बिहार में विधानसभा सीटों की गिनती जब शुरू होती है तो उसमें दरभंगा जिले की जाले सीट का नाम भी खास अहमियत रखता है। यह सीट दरभंगा जिले के उत्तरी हिस्से में स्थित है। यहां की जनता शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य और बाढ़ नियंत्रण जैसी बुनियादी सुविधाओं की लगातार मांग करती रही है।

 

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो जाले विधानसभा सीट पर हर चुनाव में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलता है। यहां जातीय समीकरण, विकास के मुद्दे और स्थानीय नेतृत्व का करिश्मा—सभी कुछ चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं। बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां जैसे आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी, सभी इस सीट को अपने लिए निर्णायक मानती रही हैं। पिछली बार किसने बाज़ी मारी और अगली बार कौन सी पार्टी अपनी पकड़ मज़बूत करेगी, यह सवाल हमेशा चर्चा में रहता है। कुल मिलाकर, जाले विधानसभा सीट न सिर्फ दरभंगा जिले बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति के लिए भी एक महत्वपूर्ण कसौटी मानी जाती है।

 

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सामाजिक समीकरण

जाले विधानसभा क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण है और खेती-किसानी यहां की रीढ़ मानी जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण है। यादव, ब्राह्मण और मुसलमान मतदाता यहां पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछड़ी और अति-पिछड़ी जातियों का भी अच्छा-खासा प्रभाव है।

 

कुल मिलाकर देखा जाए तो इस सीट पर जातीय समीकरण चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। यादव मतदाता जहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के परंपरागत वोटर माने जाते हैं, वहीं ब्राह्मण और अन्य ऊंची जातियों के मतदाता कांग्रेस और बीजेपी की तरफ झुकते रहे हैं। मुसलमान मतदाता कांग्रेस और आरजेडी दोनों के साथ जुड़े रहे हैं।

मौजूदा समीकरण

वर्तमान में यह सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कब्जे में है। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नेता जीवेश मिश्रा ने आरजेडी उम्मीदवार मस्कूर उस्मानी को हराकर जीत हासिल की थी। एनडीए गठबंधन के मजबूत होने से यह सीट बीजेपी के खाते में आई।

 

हालांकि, इससे पहले यह सीट कांग्रेस और आरजेडी दोनों के बीच झूलती रही है। बीजेपी का लगातार संगठन विस्तार और जीवेश मिश्रा की लोकप्रियता के कारण फिलहाल इस सीट पर बीजेपी की स्थिति मजबूत मानी जाती है। हालांकि, आरजेडी और कांग्रेस मिलकर कोई मजबूत उम्मीदवार इस सीट पर उतारते हैं तो मुकाबला कड़ा हो सकता है।

2020 का चुनाव परिणाम

2020 के विधानसभा चुनाव में जाले सीट पर बीजेपी और आरजेडी के बीच सीधा मुकाबला हुआ।

  • बीजेपी के जीवेश मिश्रा को 87,376 वोट मिले और उन्होंने शानदार जीत दर्ज की।

  • आरजेडी के मस्कूर उस्मानी को 65,580 वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रहे।

  • कांग्रेस और अन्य दलों को यहां सीमित वोट ही मिले।

इस चुनाव से यह साफ हुआ कि बीजेपी ने पारंपरिक कांग्रेस मतदाताओं और कुछ हद तक ब्राह्मण व युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ने में सफलता पाई।

विधायक का परिचय

मौजूदा विधायक जीवेश मिश्रा बीजेपी के जाने-माने चेहरे हैं। मिथिला की राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत है। जीवेश मिश्रा संगठन से जुड़े नेता हैं और युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं। वह मिथिला क्षेत्र के मुद्दों को विधानसभा में उठाने के लिए पहचाने जाते हैं।

 

जीवेश मिश्रा ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ की थी. वे 1991 से 1998 तक विद्यार्थी परिषद के सक्रिय सदस्य रहे. जीवेश ने 1998 में भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली और 2002 तक इसी रूप में कार्यरत रहे. वे 2002 से भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय सदस्य के रूप में कार्यरत हैं. पहली बार वे 2015 में और दूसरी बार 2020 में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में जाले निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए चुने गए.

 

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विधानसभा का इतिहास

जाले विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। यह सीट कभी कांग्रेस के प्रभाव में रही तो कभी आरजेडी का गढ़ बनी। लेकिन हाल के वर्षों में बीजेपी यहां मजबूत हुई है।

 

2020 – बीजेपी के जीवेश मिश्रा

2015 – बीजेपी के जीवेश मिश्रा

2010- विजय कुमार मिश्रा- बीजेपी

2005- राम निवास प्रसाद - बीजेपी

1995- अब्दुल सलाम - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

1990- विजय कुमार मिश्रा- कांग्रेस

1985- लोकेश नाथ झा- कांग्रेस

1980- लोकेश नाथ झा- कांग्रेस

1977- कपिलदेव ठाकुर - जनता पार्टी

1972- खादिम हुसैन- भाकपा

1969- तेज नारायण राउत- जनसंघ

1967- खादिम हुसैन- भाकपा

1962- नारायण चौधरी- कांग्रेस

1957- शेख ताहिर हुसैन- कांग्रेस

1952- अब्दुल सामी नदावी- कांग्रेस

जाले विधानसभा सीट मिथिला की राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र है। जातीय और धार्मिक समीकरण यहां के चुनावी माहौल को प्रभावित करते हैं। बीजेपी के जीवेश मिश्रा ने इस सीट को अपने पक्ष में कर लिया है, लेकिन आरजेडी और कांग्रेस की चुनौती को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।