धारित किया गया है कि कुल कितने लाख तक का प्रोजेक्ट लगाया जा सकता है? मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में अधिकतम प्रोजेक्ट लागत 50 लाख रुपये तक रखी गई है, जबकि सेवा क्षेत्र में यह सीमा 20 लाख रुपये है।

 

प्रोजेक्ट लागत में मशीनरी, कच्चा माल, कार्यशील पूंजी यानी कि वर्किंग कैपिटल और अन्य आवश्यक खर्च शामिल किए जाते हैं। इस लागत का एक हिस्सा लाभार्थी को स्वयं लगाना होता है, जिसे लाभार्थी अंशदान कहा जाता है। सामान्य वर्ग के लिए यह अंशदान 10 प्रतिशत और विशेष श्रेणियों के लिए 5 प्रतिशत निर्धारित है।

कितनी मिलेगी सब्सिडी?

इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसकी सब्सिडी संरचना है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को प्रोजेक्ट लागत का 25 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलती है। वहीं अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला और दिव्यांग लाभार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में 35 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान की जाती है।

 

यह सब्सिडी सीधे लाभार्थी के हाथ में नहीं दी जाती, बल्कि बैंक द्वारा स्वीकृत ऋण खाते में समायोजित की जाती है, ताकि इसका उपयोग केवल उद्यम स्थापना के लिए ही हो। यानी कि अगर कोई महिला, अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग यदि 50 लाख को लोन लेता है तो उसे 16-17 लाख तक की सब्सिडी मिल जाएगा।

कैसे करें आवेदन?

आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है, जिससे पारदर्शिता बढ़ाने का प्रयास किया गया है। इच्छुक आवेदक को खादी और ग्रामोद्योग आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होता है। आवेदन के साथ एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट अपलोड करनी होती है, जिसमें व्यवसाय की प्रकृति, लागत, संभावित आय और कौन सा रोजगार करना है उसकी पूरी डीटेल देनी होती है।

 

इसके बाद आवेदन की जांच जिला उद्योग केंद्र या केवीआईसी द्वारा की जाती है। जांच पूरी होने पर आवेदक का इंटरव्यू और फील्ड वेरिफिकेशन किया जाता है। बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत होने से पहले उद्यमिता विकास प्रशिक्षण भी अनिवार्य किया गया है, ताकि लाभार्थी को व्यवसाय संचालन की बुनियादी समझ हो सके।

ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा लोन

आंकड़ों पर नजर डालें तो पीएमईजीपी योजना का दायरा काफी व्यापक रहा है। वर्ष 2008 से अब तक इस योजना के तहत लाखों माइक्रो इंडस्ट्री की स्थापना की जा चुकी है और करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला है। सरकारी अनुमानों के अनुसार, प्रत्येक पीएमईजीपी यूनिट औसतन तीन से चार लोगों को रोजगार देती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना की हिस्सेदारी शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह योजना ग्रामीण रोजगार सृजन का एक अहम माध्यम बन चुकी है।

कुछ चुनौतियां भी हैं

हालांकि, पीएमईजीपी के कई फायदे हैं, लेकिन इसकी कुछ चुनौतियां भी सामने आई हैं। कई बार बैंक स्तर पर ऋण स्वीकृति में देरी होती है, जिससे लाभार्थियों को परेशानी होती है। कुछ मामलों में प्रोजेक्ट रिपोर्ट की गुणवत्ता कमजोर होने के कारण व्यवसाय टिकाऊ साबित नहीं हो पाते। इसके अलावा, बाजार से जुड़ाव और मार्केटिंग सहायता की कमी के कारण कई इकाइयां शुरुआती वर्षों में ही बंद हो जाती हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों को भी अक्सर सैद्धांतिक बताया जाता है, जिनमें व्यावहारिक मार्गदर्शन की कमी रहती है।

 

इसके बावजूद, आत्मनिर्भर भारत अभियान के संदर्भ में पीएमईजीपी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। यह योजना स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देती है, छोटे उद्यमियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है और रोजगार सृजन के जरिए सामाजिक स्थिरता में योगदान देती है। यदि बैंकिंग प्रक्रिया को और सरल बनाया जाए, प्रशिक्षण को अधिक व्यावहारिक किया जाए और बाजार से जोड़ने के लिए मजबूत तंत्र विकसित किया जाए, तो पीएमईजीपी भारत में स्वरोज़गार आधारित विकास का एक मजबूत मॉडल बन सकती है।


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इस तरह से पीएमईजीपी योजना उन लोगों के लिए एक वास्तविक अवसर प्रदान करती है जो सीमित संसाधनों के बावजूद अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं। इस योजना में सब्सिडी होने की वजह से युवाओं और उद्यमिता करने वालों के लिए काफी बड़ा प्रोत्साहन साबित हुआ है। कुछ व्यावहारिक समस्याएं जरूर हैं लेकिन हां अगर उनका समाधान करके इसे जमीनी स्तर पर लागू किया जाए तो यह काफी सुविधाजनक एवं फायेदमंद साबित होगी।