वादा- दिल्ली जनलोकपाल बिल

आम आदमी पार्टी ने दिसंबर 2015 में दिल्ली विधानसभा में दिल्ली जन लोकपाल बिल 2015 पारित किया था और यह पिछले 4 वर्षों से केंद्र सरकार के पास लंबित है। आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली जन लोकपाल बिल पास करवाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगी। 

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल जब साल 2015 में चुनकर आए थे, तभी उन्होंने जन लोकपाल बिल विधानसभा में पास करा लिया था। लोकपाल विधेयक विधानसभा में पेश होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि यह विधेयक भ्रष्टाचार खत्म कर देगा। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार को इस विधेयक में दखल नहीं देने देंगे। हर हाल में इस विधेयक को पास करेंगे। पहला कार्यकाल बीता, दूसरा कार्यकाल बीता और तीसरा भी। अभी तक जिस लोकपाल विधेयक को लेकर आंदोलन किया गया था, उतनी मजबूती से लोकायुक्त की शक्तियां नहीं बढ़ाई गईं।

अरविंद केजरीवाल सत्ता में आने से पहले ही वादा कर रहे थे कि वह मु्ख्यमंत्री बनेंगे तो अन्ना हजारे का जनलोकपाल बिल पास होगा। उन्होंने कहा था कि 29 दिसंबर 2013 को ही यह बिल लागू हो जाएगा। 11 बार 29 दिसंबर निकला लेकिन यह बिल पास नहीं हो पाया। अरविंद केजरीवाल ने फरवरी 2014 में कांग्रेस के साथ यह कहकर गठबंधन तोड़ दिया कि वह जन लोकपाल बिल पास नहीं करा पा रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के आलोचक कहते हैं कि सरकार इस वादे को लेकर गंभीर ही नहीं थी। यह चुनावी जुमला था। हर चुनाव में इस पर बार-बार सवाल उठते हैं लेकिन आम आदमी पार्टी की ओर से कहा जाता है कि यह बिल केंद्र सरकार के पास है, उपराज्यपाल ने इसे दबा लिया है। अरविंद केजरीवाल पर यह भी आरोप लगते हैं कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार है फिर भी जन लोकपाल बिल क्यों नहीं आ पा रहा है। 

बीजेपी की ओर से बार-बार कहा जाता है कि दिसंबर 2015 में आम आदमी पार्टी ने जन लोकपाल बिल ने पास किया था। इस फाइल को उपराज्यपाल के 25 दिसंबर 2019 को भेजा गया। कानून विभाग को 2 दिनों के भीतर ही उपराज्यपाल ने इसे भेज दिया। गृहमंत्रालय ने साल 2018 में दिल्ली सरकार के कुल 11 विधेयकों को वापस कर दिया था, जनलोकपाल बिल भी उनमें से एक था। गृह मंत्रालय ने कहा था कि जन लोकपाल बिल को इसके मौजूदा रूप में नहीं पेश किया जा सकता है। 

कहां अटका है दिल्ली का जन लोकपाल बिल?

जन लोकपाल बिल पर अब आम आदमी पार्टी के नेता बातचीत से बच रहे हैं। उनका कहना है कि पहले दिल्ली सरकार के पास एंटी करपब्शन ब्यूरो था, जिसे दिल्ली सरकार से छीन लिया गया। जन लोकपाल की मांग देशव्यापी थी। अन्ना आंदोलन ही इसी पर हुआ है। दिल्ली में जन लोकपाल विधेयक को लेकर दिल्ली सरकार ने साल 2015 में कोशिश की थी। 2020 में वादा किया था कि लागू करेंगे। मामला आगे बढ़ा, दिल्ली को लंबे विवाद के बाद लोकायुक्त मिला लेकिन लोकायुक्त की संवैधानिक ताकतें उतनी प्रभावी नहीं हैं, जैसे दावे किए गए थे। केंद्र सरकार, दिल्ली के जन लोकपाल विधेयक को केंद्र शासित प्रदेश के अधिकारों के उल्लंघन के तौर पर देखती है। दो सरकारों के हितों के टकराव में विधेयक का मूल स्वरूप, जो अन्ना आंदोलन के वक्त था, वह खो गया है।

 

मौजूदा समय में दिल्ली के पास अपना लोकायुक्त है। हालांकि, यहां यह जानना जरूरी है कि यह लोकायुक्त अरविंद केजरीवाल की सरकार आने के चलते नहीं बना है। लोकायुक्त की नियुक्ति पहले भी की जाती रही है। साल 2008 और उससे पहले भी दिल्ली में लोकायुक्त हुआ करते थे। अरविंद केजरीवाल और AAP का कहना था कि वे ऐसा लोकपाल/लोकायुक्त लाना चाहते हैं जो सीएम और प्रधानमंत्री जैसे लोगों के खिलाफ भी कार्यवाही कर सके। हालांकि, मौजूदा स्वरूप में न तो लोकायुक्त के पास ऐसी ताकतें हैं और न ही केंद्र स्तर पर लोकपाल ऐसी कोई कार्रवाई कर सकता है।

 

दिल्ली में लोकायुक्त की क्या स्थिति है?
दिल्ली के लोकायुक्त हरीश चंद्र मिश्रा हैं।  उनसे पहले 4 लोकायुक्त रहे हैं। लोकायुक्त की नियुक्ति राज्यों में होती है। उनसे पहले दिल्ली में अब तक 4 लोकायुक्त रहे हैं। आर एन अग्रवाल, मोहम्मद शमीम, मनमोहन सरीन और रेवा खत्रपाल। दिसंबर 2020 में जस्टिस रेवा खेत्रपाल के रिटायर होने के बाद करीब 1 साल तक लोकपाल का पद खाली रहा। इसकी आलोचनाएं भी हुईं थीं। दिल्ली लोकायुक्त की वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली लोकायुक्त और उप लोकायुक्त अधिनियम, 1995 22 सितंबर, 1997 को लागू हुआ था।


 
देश में क्या स्थिति है?

लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011 को संसद ने 17 दिसंबर 2013 को पारित किया था। राष्ट्रपति ने इस विधेयक को 1 जनवरी 2014 को मंजूरी दी थी। इसे लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 का नाम मिला। यह अधिनियम 16 ​​जनवरी , 2014 को लागू हुआ और इसकी अधिसूचना के बाद से 2016 में इसमें एक बार संशोधन किया गया है। लोकपाल अध्यक्ष का नाम अजय मणिकराव खानलिवकर है। लोकपाल का आदर्श वाक्‍य 'मा गृधः कस्यस्विद्धनम' चुना गया। इसका अर्थ है: किसी के धन का लोभ मत करो।  


दिल्ली का जनलोकपाल विधेयक क्या था? 

लोकपाल स्वतंत्र संस्था होगी। यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होगा। किसी भी नेता, सरकारी अधिकारी की निष्पक्ष जांच का अधिकार होगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ केस की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल एक साल में पूरा होगा। भ्रष्ट अधिकारी-जनप्रतिनिधि को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

अपराध साबित होने पर दोषी को ही सरकार का खर्च व्यय करना होगा। मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक सब लोकपाल के दायरे में आएंगे। जन को शिकायत करने और जांच प्रक्रिया का हिस्सा होने का अधिकार होगा। कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार की शिकायत कर सकता है। 

दिल्ली में लोकायुक्त का काम क्या है?
दिल्ली में सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे आरोपों की जांच।
भ्रष्टाचार, पक्षपात और संवैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग की पड़ताल।
निष्पक्षता और ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना।

आलोचनाएं क्यों?
दिल्ली का जनलोक पाल विधेयक पास हुआ तो इसे कमजोर कहा गया। कहा गया कि यह अन्ना आंदोलन के दावे से अलग है। लोकायुक्त और उप लोकायुक्त अधिनियम 1995 में संशोधन जनवरी 2022 से लंबित है। लोकायुक्त के पास कई गंभीर मामले अभी तक लंबित हैं, जिन पर एक्शन नहीं लिया जा सका है। बीजेपी आए दिन आम आदमी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों की शिकायत लोकायुक्त से करती रही है। हाल ही में बीजेपी नेताओं की ओर से शेल्टर होम में 250 करोड़ के भ्रष्टाचार की एक शिकायत लोकायुक्त से की गई थी। आम आदमी पार्टी सरकार की आलोचना इसलिए होती है कि लोकायुक्त को वैसी प्रभावी शक्तियां नहीं दी गईं, जिन शक्तियों की बात अरविंद केजरीवाल सरकार बनाने से पहले कर रहे थे।