महाराष्ट्र की राजनीति का जिक्र छिड़े और अजित पवार का नाम आए ऐसा हो नहीं सकता। ठाकरे परिवार की तरह ही उनके परिवार की भी एक राजनीतिक विरासत रही है। उनके चाचा शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने साल 1999 में कांग्रेस से अलग होकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाई थी। जब चाचा से राजनीतिक विरासत नहीं मिली तो तैश में आकर अजित पवार ने अपनी अलग पार्टी बना ली और अपनी पुरानी पार्टी से विधायक भी लेकर चले गए। उनकी पार्टी का नाम भी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (अजित गुट) ही है।
अजित पवार, कई बार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। तब चाचा शरद पवार उनका नाम आगे करते थे, तीसरी और चौथी बार उन्होंने खुद ही तय कर लिया था कि उन्हें सत्ता के शीर्ष पर जाना है। 22 जुलाई 1959 को जन्मे अजित पवार, राजनीतिक तौर पर बेहद सधे हुए राजनेता माने जाते हैं। वे साल 2022 से लेकर 2023 तक, महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, फिर उसी विपक्ष से गठबंधन करके डिप्टी सीएम भी बन गए। उनकी पारंपरिक लोकसभा सीट बारामती रही है, जहां से वे 1991 से ही चुनाव जीतते चले आ रहे हैं। इस बार उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार, अपनी ननद सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं, जिसमें उनकी करारी हार हुई।
अजित पवार, शरद पवार के भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं। शरद पवार, 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनका जन्म देवलाली परवरा में हुआ था, उन्होंने यहीं से अपनी शुरुआती पढ़ाई की थी। अजित पवार भी अपने चाचा के नक्शेकदम पर आगे बढ़ते रहे। वे भी राजनेता बने और कांग्रेस में शामिल हो गए। साल 1982 में वे पहली बार को-ऑपरेटिव सूगर फैक्ट्री के एक बोर्ड में चुने गए। साल 1991 में वे पुणे जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन चुने गए। 16 साल तक वे इसी पद पर बने रहे। पहली बार साल 1991 में बारामती संसदीय क्षेत्र से वे चुनाव जीते। उन्होंने जीतकर भी इस सीट को अपने चाचा शरद पवार के लिए खाली कर दिया। दरअसल पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें रक्षा मंत्रालय का कार्यभार मिला था।
राजनीति में खुद अजेय रहे अजित पवार
अजित पवार 7 बार बारामती विधानसभा चुनाव से विधायक चुने गए। उन्हें पहली बार 1991 के उपचुनावों में जीत मिली थी, साल 1995, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार जीत मिली। वे साल 1991 से लेकर 1992 तक के बीच सुधाकर राव नाइक की सरकार में कृषि मंत्री रहे। साल 1992 में वे मृदा संरक्षण और ऊर्जा योजना मंत्री बने। साल 1999 में वे कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय मिला। साल 2003 में सुशील कुमार शिंदे कैबिनेट में भी उन्हें जिम्मेदारी मिली। जब साल 2004 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की जीत हुई तो वे फिर से जल मंत्रालय संभालने लगे। अशोक चह्वाण की सरकार में भी उन्हें यही मंत्रालय मिला।
कैसे बागी हो गए अजित पवार?
जिस चाचा ने उन्हें हमेशा सत्ता में बनाए रखा, उनसे ही उन्होंने साल 2019 में बगावत कर ली। जब देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में बीजेपी के खाते में 105 सीटें आईं और अविभाजित शिवसेना ने 56 सीटें हासिल कीं तो यह तय हो गया कि एनडीए की ही सरकार बनेगी। उद्धव ठाकरे ये चाहते थे कि मुख्यमंत्री शिवसेना से ही बने। देवेंद्र फडणवीस को इस पर ऐतराज था। नतीजा ये हुआ कि गठबंधन टूट गया। मदद के लिए अजित पवार आए और दोनों ने जाकर राज्यपाल के पास शपथ ले ली।
अजित पवार को भरोसा था कि उनकी पार्टी, उनके निर्णय के समर्थन में आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 80 घंटों के अंदर ही ये सरकार गिर गई। देवेंद्र फडणवीस को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। 1 दिसंबर 2019 को वे फिर से एनसीपी में लौट आए। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी पहली बार एकसाथ आए और महाविकास अघाड़ी (MVA) की सरकार बनी। डिप्टी सीएम का पद फिर अजित पवार को मिला। 16 दिसंबर को शपथ ग्रहण हो गया। साल 2022 में ही शिवसेना में फूट पड़ गई। आधी शिवसेना लेकर एकनाथ शिंदे, एनडीए में शामिल हो गए। सरकार गिर गई और बीजेपी ने सरकार बना ली। एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बना ली। अजित पवार, नेता प्रतिपक्ष बन गए।
अजित पवार को विपक्ष नहीं, सत्ता पक्ष में बैठना था। एनसीपी की अहम बैठकों से उन्हें नदारद रखा जाता था, पार्टी में उनके अलावा दूसरे नेताओं को भाव मिल रहा था। डिप्टी सीएम होने के बाद भी उन्हें डर लगता था कि उनकी बहन सुप्रिया सुले पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। अपनी सीमित भूमिका के डर से उन्होंने एनसीपी में ही दो फाड़ कर लिया। जुलाई 2023 में उन्होंने अपने 40 से ज्यादा विधायकों के साथ अलग पार्टी बना ली। 7 फरवरी 2024 को चुनाव आयोग पार्टी का चुनाव चिह्न भी उन्हें ही दे दिया। शरद पवार का गुट एनसीपी (शरद पवार) के नाम से जानी जाती है।
अजित पवार पर क्या-क्या हैं आरोप?
अजित पवार पर एक से बढ़कर एक संगीन आरोप लगे। साल 2002 में जलमंत्री रहने के दौरान लावासा प्रोजेक्ट में धांधली करने के उन पर आरोप लगे। सितंबर 2012 में उन पर 70 हजार करोड़ रुपये के स्कैम का आरोप लगा। ये आरोप साबित नहीं हुए। किरीट सोमैया ने एक बार आरोप लगाए थे कि अजित पवार के परिवार के पास 100 करोड़ रुपये से ज्यादा बेनामी संपत्ति है। 2020 में उन पर विदर्भ सिंचाई स्कैम में शामिल होने के आरोप लगे। राज्य सहकारी बैंक स्कैम में उनसे जुड़ी एक कंपनी का नाम सामने आया था। इन आरोपों के बाद भी अजित पवार, महायुति सरकार में डिप्टी सीएम हैं और विधानसभा चुनावों भी बीजेपी के साथ मिलकर सियासी रणनीति साध रहे हैं।