इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़ी जटिलता को कम करने के लिए सरकार इंश्योरेंस देने वाली कंपनियो के लिए यूनिफाइड लाइसेंस की व्यवस्था को लागू करने पर विचार कर रही है। साथ ही सरकार इंश्योरेंस सेक्टर में एफडीआई को 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने पर भी विचार कर सकती है।

क्या है यूनिफाइड लाइसेंस

दरअसल, अभी तक कंपनियों को लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस व जनरल इंश्योरेंस के सेक्टर में काम करने के लिए अलग अलग लाइसेंस की जरूरत होती है। मौजूदा नियम के मुताबिक लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस जैसा नहीं बेच सकती हैं। यूनिफाइड लाइसेंस का नियम आ जाने पर लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों को हेल्थ इंश्योरेंस बेचने के लिए अलग से लाइसेंस नहीं लेना पड़ेगा।

ग्राहकों को क्या होगा फायदा

इंश्योरेंस करने वाली कंपनी के लिए सिंगल लाइसेंस की सुविधा मिलने से इंश्योरेंस सेक्टर में बढ़त देखने को मिलेगी, क्योंकि एक ही लाइसेंस के जरिए कंपनियां लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ व जनरल इंश्योरेंस के सेक्टर में साथ-साथ काम कर पाएंगी। रिसर्च फर्म स्विस रि इन्स्टीट्यूट के मुताबिक इस वक्त देश में इंश्योरेंस की पहुंच साल 2023 की जीडीपी 3।8 फीसदी ही है।

 

इसकी वजह से इंश्योरेंस के सेक्टर में ज्यादा कंपनियां काम कर पाएंगी, जिससे लोगों तक इंश्योरेंस की पहुंच बढ़ेगी। साथ ही इस बात की भी संभावना होगी कि एक ही कंपनी से लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस लेने पर ग्राहक को कम प्रीमियम देना पड़े। इसके अलावा लाइफ, हेल्थ और जनरल बीमा के सेक्टर में ज्यादा कंपनियों के होने से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी, इससे भी ग्राहकों को फायदा होगा।

कंपनियों को क्या फायदा होगा

कंपनियों को पहला लाभ तो यही होगा कि वे लाइफ इंश्योरेंस के साथ-साथ हेल्थ और जनरल इंश्योरेंस भी बेच पाएंगी। दूसरा फायदा यह होगा कि एक ही ग्राहक को सारे इंश्योरेंस बेचने की भी सुविधा हो जाएगी, जिससे उनकी कस्टमर एक्विज़िशन कास्ट घट जाएगी। कस्टमर एक्विज़िशन कास्ट यानी किसी कस्टमर तक कंपनी को पहुंचने में मार्केटिंग, विज्ञापन इत्यादि के जरिए जो लागत लगती है।

एफडीआई को बढ़ाने से होगा क्या फायदा

बीमा सेक्टर में अगर सरकार 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देती है तो इससे ज्यादा पूंजी जुटाई जा सकेगी। साथ ही अभी बीमा सेक्टर में घरेलू कंपनियों का दबदबा है जो कि विदेशी कंपनियों के आने के बाद प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और ग्राहकों को ज्यादा विकल्प मिल सकेंगे।

 

हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। एफडीआई को 100 प्रतिशत कर देने से देश की छोटी इंश्योरेंस कंपनियों के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है। दूसरा मार्केट में बड़ी विदेशी कंपनियों के आने से उनका एकाधिकार हो सकता है और छोटी कंपनियां नुकसान में जा सकती हैं। 

 

तीसरा विदेशी कंपनियां अपने प्रॉफिट को अपने देश में भेजती हैं जिससे वेल्थ ड्रेन होता है यानी कि देश का पैसा देश के बाहर जाता है।

 

अक्टूबर में भी हुए थे नियमों में बदलाव

बता दें कि इसी साल अक्तूबर महीने में बीमा को सरेंडर को लेकर भी सरकार ने कुछ नियम बदले थे। यह नियम लाइफ इंश्योरेंस को लेकर किया गया था। इसके मुताबिक पॉलिसीधारक द्वारा पॉलिसी को सरेंडर करने पर पहले की तुलना में ज्यादा रिफंड मिलेगा। इस नियम के मुताबिक पॉलिसी धारकों को पहले साल से ही गारंटेड सरेंडर मूल्य मिलेगा, भले ही पॉलिसीहोल्डर ने सिर्फ एक ही वार्षिक प्रीमियम का भुगतान क्यों न किया हो.