दिल्ली विधानसभा के चुनावी इतिहास में एक जमाने में कांग्रेस का दबदबा था। जब पहली बार साल 1956 में वोट पड़े तो दिल्ली के मुख्यमंत्री बने ब्रह्म प्रकाश। उन्होंने इस्तीफा दिया तो गुरुमुख सिंह निहाल 1 नवंबर 1956 तक मुख्यमंत्री रहे। 17 मार्च 1952 से लेकर 1 नवंबर 1956 तक दिल्ली में कांग्रेस की ही सरकार रही। इसके बाद दशकों तक दिल्ली का कोई मुख्यमंत्री नहीं रहा।
38 साल का जब सूखा जब खत्म हुआ, दिल्ली को साल 1993 में दोबारा विधानसभा मिली तो बीजेपी की सरकार आई। साल 1993 से लेकर 1998 तक बीजेपी की सरकार रही। फिर दिल्ली में बीजेपी की ऐसी विदाई हुई कि 3 दशक बाद तक बीजेपी लौटी नहीं। कांग्रेस की शीला दीक्षित, कांग्रेस के लिए 'शिला' बन गई थीं, जिसे भारतीय जनता पार्टी ने हटाने की कोशिश की लेकिन हटा नहीं पाई।
साल 1998 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में हाशिए पर ही चली गई। 3 दिसंबर 1998 से लेकर 28 दिसंबर 2013 तक शीला दीक्षित, लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं। साल 1998, 2003 और 2008 के चुनावों में शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित गढ़ बन गई।
कब लगा कांग्रेस को पहला झटका?
साल 2013 के बाद कांग्रेस का वोट शेयर ऐसे घटा कि पार्टी दिल्ली में हाशिए पर चली गई। आलम यह है कि कभी 42.9 प्रतिशत वोट प्रतिशत वाली कांग्रेस के पास 4 प्रतिशत वोटर शेयर भी दिल्ली विधानसभा चुनावों में नहीं बचे। पहले समझते हैं कि कांग्रेस का साल-दर साल वोटर शेयर कितना कम हुआ।
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कैसे चुनाव दर-चुनाव घटता गया कांग्रेस का वोट शेयर?
साल 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। तब कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर 42.8 प्रतिशत था। बीजेपी 34.5 प्रतिशत पर थी। दूसरी पार्टियां भी अस्तित्व में थीं, उन्हें कुल 20 फीसदी वोट मिले। साल 1998 में कांग्रेस ने कमाल ही किया था लेकिन बीजेपी मजबूत हुई थी। कांग्रेस का वोट शेयर 34.0 प्रतिशत था। बीजेपी का वोट शेयर 47 प्रतिशत तक पहुंच गया। दूसरी पार्टियों का वोट शेयर 15.1 प्रतिशत रहा।
साल 2003 में कांग्रेस का वोट शेयर 35.2 प्रतिशत तक पहुंचा। अन्य पार्टियों का शेयर 16.7 प्रतिशत रहा। बीजेपी का वोटर शेयर 48 प्रतिशत रहा। सत्ता में शीला दीक्षित ही रहीं। साल 2008 में कांग्रेस का वोट शेयर 36.3 प्रतिशत रहा। अन्य का 16.7 और बीजेपी का 40 प्रतिशत। 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। देश में अन्ना आंदोलन की लहर चली। 'मैं भी अन्ना-तू भी अन्ना' का भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा क्रेज चला कि देश की सियासत ही बदल गई।

एकदम नई-नवेली आम आदमी पार्टी को को 29.5 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 24.6 पर आ गया। बीजेपी 33 फीसदी वोट शेयर पर आ गई। अन्य 12.9 प्रतिशत पर सिमटे।
अरविंद केजरीवाल और AAP के एक दांव ने दिल्ली में सभी सियासी पार्टियों की जमीन दरका दी। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद सरकार बनाई। जिस कांग्रेस पार्टी के खिलाफ उन्होंने अपनी राजनीति शुरू की थी, उसी से जा मिले। कुछ दिन सरकार चली, असहमति हुई और सरकार गिर गई।
दिल्ली में करीब 1 साल तक विधानसभा भंग रही। बीजेपी आम आदमी पार्टी के साथ जाने के लिए तैयार नहीं थी। कांग्रेस और AAP का मेल हो नहीं सकता था, बीजेपी के पक्ष में भी यही बातें थीं। साल 2015 में फिर विधानसभा चुनाव हुए। अरविंद केजरीवाल की AAP प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। AAP का वोट शेयर 54.3 फीसदी हुआ, वहीं कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 9.7 फीसदी पर आ पहुंचा। बीजेपी 32.3 प्रतिशत वोट शेयर पर आ गई। दूसरी पार्टियों का वोट शेयर 1.3 पर आ गया।

साल 2020 में कांग्रेस की हालत और खराब हुई। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी। जीरो सीटों के साथ कांग्रेस का वोट शेयर लुढकर 4.3 प्रतिशत तक पहुंच गया। बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा और 38.5 वोट शेयर के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। 27 साल की राजनीति में 38.8 प्रतिशत वोट शेयर से घटकर कांग्रेस का वोट शेयर 4.95 पर पहुंच गया।
किसने 'छीना' कांग्रेस का वोट शेयर?
आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के वोट बैंक का विकल्प बन गई। अरविंद केजरीवाल तिरंगा झंडे और अन्ना आंदोलन के साथ राजनीति में उतरे थे लेकिन उनकी राजनीति हिंदुत्व की नहीं थी। वह भ्रष्टाचार खत्म करने और जन लोकपाल के इरादे से दिल्ली में आए थे। उनकी शुरुआती सियासत स्पष्ट और पारदर्शी राजनीति पर टिकी थी।
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सियायत के जानकार बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक तो स्थिर रहा लेकिन कांग्रेस ने अपना सब गंवा दिया। 38.5 फीसदी वोट जो कांग्रेस को मिलता था, वह पूरी तरह से अरविंद केजरीवाल की ओर शिफ्ट हो गया। कांग्रेस के कोर वोट कहे जाने वाले अल्पसंख्यक वोट, अब AAP को मिलने लगे। दलित और झुग्गी-बस्तियों में रहने वाली एक बड़ी आबादी अरविंद केजरीवाल के साथ हो गई।

जिस जमीन के सहारे कांग्रेस सत्ता में आई थी, जिस शीला दीक्षित के मॉडल की कांग्रेस अब तारीफ कर रही है, उनकी छवि को AAP ने डेंट किया। कॉमनवेल्थ गेम्स में घोटाले के आरोप लगे, दिल्ली के ब्रिज कंस्ट्रक्शन को लेकर संगीन आरोप लगे। एक बेहद ईमानदार नेता से शीला दीक्षित को भ्रष्ट नेता तक अरविंद केजरीवाल बता गए।
कांग्रेस का वोट शेयर घटा तो फायदा AAP को हुआ। आज भी जिन सीटों पर कांग्रेस मजबूत है, वहां BJP, AAP की तुलना में ज्यादा मजबूत नजर आती है। AAP, बीजेपी के कोर वोटरों को तो नहीं प्रभावित कर पाए लेकिन कांग्रेस को करीब 38 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक पहुंचा दिया।