बिहार देश के सबसे मजबूत श्रम शक्ति वाले राज्यों में से एक है। बिहार के लोग देश की सियासत तय करते हैं। हिंदी भाषी में राज्यों में बिहार, सबसे अहम राज्यों में से एक है। बिहार के बारे में भी यूपी वाली कहावत इन दिनों सच हो रही है कि दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठेगा, इसका रास्ता बिहार से होकर गुजरेगा। वजह यह है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है। बीजेपी इस बार पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। सरकार बनाने में जेडीयू के 12 सांसदों का भी हाथ है। अगर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली यह पार्टी जाए तो बीजेपी बहुमत से दूर हो सकती है। देश की सियासत में बिहार का इतना दबदबा है तो खेती में क्यों नहीं?

सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे (SAS) और नेशनल स्टैटिकल ऑफिस (NSO) के आंकड़े बताते हैं भारतीय किसानों की कुल कमाई में बिहार निचले पांवदान पर खड़ा है, जबकि मेघालय के बाद सबसे ज्यादा कमाई पंजाब के किसान करते हैं। ऐसा नहीं है कि पंजाब की जमीन बेहद उपजाऊ है, बिहार में भी जमीनें बेहद उपजाऊ हैं, पंजाब का क्षेत्रफल सिर्फ 50,362 वर्ग किलोमीटर है, वहीं बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है। 

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कमाई से समझिए पंजाब-बिहार का अंतर

पंजाब में साल 2018 से 2019 के बीच किसानों की प्रति माह औसत आयु 26,701 रही, वहीं बिहार के किसान सिर्फ 7,542 रुपये प्रतिमाह कमा पाए। ऐसा तब  हो रहा है जब पंजाब में बड़ी संख्या में बिहार के कृषि मजदूर काम करते हैं। बिहार की हालत सिर्फ 3 राज्यों से बेहतर है, जहां किसानों की प्रति व्यक्ति आय कम है। पश्चिम बंगाल में किसान 6762 हजार प्रति माह कमाते हैं, ओडिशा में 5112 रुपये प्रति माह और झारखंड में किसानों की औसत आयु 4895 रुपये प्रति माह है। मेघालय में किसानों की कमाई सबसे ज्यादा है, यहां किसानों की प्रति माह आय करीब 29,348 रुपये है।

पंजाब आगे तो बिहार पीछे क्यों? 

यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्स्लेवेनिया  इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ने साल 2020 में एक अध्ययन प्रकाशित किया था। दावा किया गया कि पंजाब के किसानों को, बिहार के किसानों की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा पैसे मिलते हैं। पंजाब में लाइसेंसी आढ़तिया हैं, जो किसानों के उत्पादों को मंडियों तक पहुंचाते हैं। पंजाब के पास मंडियां हैं। पंजाब के कमीशन एजेंट, प्राइवेट कंपनियों या खरीदारों की मध्यस्थता में बेहतर सौदा कराते हैं। बिहार ने APMC अधिनियम को साल 2006 में ही खत्म कर दिया था। बिहार में निजी क्रेता,सीधे किसानों से फसलें खरीदते हैं। बिहार में पंजाब की तरह मंडियां नहीं हैं।

 

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पंजाब और बिहार में ऐसा क्यों अंतर है?

पंजाब में अपनी 90 फीसदी फसलें एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (APMC) एक्ट के तहत बेचते हैं। खेत से मंडी तक फसलों के पहुंचने का उनके पास मजबूत तंत्र है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से पंजाब की दूरी सिर्फ  388.5 किलोमीटर है, वहीं दिल्ली से बिहार की दूरी 1,123.7 किलोमीटर है। दिल्ली, कृषि का राष्ट्रीय बाजार है। अगर बिहार की पहुंच दिल्ली तक होती तो किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती। अभी बिहार के उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बिकता है। अंतरराष्ट्रीय सीमा नेपाल पास में है लेकिन बाजारों तक पहुंच सीमित है। 

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  • बिहार में APMC बाजारों की स्थिति: बिहार में APMC बाजार अब तक अनियमित हैं। सरकार इसे लेकर उदासीन है। निजी निवेश अपेक्षित स्तर पर कृषि ढांचे को बेहतर करने में सक्षम नहीं हो पाए। किसान की बाजार में सीमित पहुंच है। दाम व्यापारी तय करते हैं, किसान संगठन भी कमजोर स्थिति में है। इसके उलट, पंजाब के बाजारों में बेहतर सुविधाएं हैं। आढ़तिये हैं किसानों को सही दाम दिलाने में मदद करते हैं। पंजाब में सरकारी एजेंट खरीद कराते हैं, बिहार में बिचौलिए हैं जो किसान के उत्पादों का सही दाम ही नहीं लगने देते। 

  • सरकारी खरीद में अंतर: बिहार में सीमित स्तर पर किसान सरकारी एजेंसियों को अपनी फसल बेच पाते हैं। आम तौर पर सीधे साहूकार किसानों से खरीद लेते हैं जो मनमाने तरीके से दाम तय करते हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य की कवायद, कागजों तक ही रहती है। पंजाब में छोटे और सीमांत किसान भी सरकारी खरीद का लाभ लेते हैं। बिहार में करीब 80% किसान छोटे और सीमांत हैं। सरकार भी मानती है कि 5 फीसदी किसान ही अपने फसलों को सरकार को बेचते हैं। जिस मखाने को लोग 1000 से 1200 रुपये प्रति किलो खरीद रहे हैं, बिहार में किसान बिचौलियों को 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से बेचता है। 

  • खरीद केंद्रों की कमी: बिहार में अपर्याप्त खरीद केंद्र है। देरी से शुरू होने वाली खरीद और भुगतान में देरी की वजह से किसान निजी व्यापारियों को उपज बेचने को मजबूर होते हैं। पंजाब में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आंदोलन तक हो जाता है। 

  • फसल बीमा की कम पहुंच: बिहार में किसान फसल बीमा को लेकर कम जागरूक हैं। किसानों को मौसम या बाढ़ की वजह से हुए नुकसान की भरपाई खुद करनी पड़ती है। फसल बीमा को लेकर जागरूकता कम है। पंजाब में यह स्थिति, बिहार से बेहतर है। 

  • ऑनलाइन बाजार तक सीमित पहुंच: पंजाब में ऑनलाइन भुगतान प्रणाली है। बाजार पारदर्शी हैं। किसान भी अपनी फसलों को अब व्यापारिक बना रहे हैं, सीधे बाजार में बेच रहे हैं। ऑर्गेनिक खेती पर भी किसानों का जोर दे रहा है। बिहार में अनियमित व्यापारियों की वजह से अपारदर्शिता है और बाजार तक किसानों की सीमित पहुंच है।