झारखंड में इंडिया ब्लॉक और एनडीए की सियासी जंग, अब दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई हैं। 13 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग से पहले, राज्य के सियासी हालात ऐसे बन गए हैं, जिसमें तनाव अपने चरम पर है। हिंदुत्व बनाम अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की इस जंग में कई ऐसे फैक्टर उभरकर सामने आए हैं, जो अब तक नहीं आए थे।
अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटरों को लुभाने की कोशिश में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसी पार्टियां, हर उपाय कर रही हैं। पारंपरिक तौर पर आदिवासी वोटर, झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रति झुकाव रखते हैं लेकिन अब सियासत बदल गई है।
कोल्हान का टाइगर कौन?
अब आदिवासी बनाम मुस्लिम की जंग शुरू हो गई है। कोल्हान क्षेत्र भी इससे अलग नहीं है। साल 2000 से लेकर अब तक, यह 5वां विधानसभा चुनाव है। इस राज्य में 26 प्रतिशत आदिवासी, 12 प्रतिशत दलित और 40 प्रतिशत ओबीसी हैं। कोल्हान रेंज, आदिवासी बाहुल क्षेत्र है, जहां हेमंत सोरेन का दबदबा है। यह दबदबा, काफी हद तक चंपाई सोरेन की वजह था, जो अब बीजेपी के साथ हैं। कोल्हान मंडल में तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम आते हैं. इन तीनों जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं. चंपई सोरेन का यहां दबदबा है।
पूर्वी सिंहभूम जिले में 6 विधानसभा सीटें हैं। बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसालाई, जमशेदपुर (पूर्व), जमशेदपुर (पश्चिम)। सरायकेला खरसावां में 3 विधानसभा सीटें हैं। ईचागढ़, खरसावां और सरायकेला। पश्चिमी सिंहभूम जिले में 5 विधानसभा सीटें आती हैं। चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर। इन सभी विधानसभा सीटों पर कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन का दबदबा है, वे संथालियों के बड़े नेताओं में शुमार हैं, इसलिए ही उन्हें कोल्हान टाइगर भी कहते हैं।
पू्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की विधानसभा सरायकेला भी इसी क्षेत्र में आती है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कोल्हान रेंज में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी, वहीं 11 सीटें, अकेले झारखंड मुक्ति मोर्चा जीत गई थी, दो सीटें कांग्रेस और एक सीट एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत ली थी। यह दमखम, चंपाई सोरेन का था। एक बार फिर चंपाई सोरेन इस क्षेत्र की कमान संभाल रहे हैं लेकिन जीवनभर वे जिस पार्टी में रहे, उसे से उन्होंने अपनी राहें अलग कर ली हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा कितनी दमदार?
झारखंड मुक्ति मोर्चा का फोकस, यहां आदिवासियों पर है। बीजेपी का फोकस भी इसी पर है। बीजेपी का कहना है कि इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने आदिवासी लड़कियों को अपने जाल में फंसाकर शादी की, आदिवासियों की जमीनें हड़पीं और अब वे आदिवासी संस्कृति के लिए ही खतरा बन रहे हैं। बीजेपी, महिला सुरक्षा और कल्याण की राजनीति पर यहां काम कर रही है, जिसकी लोकप्रियता भी देखने को मिल रही है।
किन योजनाओं का जमीन पर दिख रहा है असर?
झारखंड सरकार की मैया सम्मान योजना, वोटरों को लुभा रही है। इसके तहत आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं को 2500 रुपये की आर्थिक मदद मिलती है। बीजेपी ने इसके जवाब में गोगो दीदी योजना के तहत 2100 रुपये देने का वादा किया है। झारखंड में सड़क और संचार के विकास को लेकर बीजेपी क्रेडिट लेती रही है। ऐसे में एक तबका ऐसा है, जो योजनाओं की तुलना में विकास को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। इसके अलावा कुछ जगहों पर आयुष्मान भारत योजना को लेकर भी स्थानीय लोग खुश हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने झारखंड की 9 सीटें जीत ली थीं, वहीं इंडिया ब्लॉक को 5 सीटों पर जीत मिली थी। हेमंत सोरेन, यहां सहानुभूति हासिल करने में भी सफल रहे हैं। उनकी पार्टी को आदिवासी पार्टी का भी दर्जा मिला है। इंडिया ब्लॉक के वे चर्चित नेता हैं, अल्पसंख्यक वोटर भी उनके साथ हैं। बीजेपी की राजनीति ही यहां हिंदुत्व पर टिकी है।
बीजेपी की ओर से किसके हाथ में कमान?
झारखंड में बीजेपी की ओर से शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा, चुनावी कमान संभाल रहे हैं। कोल्हान में ये नेता चंपाई सोरेन के साथ-साथ खूब रैली कर रहे हैं लेकिन कोल्हान क्षेत्र, आदिवासियों का इलाका है, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा मजबूत असर रखती है।
क्या कोल्हान के टाइगर फिर होंगे कामयाब?
चंपाई सोरेन का भी दबदबा यहां इतना है कि उन्हें कोल्हान टाइगर कहते हैं। जब ईडी की कैद में हेमंत सोरेन गए थे और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था, तब चंपाई सोरेन, मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से ही चंपाई सोरेन, नाराज चल रहे थे, अब वे बीजेपी के साथ आ गए। अब बीजेपी ने संथाल परगना में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, जिसका असर, कोल्हान क्षेत्र में भी होता दिख रहा है।
झारखंड में बीजेपी की कैंपेनिंग में घूम-घूमकर आदिवासी, बांग्लादेशी घुसपैठिए, मुसलमान और माटी-बेटी और रोटी का जिक्र हो रहा है। बीजेपी, इंडिया ब्लॉक को इन्हीं मुद्दों पर घेर रही है। बीजेपी, आदिवासियों की आबादी खत्म हो जाने का डर दिखा रही है, जिसका असर, वोटरों पर भी पड़ रहा है। अब लोग दबी जुबान में इस बारे में बात भी करने लगे हैं।