2012 की 2 अक्टूबर को अरविंद केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी बनाने का ऐलान किया था, तब उनपर कई सवाल उठे। आलोचना भी हुई थी। इस पर केजरीवाल ने कहा था, 'देश को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने का यही तरीका है कि वो राजनीति में आएं और सिस्टम में घुसकर गंदगी साफ करें।'


केजरीवाल का ये अवतार दिल्ली की जनता को बहुत पसंद आया। पार्टी लॉन्च होने के कुछ ही महीने बाद सत्ता में आ गई। कांग्रेस का हाथ थामकर बनी ये सरकार ज्यादा नहीं टिकी और 49 दिन में ही केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदली और दिल्ली वालों के फ्री बिजली और पानी समेत कई सारी चीजें मुफ्त करने का ऐलान किया। नतीजा ये हुआ कि 2015 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं। दिल्ली के चुनावी इतिहास में पहली बार था जब किसी पार्टी को इतनी बड़ी जीत मिली थी।


लेकिन सत्ता में आने के बाद केजरीवाल की रणनीति बदलती चली गई। फ्रीबीज तो केजरीवाल की राजनीति का अहम हिस्सा बन ही गई, लेकिन इसके साथ-साथ ही उन्होंने जाति और धर्म को भी साधना शुरू कर दिया।

कैसे बदली केजरीवाल की रणनीति?

- फ्रीबीज से शुरू की सियासत?

 

2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल ने कई बड़े ऐलान किए। चुनाव के वक्त वादे तो सभी पार्टियां करती हैं, लेकिन केजरीवाल ने हाफ बिजली बिल, फ्री पानी, फ्री वाई-फाई, सस्ती शिक्षा और सस्ते इलाज का वादा किया। दिल्ली की सियासत में ये शायद पहला प्रयोग था। 2015 में जीत के बाद केजरीवाल ने अपनी पूरी सियासत फ्रीबीज पर ही मोड़ दी। उन्होंने वो सब फ्री कर दिया, जिसकी जनता को जरूरत थी। बिजली फ्री, पानी फ्री, शिक्षा फ्री, इलाज फ्री, महिलाओं को बस यात्रा फ्री जैसी योजनाओं को लागू किया। और तो और बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा शुरू कर दी। 

 

- महिलाओं पर किया फोकस

 

सत्ता में आने के बाद केजरीवाल ने आधी आबादी यानी महिलाओं पर फोकस किया। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल ने महिलाओं के लिए फ्री बस यात्रा का वादा किया। इससे सीधे तौर पर लाखों महिलाओं को फायदा हुआ। पिछले साल नवंबर में रिपोर्ट में सामने आया था कि 5 साल में 150 करोड़ से ज्यादा महिला यात्रियों ने बस का फ्री सफर किया है। इस बार के चुनाव से पहले 2024-25 के बजट में सरकार ने महिला सम्मान योजना की शुरुआत की। इसके तहत दिल्ली की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये की मदद दी जाती है। केजरीवाल ने वादा किया है कि अगर वो सत्ता में वापसी करते हैं तो इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया जाएगा।

 

- फ्रीबीज से हिंदू-मुस्लिम पर

 

केजरीवाल के सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ी इन फ्रीबीज को ही माना जाता है। मगर बाद में केजरीवाल ने धर्म की सियासत भी शुरू कर दी। केजरीवाल ने पहले इमामों को हर महीने 18 हजार और मुअज्जिनों को 16 हजार रुपये की तनख्वाह देने का ऐलान किया। हालांकि, इमामों और मुअज्जिनों ने 17 महीने से सैलरी न मिलने का दावा किया है। इमामों को सैलरी देने के फैसले पर केजरीवाल अक्सर बीजेपी के निशाने पर रहते थे। लिहाजा, इस चुनाव से पहले उन्होंने मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को भी हर महीने 18 हजार की सैलरी देने का वादा कर दिया। 

 

- अब जाति का कार्ड खेला

 

दिल्ली में वोटिंग में जब एक महीना भी नहीं बचा है, तब केजरीवाल ने जाति का कार्ड खेल दिया है। केजरीवाल ने 9 जनवरी को दिल्ली के जाटों को केंद्र की OBC लिस्ट में शामिल करने की मांग कर दी। इसे लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी है। केजरीवाल ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर दिल्ली के जाटों के साथ अन्याय करने का आरोप भी लगाया। दिल्ली में जाटों की लगभग 10 फीसदी आबादी है। 25 सीटों पर इनका असर है। 8 सीटें जाट बाहुल्य हैं। और तो और केजरीवाल के सामने नई दिल्ली सीट से बीजेपी उम्मीदवार प्रवेश वर्मा भी जाट हैं। माना जा रहा है कि प्रवेश वर्मा का तोड़ निकालने के लिए केजरीवाल जाटों को आरक्षण का दांव चला है।