बिहार का पूर्णिया जिला कोसी और महानंदा के किनारे बसा है। आबादी के लिहाज से यह बिहार का चौथा सबसे बड़ा जिला है। जिले में कुल सात विधानसभा सीटे हैं। पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी और बीजेपी ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की थी। जेडीयू, कांग्रेस और एक सीट पर निर्दलीय ने अपना कब्जा जमाया था। मौजूदा समय में पप्पू यादव पूर्णिया से सांसद हैं। जिले में कांग्रेस, समाजवादी दलों और बीजेपी का प्रभाव देखने को मिलता है। पिछले चुनाव से ओवैसी की पार्टी ने भी अपनी सियासी धमक दिखाई है।
इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो पूर्णिया जिले का तीन बार विभाजन हो चुका है। सबसे पहले 1976 में इससे अलग होकर कटिहार जिला बना। 1990 में किशनगंज और अररिया जिलों का गठन हुआ। जिले में महानंदा, कोसी, सुवारा काली, कोली और पनार नदियां बहती हैं। मानसूनी सीजन में पूर्णिया हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलता है। बड़ी संख्या में लोगों को पलायन करना पड़ता है।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक पूर्णिया जिले का गठन साल 1770 में अंग्रेजी शासन काल में हुआ था। इसकी पहचान बिहार के बड़े शिक्षा केंद्र के तौर पर होती है। लोगों का जीवन यापन खेती-किसानी पर निर्भर है। देश की सुरक्षा में पूर्णिया का अहम योगदान है। यहां वायुसेना, एसएसबी, थल सेना और सीमा सुरक्षा बल के ऑफिस हैं।
चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही पूर्णिया जिले में आचार संहिता लागू हो चुकी है। यहां दूसरे चरण में 11 नवंबर को मतदान होगा। 13 अक्तूबर से नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। आखिरी तारीख 20 अक्तूबर है। 21 अक्तूबर को नामांकन पत्रों की जांच होगी। अगर को प्रत्याशी अपना नामांकन वापस लेना चाहता है तो 23 अक्तूबर से पहले ऐसा कर सकता है। जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा और तीन दिन बाद यानी 14 नवंबर को मतगणना होगी।
जिले का राजनीतिक समीकरण
बिहार के तीन बार के मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री का संबंध पूर्णिया जिले से रहा है। उन्होंने 1957 में धमदाहा विधानसभा और 1962 में बनमनखी सीट से विधानसभा चुनाव जीता। कस्बा विधानसभा सीट से राम नारायण मंडल लगातार तीन बार विधायक रहे। मो. आफाक आलम ने चार और प्रदीप कुमार दास ने तीन बार जीत हासिल की। बायसी विधानसभा सीट पर अब्दुल सुबहान का कई चुनावों में दबदबा रहा। जनता ने उनको पांच बार जीता कर विधानसभा भेजा। अमौर विधानसभा सीट पर सभी दलों के समीकरण अब्दुल जलील मस्तान के आगे धराशायी हो जाते थे। वे यहां से छह बार विधायक रहे। हालांकि पिछले चुनाव में एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान ने जीत हासिल की।
रुपौली विधानसभा सीट से बीमा भारती पांच जीत चुकी हैं। पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले बीमा भारती ने विधायकी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने यहां जीत हासिल की। धमदाहा विधानसभा सीट पर समाजवादी दलों का दबदबा रहा है। 2005 में आरजेडी सिर्फ एक बार जीती है। उसके बाद से ही यहां जेडीयू का कब्जा है।
पूर्णिया विधानसभा सीट पर जनता ने दलों से अधिक चेहरों पर दांव खेला है। कांग्रेस की टिकट पर पहले पांच चुनाव में कमलदेव नारायण सिन्हा ने जीत हासिल की। सीपीआई-एम के अजीत सरकार भी चार बार विधायक रहे। 2000 के दशक में राज किशोर केसरी का दबदबा रहा।
पूर्णिया की अमौर विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल है। यहां करीब 69.8 फीसदी वोटर्स मुस्लिम समुदाय से हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति के 4.1 और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या 0.71 फीसदी है। बायसी सीट के 64 फीसद मुस्लिम वोटर्स भी किसी को हराने और जिताने की ताकत रखते हैं।
कस्बा विधानसभा सीट पर मुस्लिमों की आबादी बहुल तो नहीं है, मगर वोट शेयर में 40 फीसद की हिस्सेदारी निर्णायक मानी जाती है। बनमनखी सीट पर यादव मुस्लिम समीकरण के सहारे किसी की भी नाव पार लग सकती है। यहां 12.3 फीसदी मुस्लिम और 14.4 फीसद यादव वोटर्स हैं। रुपौली विधानसभा में 12.15 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति समुदाय से हैं। 12.20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं।
विधानसभा सीटें:
धमहादा विधानसभा: 100 दिन की सरकार चलाने वाले बिहार के सीएम भोला पासवान शास्त्री की यह सीट साल 1957 में अस्तित्व में आई। दो चुनाव में कांग्रेस भले ही जीती, लेकिन तीसरे चुनाव में समता पार्टी के कालिका प्रसाद की जीत ने सबको चौंका दिया। यहां की जनता ने दो बार जनता पार्टी, चार बार कांग्रेस, दो बार समता पार्टी, जनता दल और आरजेडी पर एक-एक बार भरोसा जताया। जेडीयू नेता लेशी सिंह यहां से चार बार की विधायक हैं। पिछले तीन चुनाव में वह लगातार जीती हैं।
पूर्णिया विधानसभा: पूर्णिया सीट पर शुरुआत के पांच चुनाव कांग्रेस जीती। 1977 में जनता पार्टी के देवनाथ राय ने कांग्रेस के जीत का रथ रोका। बाद में सीपीआई-एम के अजीत सरकार ने 1980 से 1995 तक अपना दबदबा बनाए रखा। साल 2000 से पूर्णिया सीट पर बीजेपी का कब्जा है। बीजेपी की टिकट पर राज किशोर केसरी तीन बार विधायक बने। विजय कुमार खेमका दो बार से विधायक हैं।
रुपौली विधानसभा: यहां छह बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। हालांकि 1985 के बाद उसे अपनी जीत का इंतजार है। बीमा भारती पांच बार विधायक बनीं। इसके अलावा रुपौली की जनता ने आरजेडी, एलजेपी, जनता पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी को एक-एक बार मौका दिया। 2024 के उपचुनाव में शंकर सिंह ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत हासिल की।
बनमनखी विधानसभा: बनमनखी विधानसभा सीट पर बीजेपी की मजबूत पकड़ है। 2005 से अभी तक बीजेपी नेता कृष्ण कुमार ऋषि यहां से विधायक हैं। बनमनखी विधानसभा सीट पर सबसे अधिक सात बार बीजेपी जीती। पांच बार कांग्रेस को कामयाबी मिली। जनता पार्टी और जनता दल को एक-एक बार जीत मिली।
कस्बा विधानसभा: साल 1967 में कस्बा विधानसभा सीट का गठन हुआ। यहां सबसे अधिक आठ बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। मौजूदा समय में यह सीट कांग्रेस के खाते में है। बीजेपी नेता प्रदीप कुमार दास तीन बार यहां से विधायक रहे। खास बात यह है कि कस्बा विधानसभा सीट पर जेडीयू और आरजेडी को अभी तक जीत नसीब नहीं हुई। जनता दल और सपा को एक-एक बार जीत मिली।
बायसी विधानसभा: शुरुआती चुनाव में कांग्रेस का दबदबा रहा। मगर तीसरे चुनाव में ही प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस के तिलिस्म को खत्म कर दिया। बायसी विधानसभा की जनता ने दो बार निर्दलीय प्रत्याशियों पर भी भरोसा जताया। बायसी में अभी तक जेडीयू को अपनी पहली जीत की तलाश है। लोकदल, जनता दल, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, बीजेपी और एआईएमआईएम को एक-एक बार जीत मिली। सबसे अधिक चार बार कांग्रेस और तीन बार आरजेडी ने जीत का परचम लहराया।
अमौर विधानसभा: अमौर विधानसभा के कुल 15 चुनाव में से छह में कांग्रेस ने जीत हासिल की। दो बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को मौका मिला। जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम और बीजेपी ने एक-एक बार जीत हासिल की। 1972 में हसीब उर रहमान और 1985 में अब्दुल जलील मस्तान ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीता।
जिले का प्रोफाइल
पूर्णिया जिले लगभग 3202.31 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है। इसके दक्षिण में भागलपुर और कटिहार पड़ता है। उत्तर की सीमा अररिया जिले से लगती है। पश्चिम में मधेपुरा और सहरसा जिले पड़ते हैं। पूर्व में किशनगंज और पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर जिला पड़ता है। जिले की कुल आबादी 32,64,619 है। 14 ब्लॉक, 246 पंचायत और 1226 गांव हैं।
कुल विधानसभा सीटें: 7
बीजेपी: 2
एआईएमआईएम: 2
जेडीयू: 1
कांग्रेस: 1
निर्दलीय:1