दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री गुरुमुख निहाल सिंह 37 साल तक दिल्ली के आखिरी मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपनी आंखों के सामने दिल्ली की विधानसभा बनते देखा, उसका दर्जा भी छिनते देखा। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि दिल्ली से विधानसभा छीन ली जाएगी।

16 अप्रैल 1962 को दिल्ली को सीएम पद से गुरुमुख निहाल सिंह की विदाई हुई फिर 37 साल तक के लिए दिल्ली सीएम पद के लिए तरस गई। गुरुमुख निहाल सिंह 13 फरवरी 1955 से 31 अप्रैल 1956 तक वे सीएम रहे। पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के चीफ कमिश्नर आनंद डी पंडित और केंद्रीय गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से अनबन के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। 

नेहरू भी फैसले पर चौंक गए थे
चौधरी ब्रह्म प्रकाश की तरह गुरुमुख निहाल सिंह की केंद्रीय नेतृत्व से उतनी अनबन नहीं रही। उन्होंने अपने 1 साल 263 दिनों की सरकार में एक ऐसा फैसला लिया था, जिसके होने से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक सकते में आ गए थे। उन्होंने दिल्ली पहली बार शराबबंदी लागू की थी। जवाहर लाल नेहरू, शराबंदी के पक्ष में नहीं थे। 

नेहरू ने शराबबंदी पर क्या लिखा?

जब गुरुमुख निहाल सिंह ने दिल्ली में शराबबंदी लागू की तो जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें 26 जुलाई 1956 को एक चिट्ठी लिखी। इंक  उन्होंने चिट्ठी में कहा, 'हम शराबबंदी के पक्ष में हैं लेकिन किसी चीज पर प्रतिबंध के साथ हमेशा खतरा बना रहता है, इससे अवैध शराब का निर्माण और तस्करी बढ़ सकती है। शराबबंदी का इलाज, बीमारी से ज्यादा खतरनाक है। स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने कहा है कि कुछ जगहों पर अवैध शराब का धंधा शुरू हो गया है। उम्मीद है कि आपकी सरकार इस पर गौर करेगी।' 


गुरुमुख निहाल सिंह का किसे मिला था साथ?
जवाहर लाल नेहरू के आग्रह के बाद भी गुरुमुख निहाल सिंह ने दिल्ली से शराब पर बैन नहीं हटाया था। कांग्रेस के भीतर भी उनके खिलाफ आवाजें उठीं लेकिन काम नहीं बन सका। गुरुमुख निहाल सिंह के समर्थन में मोरारजी देसाई मजबूती से खड़े हो गए। दिल्ली में शराबबंदी लागू हो गई। सुरेंद्र निहाल सिंह ने अपनी किताब 'इंक इन माय वेनिस' में इसका जिक्र किया है। 

बेटे के लिए शराबबंदी लागू कर दी!

एक कहानी यह भी खूब चर्चा में रहती है। कहते हैं कि गुरुमुख निहाल सिंह के एक बेटे को शराब की लत लग गई थी। इसे देखकर ही उन्होंने शराब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। ऐसी कई खबरें चलीं लेकिन इसकी पुष्टि खबरगांव नहीं करता है। 

कहां चूक गए गुरुमुख निहाल सिंह
चौधरी ब्रह्म प्रकाश के कार्यकाल के दौरान ही यह साफ हो गया था कि दिल्ली का स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार नहीं रहने वाला है। उनकी विदाई तय ही है। नतीजा यह निकला कि 1 नवंबर 1956 को दिल्ली का केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। दरअसल 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ।

दिल्ली में विधानसभा भंग कर दी गई और मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया। जब मुख्यमंत्री का पद ही नहीं रहा तो उनका फैसला कैसे लागू होता। दिल्ली में शराब से प्रतिबंध हटना तय ही था।