दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होने वाले हैं। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने आबकारी नीति मामले में कैग रिपोर्ट को चर्चा के लिए विधानसभा में पेश न किए जाने को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है।


जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा कि कैग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर न रखना पड़े इसलिए सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने से'अपने पैर पीछे खींच' लिए हैं।

'ईमानदारी पर संदेह होता है'

हाई कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से सरकार ने कैग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने से पैर पीछे खींचा है वह इसकी ईमानदारी पर सवाल उठाता है।

 

कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट को तुरंत स्पीकर को भेजा जाना चाहिए था और इस पर तुरंत चर्चा शुरू की जानी चाहिए थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार ने जिस तरह से कैग रिपोर्ट को उपराज्यपाल वीके सक्सेना को भेजने में देरी की और जिस तरह से पूरे मामले को डील करने की कोशिश की गई वह सरकार की 'विश्वसनीयता पर संदेह' पैदा करता है।

आप ने क्या कहा

इसके जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव इतने करीब हैं ऐसे में विधानसभा का सत्र कैसे बुलाया जा सकता है।  सरकार ने कहा कि दिल्ली असेंबली सेक्रेटेरिएट ने हाई कोर्ट सूचित किया था कि फरवरी में मौजूदा सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है ऐसे में कैग रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

 

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बीजेपी ने दायर की थी याचिका

बीजेपी के सात विधायकों ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर करके कहा था कि आम आदमी पार्टी की सरकार कैग की रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर नहीं रख रही है।

 

जवाब में दिल्ली विधानसभा सचिवालय ने कहा था कि सदन का संरक्षक होने के नाते विधानसभा की बैठक बुलाने का अधिकार स्पीकर का विवेकाधिकार है जो कि न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। सचिवालय ने कहा कि अब लोक लोखा समिति (पीएसी) इसकी जांच करेगी जिसका गठन आगामी चुनाव के बाद अगली सरकार करेगी।

 

हालांकि, दिल्ली के एलजी ने कहा था कि हाई कोर्ट यह अधिकार है कि वह दिल्ली विधानसभा के स्पीकर को कैग की रिपोर्ट तुरंत सदन के पटल पर रखने के लिए निर्देश दे सकती है।

क्या था मामला?

दरअसल, कैग की लीक रिपोर्ट के हवाले से पिछले हफ्ते मीडिया में छपी थी जिसमें कहा गया था कि दिल्ली आबकारी नीति में 2 हजार करोड़ से ज्यादा का घोटाला किया गया है।

 

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जिन वार्ड में शराब की दुकान खोलने की अनुमति नहीं थी, वहां भी शराब की दुकान के लाइसेंस बांटे गए। यह फैसला भी बिना उपराज्यपाल की मंजूरी के ले लिया गया था।