भारत के आजाद होने की सुगबुगाहट शुरू होने से पहले ही इस तरह के आंदोलन देश के अंदर ही चल रहे थे। इसमें से एक था अलग-अलग आधार पर राज्यों का गठन। सबसे बड़ा आधार भाषा के आधार पर था। खैर, न तो देश आजाद था और नहीं देश के राज्यों की कोई कल्पना की जा सकती थी। इसके बावजूद एक शख्स अंग्रेजों के पास पहुंचता है और उनसे ही मांग कर डालता है कि एक अलग राज्य बनाया जाए। इस राज्य की मांग न सिर्फ अंग्रेजों से होती है बल्कि देश आजाद होता है तो पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने भी इसे रखा जाता है। इस मांग को पूरा होने में 7 दशक से ज्यादा समय लग जाता है और आखिरकार बिहार के दो हिस्से करके झारखंड नाम के राज्य गठन होता है। इस झारखंड राज्य के बनने के बाद से चुनाव तो चार बार ही हुए हैं लेकिन कुल 15 बार अलग-अलग सरकारों का गठन हुआ है, 7 नेता राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं और कुल तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है।

 

नई पीढ़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुखिया शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी को झारखंड आंदोलन का नेता समझती है लेकिन एक शख्स ऐसा भी था जिसे शिबू सोरेन अपना गुरु मानते थे। सबसे पहले झारखंड की मांग करने वाले शख्स जयपाल सिंह मुंडा थे जो कि झारखंड पार्टी के नेता थे। साल 1929 में ही उन्होंने अंग्रेजों से मांग की थी कि अलग राज्य झारखंड बने। 1939 में उन्होंने आदिवासी महासभा की स्थापना की। देश आजाद हुआ तो पंडित नेहरू के सामने यही मांग रखी। इसके पीछे तर्क दिया कि बिहार में मैथिली और भोजपुरी जैसी भाषाएं हैं जबकि जो झारखंड वह मांग रहे हैं उस क्षेत्र में जनजातीय भाषाएं बोली जाती हैं। साथ ही, झारखंड में प्राकृतिक संसाधन जैसे कि नदियां, पहाड़ और झरने हैं जबकि बिहार ज्यादातर समतल है।

जयपाल सिंह मुंडा की पार्टी टूटी और शिबू सोरेन की एंट्री

 

1949 में उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन की पहचान रखनी वाली आदिवासी महासभा का नाम बदल दिया और इसे राजनीति करने वाली झारखंड पार्टी बना दिया। अब प्लान यह था कि चुनाव लड़ा जाएगा, विधानसभा, लोकसभा में अपने लोग होंगे तो वे मांग उठाएंगे। 1963 में बिहार के विधानसभा चुनाव हुए तो झारखंड पार्टी के 32 विधायक जीते। हालांकि, बिहार के सीएम बी के सहाय ने अपना गेम खेला और इस पार्टी को तोड़ दिया। झारखंड पार्टी टूटने के बाद अलग राज्य का आंदोलन भी खत्म होने वाला था लेकिन इसी बीच शिबू सोरेन की एंट्री होती है। भूमाफियों ने शिबू सोरेन के पिता की हत्या कर दी थी। यहीं से वह भूमाफिया, खनन माफिया, बाहरी ठेकेदारों और साहूकारों के खिलाफ लड़ना शुरू करते हैं और जयपाल सिंह मुंडा के आंदोलन को आगे बढ़ाते हैं। 

 

1960 के दशक में शिबू सोरेन बोकारो जिले के टुंडी ब्लॉक में पोखरिया आश्रम बनाया और इस क्षेत्र के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। शिबू सोरेन की राजनीति का तरीका यह था कि वह आदिवासियों की आवाज उठाते, उनके साथ खड़े होते और कर्ज देने वालों के आदिवासियों पर अत्याचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाते थे। कई बार उन्होंने इसके लिए आंदोलन छेड़े। कुछ शांतिपूर्ण हुए तो कुछ हिंसक भी हो गए। इसके चलते शिबू सोरेन पुलिस और अन्य एजेंसियों की नजर में आ गए। झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन साल 1973 में ही हो गया था। इस संगठन की पहली मांग यही थी कि अलग झारखंड राज्य बनाया जाए।

 

शिबू सोरेन ने नेताओं से संबंध स्थापित किए। वह खासकर उन नेताओं से मिलते जो अलग राज्य चाहते हों। शिबू सोरेन ने ही बाहरी बनाम स्थानीय की लड़ाई छेड़ी। अवैध खनन के खिलाफ उन्होंने आदिवासियों को एकजुट किया। उनके मुद्दे को उठाया। इसका नतीजा यह हो गया कि शिबू सोरेन आदिवासियों और झारखंड राज्य के चाह रखने वालों के इकलौते नेता बनते गए। इस तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहली बार साल 1980 में बिहार में पहली लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। विधानसभा चुनाव में भी उसे कुछ विधानसभा सीटों पर भी जीत हासिल की। हालांकि, जल्द ही इस पार्टी पर बैन लगा दिया गया।

आजसू का आंदोलन और झारझंड पर गंभीर हुई सरकार

 

1986 में ऑल झारखंड स्टू़डेंट यूनियन का गठन हुआ जिसके संस्थापक अध्यक्ष प्रभाकर तिर्की थे। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष निर्मल महतो इसके संरक्षक थे। 1989 में आजसू ने आंदोलन इतना तेज कर दिया कि राजीव गांधी की केंद्र सरकार दिल्ली में ही आजसू से बातचीत करने पर मजबूर हो गई। इसी मुलाकात के बात झारखंड मामलों पर एक कमेटी बनाई गई।

 

राजनीति तेजी से बदल रही थी। बिहार की सत्ता पर काबिज लालू प्रसाद यादव घोटोलों में घिर रहे थे और सत्ता बचाने के लिए हर जतन कर रहे थे। जो लालू यादव पहले कहते थे कि अलग झारखंड उनके मर जाने के बाद ही बन सकता है, अब वही झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ बिहार में सरकार चला रहे थे। वहीं केंद्र सरकार अलग झारखंड बनाने के लिए बिहार सरकार की राय जानना चाह रही थी। 2 मार्च 1997 को लालू यादव अलग झारखंड के लिए राजी होते हैं लेकिन अगले ही साल तक फिर मुकर जाते हैं।

 

साल 2000 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए तो किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। बीजेपी नई-नई उभर रही थी तो उसकी कोशिश थी कि वह कैसे भी करके जितने ज्यादा राज्यों में हो सके सरकार बनाए। उसे लगा कि वह एक सरकार बना सकती है लेकिन इसके लिए एक अलग राज्य झारखंड बनाना होगा। दूसरी तरफ केंद्र की कांग्रेस सरकार भी लालू यादव पर दबाव बना रही थी कि वह झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दे दें। लालू यादव आधे मन से ही सही लेकिन इस बार अलग झारखंड बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसी बीच बिहार विधानसभा ने अलग झारखंड राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके मुताबिक, 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हो गया।

 

नए झारखंड राज्य में सरकार बनाने के लिए नियम रखा गया कि अलग से चुनाव नहीं होंगे। इसी साल यानी 2000 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। ऐसे में तय हुआ कि जो विधानसभाएं अब झारखंड में आ गई हैं, अब उन्हीं के विधायक मिलकर राज्य में सरकार बनाएंगे। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सरकार बनाई और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने।