झारखंड का संथाल परगना। इस परगने में 6 जिले आते हैं, गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़। ये झारखंड के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, अस्पताल और सड़कों के साथ-साथ यहां की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक ये भी समस्या है कि यहां की स्थानीयता खतरे में है। ये दावे, सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नहीं, स्थानीय लोगों, पत्रकारों और कुछ सरकारी अधिकारियों के भी हैं। 6 साल पहले, साल 2018 में कई मीडिया संस्थान एक खबर चलाते हैं। कुछ खबरों की हेडलाइन होती है, 'PFI सदस्यों ने आदिवासी लड़कियों से शादी कर संथाल परगना में 10,000 एकड़ से ज्यादा जमीनें खरीदीं।' PFI मतलब, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। यह एक इस्लामिक संगठन है, जिस पर सितंबर 2022 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बैन लगा दिया था।
यह किसी फर्जी कहानी का हिस्सा नहीं है। वहां के स्थानीय लोग भी ऐसा कह रहे हैं। पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज और गोड्डा में ऐसी स्थितियां हैं। वहां बांग्लादेशी घुसपैठियों की भी एक बड़ी तादाद है, जो आकर बसे हैं और आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं। जब यहां के ग्राम प्रधानों से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने बहाने बनाकर फोन रख दिया।
नारायणपुर प्रखंड क्षेत्र के धनजोरी गांव के प्रधान प्रेमचंद बासुकी से जब खबरगांव ने ये सवाल किया तो उन्होंने कहा कि हम पंचायत दफ्तर में हैं। इस विषय में जब उनसे कुछ और सवाल पूछे गए तो उन्होंने फोन काट दिया। दोबारा संपर्क करने की कोशिश हुई तो उन्होंने फोन नहीं रिसीव किया।
लंबे अरसे से आदिवासी मुद्दों पर मुखर होकर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शंकर पंडित बताते हैं कि आप किसी भी अधिकारी स्तर के व्यक्ति से भी ये सवाल करेंगे तो यह खारिज ही होना है। स्थानीय राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ है, वे लोगों को फंड देते हैं और कोई भी उनके खिलाफ नहीं बोलता है। आप चाहें प्रधान से सवाल करें या पुलिस अधिकारी से वे इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं देंगे।
'कर्ज के दलदल में फंसाकर बेटियों का सौदा'
3 अक्तूबर को द न्यू इंडियन एक्सप्रेस एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें झारखंड में जनसांख्यिकी परिवर्तन को लेकर कुछ दावे किए गए थे. यह रिपोर्ट, अनूसिचत जाति आयोग की सदस्य आशा लकड़ा ने तैयार की थी और झारखंड के राज्यपाल और गृहमंत्रालय भारत सरकार को भेजी गई थी। रिपोर्ट हैरान करने वाली थी। दावा किया गया था कि बांग्लादेश के घुसपैठिए संथाल परगना में आदिवासी परिवारों को कर्ज देते हैं, उन्हें प्रलोभन दे रहे हैं और जब वे कर्ज के दलदल में फंस जाते हैं तो कर्जमुक्ति की एवज में उनकी बेटियों से शादी का दबाव देते हैं, जिससे झारखंड में टिक सकें और सस्ती जमीनों को खरीद सकें।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संथाल परगना में जनसांख्यिकी के आंकड़े तेजी से बदले हैं, 1871 के बाद से ही साहिबगंज और कई जिलों में घुसपैठियों की संख्या बढ़ी है। घुसपैठियों की ठीक संख्या बता पाना मुमकिन नहीं है। जब इस रिपोर्ट के बारे में आदिवासी मामलों पर नजर रखने वाले स्थानीय पत्रकार शंकर पंडित से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि जमीन पर स्थितियां ऐसी ही हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।
कैसे होती है जमीनों की खरीद-फरोख्त?
साहेबगंज जिले के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि आदिवासियों की जमीनें बेधड़क बिकती हैं। उनका लैंड नेचर बदल दिया जाता है। जमीन को किसी ट्रस्ट या संस्था के नाम करा लिया जाता है। ऐसा साहिबगंज, मंडरो, बोरियो, बरहेट, तालाझारी, राजमहल, उधवा, पतना और बरहरवा जैसी जगहों पर हो रहा है। सबको पता है कि तय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। साहिबगंज जिले की आधिकारिक वेबसाइट कहती है कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक इस इलाके में अनुसूचित जनजातियों की संख्या 26.80 प्रतिशत से ज्यादा है। इनमें से 86.03 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जी रहे हैं।
एक स्थानीय पत्रकार ने दावा किया कि जिनके पास कुछ जमीनों का मालिकाना हक या पट्टा है, उनसे आदिवासी पत्नी के गैर आदिवासी पति आसानी से जमीन खरीद-फरोख्त कर लेते हैं। गैर आदिवासी, गरीब आदिवासियों से जमीन को दान भी करा लेते हैं, आदिवासी, अपनी जमीन कुछ शर्तों पर दान भी दे सकते हैं। घुसपैठिए नोटरी से मिले दान पत्रों के जरिए जमीन हड़प रहे हैं।

शोषण का खेल और शादी, झारखंड में ये क्या हो रहा है
आशा लाकड़ा के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा भी जोर-शोर से लैंड जिहाद और लव जिहाद का मुद्दा उठा रहे हैं। उनका दावा है कि आदिवासी जमीन हड़पने के लिए बांग्लादेशी मुसलमान आदिवासी लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं, उनके परिवारों का शोषण करते हैं, जिससे वे मजबूर होकर उनकी शादी करा दें। यह खेल धड़ल्ले से हो रहा है। कुछ स्थानीय पत्रकार भी दावा कर रहे हैं कि ऐसा खूब हो रहा है लेकिन पुलिस इस पर कोई एक्शन लेने से डरती है।
ऐसी शादियों से लाभ क्या होता है?
यह शादी अगर सिर्फ प्रेम संबंधों की वजह से हों तो संवैधानिक अधिकारों के दायरे में ही आएगी। वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे लोग, गलत मंशा की वजह से ऐसी शादियां कर रहे हैं। आदिवासी लड़कियों के साथ वे शादी करते हैं, पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदते हैं, पत्नी का धर्म परिवर्तन हो जाता है लेकिन कागजों पर नहीं। इन लड़कियों के बच्चों के नाम भी मुस्लिम नाम पर होते हैं, सिर्फ महिला का ही नाम नहीं बदलता है। वजह सिर्फ कानूनी लाभ है। मुस्लिम, जब आदिवासी महिलाओं से शादी करते हैं, तो उनके परिवार कई लाभ मिलता है।
सीधे उन्हें नहीं, लेकिन उनकी पत्नी और बच्चों को लाभ मिल जाता है। उन्हें कई तरह की छूट मिलती है। वे धनाढ्य हैं, उनके पास आदिवासियों की तुलना में ज्यादा पैसे हैं तो वे जरूरतमंद आदिवासियों की जमीनें भी खरीद लेते हैं। पत्नी आदिवासी है, भले ही उसकी शादी मुस्लिम या किसी अन्य धर्म में हुई हो तो उसका आदिवासी स्टेटस नहीं बदलता है। उसके नाम से जमीनों का क्रय-विक्रय हो सकता है। संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949, सिर्फ आदिवासियों को ही आदिवासी भूमि के खरीद-बेच का अधिकार देता है। गैर आदिवासी, आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकते।
नाम आदिवासी महिला का, कब्जा 'गैर आदिवासी' पति का
आदिवासी महिला से शादी के बाद, वे महिला के बहाने से जमीनों की खरीद-फरोख्त करते हैं, इससे उन्हें कोई कानून रोक भी नहीं पाता है। संथाल परगना काश्तकारी अधनियिनम बंगाल के साथ झारखंड की सीमा के साथ संथाल परगना इलाके में गैर आदिवासियों को आदिवासी भूमि की बिक्री पर रोक लगाता है। यह आदिवासी संस्कृति और उनके अधिकारों को संरक्षित रखने की दिशा में उठाया गया अहम कदम है।
मामला, सिर्फ जमीनों की खरीद-फरोख्त तक ही सीमित नहीं होता है। उनके पास पैसा होता है तो वे स्थानीय प्रशासन और ग्राम प्रशासन की मिलीभगत से राजनीति में भी पैठ बनाते हैं। अपना सामाजिक दायरा भी बढ़ाते हैं और गरीब आदिवासियों की जमीनें खरीदते हैं। ये जमीनें, आदिवासी महिला के नाम से ही खरीदी जाती हैं, भले ही उसकी सामाजिक दशा-दिशा कैसी भी हो।
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पंडित बताते हैं कि बांग्लादेशी आदिवासी महिलाओं से शादी कर लेते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है तो वे जमीनें खरीदते हैं, उन्हें ग्राम पंचायत चुनाव लड़वाते हैं। चूंकि महिला आदिवासी ही रहती है इसलिए वह चुनाव तो लड़ लेती है लेकिन मुखिया का काम ये घुसपैठिए ही करते हैं।
पत्रकार शंकर पंडित बताते हैं कि संथाल परगना में ही जमाईपाड़ा इलाके में ऐसी कई बस्तियां हैं, जहां घुसपैठियों ने स्थानीय आदिवासी लड़कियों के साथ शादी करके घर बसा लिया है। वे शादी करते हैं, जमीन कब्जाते हैं, राशन कार्ड और आधार कार्ड, पेनकार्ड बनवाते हैं और यहीं के नागरिक के तौर पर सारी सुविधाएं लेते हैं।
जांच की शिकायत पर क्या होता है?
नाम न छापने की शर्त पर कुछ अधिकारियों और पत्रकारों ने बताया कि दबाव के चलते ऐसे मामलों की जांच नहीं हो पाती है। जब जांच करने का आदेश जारी होता है तो कई बार जहां ऐसे मामले देखे गए हैं, वहां की जगह किसी और जगह पर जांच अधिकारी जाते हैं और ऐसे मामलों को खारिज कर देते हैं। घुसपैठियों की अब राजनीतिक पकड़ भी हो गई है. वे गांव के मुखिया के पति हैं, उनके बच्चों के नाम मु्स्लिम हैं लेकिन उनकी पत्नी आदिवासी ही है। माता-पिता की संपत्ति पर संतान का अधिकार होता है, ऐसे में मां के रहने पर यह संपत्ति उनके बच्चों को मिल ही जाएगी। इसका मालिकाना हक भी उनके पास होगा। यह मामला चिंताजनक है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते इस पर कोई एक्शन नहीं हो पाता है। यह मामला गंभीर है और गृह मंत्रालय को इस पर ध्यान देना चाहिए।