देश की राजधानी दिल्ली। वैसे तो यह केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन यहां के चुनावों की चर्चा, देश के किसी दूसरे सूबे से कहीं ज्यादा है। दिलचस्प बात यह है कि अरविंद केजरीवाल से पहले शीला दीक्षित ही अपना कार्यकाल पूरा कर सकी थीं। पहले टर्म में अरविंद केजरीवाल तो 5 साल सीएम बने रहे लेकिन दूसरा कार्यकाल उनका भी अपूर्ण रह गया।
दिल्ली की सियासत में कुछ तो ऐसा है जो यहां बार-बार सीएम बदलते हैं। प्रचंड बहुमत से अरविंद केजरीवाल सत्ता में आए तो लेकिन उन्हें खुद ही रिजाइन कर देना पड़ा। अब दिल्ली एक बार फिर विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। जाहिर है कि दिल्ली को कोई नया सीएम मिलने वाला है।
क्या आपको पता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्रियों कार्यकाल कितने दिनों का रहा, कौन-कौन अब तक मुख्यमंत्री रह चुका है, किसकी कितनी धाक रही है। अगर नहीं तो आइए जानते हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल की कहानी क्या है।
चौधरी ब्रह्म प्रकाश
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश थे। नांगलोई जाट विधानसभा से आने वाले ब्रह्म प्रकाश कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। वह महात्मा गांधी के साथ 1940 में असहयोग आंदोलन में भी रहे। उनका परिवार हरियाणा से दिल्ली में आया था। वह पहली बार साल 1952 में मुख्यमंत्री बनाए गए। 17 मार्च 1952 से लेकर 12 फरवरी 1955 तक वह मुख्यमंत्री रहे। उनका कार्यकाल कुल 2 साल 322 दिनों का रहा। जब वह सीएम थे, तब दिल्ली का मुखिया चीफ कमिश्नर को माना जाता था। वह सीएम और उनके मंत्रिमंडल की सलाह पर अपनी मुहर लगाते थे। तत्कालीन चीफ कमिश्नर आनंद डी पंडित और ब्रह्म कुमार की बनी नहीं। आपसी अनबन की वजह से ब्रह्म प्रकाश ने 12 फरवरी 1955 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
गुरुमुख निहाल सिंह
गुरुमुख निहाल सिंह भी कांग्रेस के दिग्गज नेता नेता रहे। पहले चुनाव में उनकी विधानसभा दरियागंज रही। 12 फरवरी 1955 से लेकर 1 नवंबर 1956 तक वह मुख्यमंत्री रहे। वह 1 साल 263 दिनों तक सीएम रहे। उन्होंने अपना सफर पूरा किया लेकिन वह 1 दिसंबर 1993 तक दिल्ली के आखिरी सीएम बने रहे। वजह यह थी कि स्टेट रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 में पास हुआ था। दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जिसमें न तो कोई सीएम रहा, न ही कोई विधानसभा रही। साल 1993 में एक बार से दिल्ली में चुनाव हुए।
मदन लाल खुराना
मदन लाल खुराना बीजेपी के दिग्गज नेताओं में से एक रहे। उनकी विधानसभा मोदीनगर रही। 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक वह सीएम रहे लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनका कार्यकाल 2 साल 86 दिनों तक रहा। उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा था। सुब्रमण्यम स्वामी की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगे कि वह हवाला कारोबारी से जुड़े हैं। लाल कृष्ण आडवाणी की सलाह पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
साहिब सिंह वर्मा
साहिब सिंह वर्मा भी बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार रहे हैं। उनकी विधानसभा शालीमार बाग रही। मदन लाल खुराना के साथ उनकी कभी जमी नहीं। जब उन्होंने इस्तीफा दिया तो सबसे बड़ा नाम उभरा साहिब सिंह वर्मा का। उन्होंने 26 फरवरी 1996 को सीएम पद की शपथ ली। 12 अक्टूबर 1998 तक उनका कार्यकाल चला। 2 साल 228 दिनों की सरकार बनाने के बाद उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।
साहिब सिंह वर्मा के इस्तीफे की कई वजहें थीं। मदन लाल खुराना लगातार उनके खिलाफ ही थे। वह दोहरी चुनौतियों से जूझ रहे थे। कांग्रेस प्याज की महंगाई को लेकर बीजेपी को घेर रही थी। दिल्ली में प्याज के दाम अचानक बढ़ गए थे। कांग्रेस का दबाव बढ़ता तो बीजेपी ने उन्हें हटाने का फैसला कर लिया। पहले भी वे अंदरुनी कलह से जूझ रहे थे। उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
सुषमा स्वराज
मदन लाल खुराना और साहिब सिंह वर्मा के झगड़ों से अगर किसी को लाभ मिला तो वह थीं सुषमा स्वराज। वह भारतीय जनता पार्टी में उभरती नेता थीं। बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। 12 अक्टूबर 1998 को उन्होंने सीएम पद की शपथ ले ली। 3 दिसंबर 1998 तक उनका कार्यकाल पूरा हुआ। उनका कार्यकाल 52 दिनों का था और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो गया था। सुषमा स्वराज के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि जनता का मिजाज बदल चुका था और दिल्ली में शीला दीक्षित युग का समय आ गया था।
शीला दीक्षित
दिल्ली में मुख्यमंत्री कई रहे लेकिन युग केवल शीला दीक्षित का चला। 3 दिसंबर 1998 को वह पहली बार सीएम बनीं और लगातार 3 बार सीएम चुनी गईं। 15 साल के कार्यकाल में उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए। कहते हैं कि दिल्ली में फ्लाइओवर पर फ्लाइओवर बनाने की उपलब्धियां उन्हीं के खाते में आईं, कुछ आरोप भी उन पर लगे।
3 दिसंबर 1998 को पहली बार वह सीएम बनीं। 2 दिसंबर 2003 तक उनका पहला कार्यकाल चला। 2 दिसंबर 2003 से 30 नवंबर 2008 तक उनका दूसरा कार्यकाल रहा। 30 नवंबर 2008 से 28 दिसंबर 2013 तक उनका तीसरा कार्यकाल चला। दिल्ली में उन्होंने कांग्रेस को अजेय बना दिया था लेकिन अरविंद केजरीवाल के उदय के बाद दिल्ली की सियासत इतनी बदली कि उन्होंने इसकी कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल राजनीति के सबसे नए प्रयोग थे। अन्ना आंदोलन से देशभर में छाए अरविंद केजरीवाल पहले चुनाव में ही छा गए। उनकी जीत अप्रत्याशित थी। पहले ही चुनाव में उन्हें 28 सीटें हासिल हुईं। कांग्रेस के साथ वह सरकार नहीं चला पाए। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की वजह से जन लोकपाल बिल लागू नहीं कर पा रहे हैं। बीजेपी ने जमकर आरोप लगाए। 49 दिनों तक सरकार चलाने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने से पहले उन्होंने जनता से पूछा भी कि वह इस्तीफा दे दें। उन्होंने जन लोकपाल बिल लागू करने को प्राथमिकता बताकर इस्तीफा दे दिया। 15 फरवरी 2014 को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था।

अरविंद केजरीवाल 2.0
अरविंद केजरीवाल साल 2015 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए। 14 फरवरी से 2015 से 16 फरवरी 2020 तक वह मुख्यमंत्री बने रहे। उन्होंने इस दौरान कई क्रांतिकारी फैसले लिए। कई वादे किए। दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक से लेकर सीसीटीवी कैमरे तक के प्रयोग किए। 5 साल 3 दिन तक वह सत्ता में रहे। उनके पहले कार्यकाल में विवाद नहीं हुए। बीजेपी सदमे में थी। सिर्फ 3 सीटें हासिल हुई थीं। अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 67 सीटें हासिल की थीं।
अरविंद केजरीवाल 3.0
अरविंद केजरीवाल के इस कार्यकाल में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। उनकी कैबिनेट के कई मंत्री जेल पहुंचे। सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के साथ-साथ खुद अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली आबकारी नीति केस में जेल पहुंचे। 16 फरवरी 2020 को उन्होंने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली थी। 16 फरवरी 2020 से लेकर 21 सितंबर 2024 तक उनका कार्यकाल चला। कुल 4 साल 7 महीने 6 दिन उनकी सरकार चली। वे जेल में थे, जेल से बाहर आए और इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि अब जब दिल्ली की जनता दोबारा चुनकर भेजेगी, तब मुख्यमंत्री आवास जाएंगे।

आतिशी
आतिशी कालकाजी विधानसभा सीट से वह आते हैं। 21 सितंबर 2024 को वह अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद सीएम बनीं। वह सत्ता में हैं। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद से आम आदमी पार्टी में सीएम फेस को लेकर मंथन चला था। आतिशी पर अरविंद केजरीवाल ने भरोसा जताया।